इंटरव्यू: त्रासदी से जूझ रहा अफ़ग़ानिस्तान, 'अपने देश लौट रहे लोगों के लिए तैयार नहीं है'
हर दिन, और कभी-कभी हर कुछ एक घंटे बाद, अफ़ग़ानिस्तान-ईरान की सीमा पर पहुँचने वाली बसों से हताश, थके हुए अफ़ग़ान परिवार अपने सामान के साथ उतरते हैं. इनमें से बहुत से लोग जिस देश में वापिस लौट रहे हैं, वे उसके बारे में बहुत कम जानते हैं. उन्हें, लम्बा समय ईरान में बिताने के बाद, जबरन देश से बाहर कर दिया गया है. ईरान और इसराइल के बीच हाल के दिनों में युद्ध के हालात से वापिस लौटने वाले अफ़ग़ान शरणार्थियों की संख्या में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है, जबकि धन कटौती के कारण मानवीय सहायता प्रयास चुनौतीपूर्ण हो गए हैं.
इस वर्ष अब तक, सात लाख से अधिक अफ़ग़ान लोगों के ईरान से वापिस अपने देश लौटने की जानकारी है, जिनमें ढाई लाख से अधिक जून महीने में ही आए हैं. मार्च महीने में ईरान सरकार ने बिना दस्तावेज़ वाले लोगों को देश छोड़ने का आदेश दिया था. वापिस आने वाले 99 प्रतिशत लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं हैं और 70 प्रतिशत को जबरन भेजा गया है.
अफ़ग़ानिस्तान में यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के प्रतिनिधि, अराफ़ात जमाल कुछ ही दिन पहले सीमावर्ती इलाक़े इस्लाम क़ला से लौटे हैं. उन्होंने यूएन न्यूज़ हिन्दी को बताया कि 12 दिन तक चले ईरान-इसराइल टकराव से अफ़ग़ानिस्तान लौटने वाले लोगों का ताँता लग गया.
अतीत में हर दिन क़रीब पाँच हज़ार अफ़ग़ान अपने देश वापसी कर रहे थे, मगर हाल के दिनों में यह संख्या हर दिन 30 हज़ार तक पहुँच गई.

यूएन एजेंसी प्रतिनिधि ने एक इंटरव्यू में बताया कि अफ़ग़ान शरणार्थी व शरण तलाश रहे लोग एक निर्धन, वंचित देश में लौट रहे हैं, जोकि उन्हें समर्थन देने में सक्षम नहीं है.
ईरान में अफ़ग़ान महिलाओं व लड़कियों को शिक्षा व रोज़गार के साधन उपलब्ध थे, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में ‘अत्यधिक लैंगिक अन्याय’ से ये अवसर अब असम्भव हो जाएंगे.
अराफ़ात जमाल ने क्षोभ जताया कि जैसे ही अफ़ग़ानिस्तान में “आन्तरिक रूप से शान्ति स्थापित हुई है, वहाँ ईरान और पाकिस्तान से लोगों को देश निकाला और उनकी वापसी की लहर से जूझना पड़ रहा है. 50 लाख से अधिक अफ़ग़ान शरणार्थी व शरण-आकाँक्षी लोगों की कुल आबादी में से अधिकाँश ने पिछले कई दशकों से इन दोनों देशों में शरण ली हुई है.
यूएन शरणार्थी संगठन अपने साझेदार संगठनों के साथ मिलकर, सीमा पार कर रहे अफ़ग़ान लोगों की तात्कालिक ज़रूरतों – भोजन, जल, शरण, संरक्षण – को पूरा करने में जुटा है. साथ ही, उन्हें वित्तीय समर्थन प्रदान किया जा रहा है, स्वास्थ्य व क़ानूनी सेवाओं की व्यवस्था की गई है और समाज में फिर से जुड़ने के लिए मदद दी जा रही है.

मगर, यूएन प्रतिनिधि के अनुसार, धन कटौती के कारण “हमारे कार्यक्रमों पर कठोर असर हुआ है.” नक़दी सहायता का स्तर दो हज़ार डॉलर प्रति परिवार से घटाकर 156 डॉलर कर दिया गया है, जिससे परिवारों के लिए अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाना बहुत मुश्किल हो गया है.
“हम इस धन के कारण पिछड़ते जा रहे हैं. हम पर्याप्त महिलाओं की सहायता कर पाने में असमर्थ हैं और हम स्थानीय समुदायों को भी चोट पहुँचा रहे हैं.”
इस इंटरव्यू को स्पष्टता व संक्षिप्तता के लिए सम्पादित किया गया है.
यूएन न्यूज़ हिन्दी: अफ़ग़ानिस्तान और ईरान की सीमा पर फ़िलहाल क्या स्थिति है? क्या ईरान में हिंसक टकराव के कारण अपने देश, अफ़ग़ानिस्तान वापिस लौटने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है?
अराफ़ात जमाल: मैं हाल ही में ईरान से लगी सीमा से लौटा हूँ, और वहाँ पर स्थिति यह है कि अफ़ग़ानिस्तान लौटने वाले लोगों का तांता लगा हुआ है.
ईरान में 12 दिन तक चले युद्ध के अनुभव से गुज़रने के बाद, अपने घर लौटने वाले अफ़ग़ानों की संख्या में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है, जिनमें से बहुत से मामले देश निकाला दिए जाने के हैं.
इस टकराव से पहले एक दिन में औसतन पाँच हज़ार लोग [ईरान-अफ़ग़ानिस्तान] सीमा पार कर रहे थे, लेकिन हाल के दिनों में यह आँकड़ा क़रीब 30 हज़ार तक पहुँच गया. इसका अर्थ यह है कि सीमा पर हाल बेहाल है, लोगों को सातों दिन, चौबीसों घंटे देश निकाला दिया जा रहा है.

लोग बसों में आ रहे हैं और कभी-कभी तो एक साथ पाँच बसों में अपने परिवार के साथ वहाँ पहुँचते हैं. वे हैरान, परेशान, थके हुए और भूखे भी हैं. सीमा पर अभी यही स्थिति है.
युद्ध के कारण हालात और गम्भीर हो गए हैं, लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि यह पहले से चले आ रहे रुझान का ही हिस्सा है. ईरान से पहले भी अफ़ग़ान शरणार्थी अपने देश लौट रहे थे, जिनमें से कुछ स्वेच्छा से लौटे हैं लेकिन एक बड़ा हिस्सा देश निकाला दिए जाने वाले लोगों का है.
यूएन न्यूज़ हिन्दी: स्थानीय प्रशासन और आगंतुक केन्द्र (reception centers) इतनी बड़ी संख्या में वापसी कर रहे शरणार्थियों को समर्थन देने के लिए कितना तैयार हैं?
अराफ़ात जमाल: इस नज़रिए से, बुनियादी ढाँचा पहले से ही स्थापित किया हुआ है और इसलिए कुछ नई तैयारी की आवश्यकता नहीं है. जहाँ तक अफ़ग़ानिस्तान के तथ्यत: प्रशासन (de facto authorities) की बात है, तो उन्हें [अन्तरराष्ट्रीय] मान्यता तो प्राप्त नहीं है, लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि उन्होंने और अफ़ग़ानिस्तान की जनता ने ईरान और पाकिस्तान से वापसी करने वाले अपने बंधुजन का हर तरह से स्वागत किया है.
यह एक ऐसी भावना नहीं है, जिसे केवल कहा जाए. असल में भी ऐसा ही हो रहा है. मैंने एक भी ऐसा मामला नहीं देखा जहाँ लोगों का स्वागत नहीं किया गया हो.
और यह बात एक ऐसे देश के सन्दर्भ में हो रही है, जहाँ यूएन विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार, 70 फ़ीसदी आबादी बस किसी तरह से अपनी गुज़र-बसर कर पा रही है.
इसलिए, मेरे विचार में यह उदारता का एक असाधारण उदाहरण है. साथ ही, घावों पर मरहम लगाने की प्रक्रिया शुरू करने की इच्छा का और अपने घर वापिस लौट रहे लोगों को स्वीकार करने का भी.
यूएन न्यूज़ हिन्दी: अपने देश लौट रही आबादी की क्या मानवीय आवश्यकताएँ हैं? विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और अन्य निर्बल समूहों की.
अराफ़ात जमाल: जब लोग सीमा पर पहुँचते हैं, तो उन्हें बुनियादी मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति चाहिए होती है. भोजन, जल, सोने-रहने के लिए आश्रय.
मगर जब हम दीर्घकाल के नज़रिये से सोचते हैं, तो स्थिति दूसरी है. बहुत से लोग अफ़ग़ानिस्तानी हैं, मगर वे यहाँ के हैं ही नहीं. अनेक का जन्म ईरान में हुआ है. जो वहाँ पैदा नहीं हुए उनका स्वरूप भी अफ़ग़ानिस्तान की स्थानीय आबादी से अलग है.
मैंने वापिस लौटने वाले कुछ लोगों से मुलाक़ात की, जो पहले ग्राफ़िक डिज़ाइनर रह चुके हैं. मैं कई महिलाओं से मिला जिनके पास रोज़गार, आय का साधन था. एक ऐसे दम्पत्ति से भी, जो पहले कभी अफ़ग़ानिस्तान नहीं आया था.

उनका मूल सम्बन्ध, दूरदराज़ के इलाक़े में स्थित दाइकुंडी से है. एक अभावग्रस्त देश में वापसी करने वाले ये सभी लोग क्या करेंगे? वे जीवन व्यापन किस तरह से करेंगे? उनकी एक ऐसे देश में वापसी बड़ी चुनौती है, जोकि उन्हें वापिस लेने के लिए तैयार नहीं है.
आपने महिलाओं व लड़कियों की स्थिति का उल्लेख किया. यह हमारे लिए एक बड़ी चिन्ता का विषय है. हम इस देश में अत्यधिक स्तर पर लैंगिक अन्याय की स्थिति को भली-भांति जानते हैं.
ईरान से वापसी करने वाले लोग एक ऐसी व्यवस्था के आदी हैं, जहाँ लड़के-लड़कियों को शिक्षा प्रदान की जाती है, जहाँ अफ़ग़ान महिलाओं को भी रोज़गार मिलता है.
मगर, ये सभी लोग अब एक ऐसे देश में लौट रहे हैं, जहाँ यह अब सम्भव ही नहीं है. यह हमारे लिए गम्भीर चिन्ता का विषय है. फिर हमें, कुछ विशिष्ट पृष्ठभूमि वाले लोगों के सरंक्षण की चिन्ता है.

अल्पसंख्यक वापिस आ रहे हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो अतीत की सरकारों से जुड़े रहे हैं, और महिलाएँ भी हैं. इसलिए हम पूरी तरह निगरानी कर रहे हैं ताकि सावधानीपूर्वक ऐसे संरक्षण मामलों, ज़रूरतों का ध्यान रखा जा सके.
यूएन न्यूज़ हिन्दी: आपने ईरान-अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर स्थिति के बारे में बताया. पाकिस्तान की सीमा पर क्या हालात हैं, जहाँ अक्टूबर 2023 के बाद से ही अफ़ग़ान शरणार्थियों की वापसी शुरू हो गई थी?
अराफ़ात जमाल: यह इस देश के तक़दीर का एक दुखद प्रमाण है कि भले ही यहाँ चार दशक बाद अन्तत:, आन्तरिक तौर पर शान्ति स्थापित हो गई हो, इसे पाकिस्तान और ईरान से जबरन बाहर भेज दिए गए या फिर वहाँ से वापिस लौट रहे अफ़ग़ान शरणार्थियों की लहर से जूझना पड़ रहा है.
पाकिस्तान द्वारा 2023 में इस प्रक्रिया की शुरुआत किए जाने के बाद से अब तक, हमने देखा है कि 35 लाख अफ़ग़ान इन नाज़ुक परिस्थितियों में अपने देश लौटे हैं. पाकिस्तान ने लोगों को देश निकाला भी दिया है और कुछ लोग स्वेच्छा से भी लौट रहे हैं. यह जारी है और अप्रैल [2025] में ये अपने सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गया.
फ़िलहाल, हर दिन औसतन कुछ हज़ार लोग अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर पहुँच रहे हैं. हमें चिन्ता 1 जुलाई तक तय की गई समयसीमा के बारे में है जिसके बाद पाकिस्तान ने कहा है कि शरणार्थी पंजीकरण कार्ड (POR) वाले लोगों के लिए भी यह प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
हम उसके लिए तैयारी कर रहे हैं, और पाकिस्तान सरकार के साथ भी चर्चा हो रही है ताकि कुछ लचीला रुख़ अपनाया जा सके.

यूएन न्यूज़ हिन्दी: यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब मानवीय सहायता उद्देश्यों के लिए वित्तीय समर्थन में बड़ी कटौती दर्ज की जा रही है. इससे यूएन शरणार्थी एजेंसी के कामकाज पर किस तरह से असर हुआ है? इस कठिन समय में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिए आपका क्या सन्देश है?
अराफ़ात जमाल: इस [कटौती] ने हमारे कार्यक्रमों को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है. आपको दो उदाहरण बताना चाहूँगा: एक तो यह कि हम सीमा पर वापिस लौट रहे अफ़ग़ान परिवारों को नक़द अनुदान देते रहे हैं, जोकि एक परिवार के लिए क़रीब 2,000 डॉलर है. यह परिवार के आकार पर निर्भर करता है.
अफ़ग़ानिस्तान में दो हज़ार डॉलर इस बड़ी उठापठक को सहन करने के लिए पर्याप्त हैं. नक़द अनुदान को पाने वाली लगभग 46 प्रतिशत आबादी के लिए यह एक तरह से देश में फिर से स्थापित होने का ज़रिया है.
दूसरे शब्दों में, वे अपने लिए ज़मीन ख़रीद सकते थे, छोटे व्यवसाय में निवेश भी किया जा सकता था, तो यह संक्रमण के दौर में सहायता थी ताकि लोग अपने पैरों पर खड़े होने में समर्थ हों.
लेकिन वित्तीय सहायता में कटौतियों की वजह से हम अब इसका 1/7 मदद ही मुहैया कराने में सक्षम हैं. यानि हम अब प्रति परिवार 2,000 डॉलर से प्रति परिवार 156 डॉलर पहुँच तक पहुँच गए हैं. अफ़ग़ानिस्तान जैसे देश में भी 156 डॉलर कुछ मायने नहीं रखते हैं.

इस धनराशि से कोई व्यक्ति एक या दो सप्ताह ही बुनियादी आवश्यकताओं पर गुज़र-बसर कर सकता है. इससे जीवन को फिर पटरी पर लाने में कोई मदद नहीं मिलती है. इसलिए सहायता धनराशि में आ रही कमी का एक बड़ा परिणाम यह है कि आप स्थिरता के लिए परिस्थितियों का निर्माण नहीं कर रहे हैं.
दूसरा, आपने महिलाओं व लड़कियों की बात की. मैं आपको एक उदाहरण दूँगा. मौजूदा चुनौतियों व देश भर में पाबन्दियों के बावजूद, हम महिलाओं व लड़कियों के लिए शानदार काम करने में समर्थ रहे हैं.
उदाहरणस्वरूप, हमने पश्चिमी क्षेत्र में स्थित हेरात शहर में केवल महिलाओं के लिए एक तीन-मंज़िला मॉल का निर्माण किया है. हमने 400 दाइयों को प्रशिक्षण दिया है. हमने छोटे व्यवसायों को शुरू करने में अनगिनत महिलाओं को समर्थन दिया है.

देश में जो सख़्त नियमों व बन्दियों के दायरे में यह किया गया है, चूँकि हमारे पास इस कार्य के लिए धनराशि उपलब्ध थी, जिससे हमारे लिए न केवल महिलाओं तक पहुँचना, बल्कि पुरुषों के लिए मदद मुहैया कराना भी सम्भव हुआ, जो हमारी परियोजनाओं के लिए साहसपूर्वक अपना योगदान देने के लिए तैयार हैं.
इस धनराशि के बिना अब पिछड़ते जा रहे हैं. हम पर्याप्त संख्या में महिलाओं की मदद कर पाने में असमर्थ हैं और हम उन समुदायों को भी ठेस पहुँचा रहे हैं जिन्होंने इन परियोजनाओं की मेज़बानी की पेशकश की है, जिन्होंने कई मामलों में नैतिकता पुलिस व अन्य का सामना किया है, ताकि लोगों की मदद कर पाएंगे. यह हम सभी के लिए एक बहुत बड़ा झटका है.