वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
ग्राम पंचायत की बैठक से पहले चर्चा करते, बाल सभा के सदस्य.

बदलाव की बुनियाद: राजस्थान में बाल पंचायतों व सभाओं से उभरती बच्चों की आवाज़

© UNICEF/Mithila Jariwala
ग्राम पंचायत की बैठक से पहले चर्चा करते, बाल सभा के सदस्य.

बदलाव की बुनियाद: राजस्थान में बाल पंचायतों व सभाओं से उभरती बच्चों की आवाज़

मानवाधिकार

भारत के राजस्थान राज्य के ग्रामीण इलाक़ों में बच्चे, अब बाल विवाहशिक्षापर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर न केवल चर्चा कर रहे हैंबल्कि समाधान के लिए ठोस योगदान भी दे रहे हैं. यह सम्भव हुआ है बाल पंचायत और बाल सभा के ज़रिए, जिससे 10 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों व युवाओं को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाने का अवसर मिल रहा है.

भारत में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) कार्यालय और राजस्थान राज्य के पंचायती राज विभाग द्वारा समर्थित यह पहल, 'बाल अधिकार सन्धि' के सिद्धांतों पर आधारित है, जोकि ग्राम स्तर के लोकतंत्र में बच्चों की सक्रिय भागेदारी सुनिश्चित करती है.

बाल पंचायत एक ऐसा मंच है, जहाँ बच्चे लोकतांत्रिक तरीक़े से अपने बाल सरपंच और सदस्यों का चुनाव करते हैं.
© UNICEF/Mithila Jariwala
बाल पंचायत एक ऐसा मंच है, जहाँ बच्चे लोकतांत्रिक तरीक़े से अपने बाल सरपंच और सदस्यों का चुनाव करते हैं.

लोकतंत्र का पहला सबक़

बाल पंचायतें बच्चों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का वास्तविक अनुभव देती हैं – वे लोकतांत्रिक रूप से अपने बाल सरपंच और सदस्यों का चयन करते हैं.

जाहोता ग्राम पंचायत की बाल सरपंच, मिशिका राठौड़ कहती हैं, “यह एक ऐसा मंच है जहाँ हम अपनी ज़रूरतों के बारे में बुज़ुर्गों से बात कर सकते हैं, और वे हमें गम्भीरता से सुनते हैं.”

बैठकों में साफ़-सफ़ाई, स्कूल सुविधाएँ और सामाजिक चुनौतियों पर चर्चा होती हैं, और बच्चों के प्रस्ताव सीधे ग्राम पंचायत में रखे जाते हैं.

अपनी दादी के साथ, वसुंधरा.
© UNICEF/Mithila Jariwala
अपनी दादी के साथ, वसुंधरा.

बाल विवाह के विरुद्ध मोर्चा

दर्दा टुर्की ग्राम पंचायत की बाल सदस्य, वसुंधरा शर्मा ने बताया कि जब वह 12 वर्ष की थीं, तो उनके परिवार ने उनका विवाह तय करना चाहा, “मैंने बाल पंचायत के ज़रिए विरोध किया और समझाया कि यह हानिकारक है.”

वसुंधरा की पहल से गाँव में अब तक 50 बाल विवाह रोके जा चुके हैं. बच्चे 1098 हेल्पलाइन जैसी जानकारी साझा करके जागरूकता बढ़ा रहे हैं और बदलाव लाने में सहायक बन रहे हैं.

नारंगी कुमार उच्च शिक्षा के लिए, अपने गाँव से दूर एक विद्यालय में दाख़िला लेने वाली पहली लड़की थीं.
© UNICEF/Mithila Jariwala
नारंगी कुमार उच्च शिक्षा के लिए, अपने गाँव से दूर एक विद्यालय में दाख़िला लेने वाली पहली लड़की थीं.

शिक्षा की नई राह

नारंगी कुमार कहती हैं, “हमारे गाँव की कोई भी लड़की आठवीं से आगे नहीं पढ़ पाई थी क्योंकि पास में स्कूल नहीं था. मैं पहली हूँ जिसने दूर के एक स्कूल में दाख़िला लिया.”

उनकी प्रेरणा से 21 और बच्चों ने उच्च शिक्षा में दाख़िला लिया, जिससे यह साबित होता है कि एक आवाज़ भी बड़े बदलाव को प्रोत्साहन दे सकती है.

बाल सभा की सदस्य, पूजा, मासिक धर्म स्वच्छता पर खुलकर सम्वाद करने को बढ़ावा देने में मदद कर रही हैं.
© UNICEF/Mithila Jariwala
बाल सभा की सदस्य, पूजा, मासिक धर्म स्वच्छता पर खुलकर सम्वाद करने को बढ़ावा देने में मदद कर रही हैं.

मासिक धर्म स्वच्छता पर सम्वाद

दर्दा टुर्की पंचायत की बाल सदस्य, पूजा शर्मा, मासिक धर्म को लेकर चुप्पी तोड़ रही हैं. वो कहती हैं, “मैं अपनी बहनों को स्वच्छता का महत्व समझाती हूँ और बताती हूँ कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है.”

बाल पंचायत की बैठकों में सैनिटरी पैड निपटान और स्वच्छता पर खुलकर चर्चा होती है, जिससे एक स्वस्थ, खुला और जागरूक माहौल बन रहा है.

बाल सभा के बच्चे, गाँव वालों को पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
© UNICEF/Mithila Jariwala
बाल सभा के बच्चे, गाँव वालों को पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

पर्यावरण रक्षक 

जाहोता पंचायत की बाल सरपंच मिशिका राठौड़ गर्व से बताती हैं, “पहले गाँव में सिर्फ 54 पेड़ थे - आज हम 54 हज़ार पेड़ लगा चुके हैं!”

प्लास्टिक प्रदूषण के विरुद्ध भी प्रयास जारी हैं. जहूता के बच्चे प्लास्टिक मुक्त अभियान, कचरा प्रबन्धन, और हरित कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. वे बोतलों में प्लास्टिक के छिलके इकट्ठा कर पंचायत को सौंपते हैं - जिससे गाँव में स्वच्छता बनी रहती है.

राजस्थान की दर्दा टुर्की ग्राम पंचायत के सरपंच, अब्दुल करीम ने बताया कि, “बच्चों की मांगें, बुनियादी ढाँचे में वास्तविक परिवर्तन ला रही हैं. बच्चों की मांग पर, मैंने अपने पंचायत के सभी स्कूलों में स्वच्छ और बड़े शौचालय बनवाए हैं.."

शौचालय से लेकर योजनाओं के ज़रिए वित्त पोषित डिजिटल पुस्तकालयों तक, ये युवा आवाज़ें यह सुनिश्चित कर रही हैं कि स्कूल सर्वजन के लिए सुरक्षित और सुलभ हों.

बाल सभा सदस्यों ने प्लास्टिक प्रदूषण के विरुद्ध भी मुहिम छेड़ी है.
© UNICEF/Mithila Jariwala
बाल सभा सदस्यों ने प्लास्टिक प्रदूषण के विरुद्ध भी मुहिम छेड़ी है.

इसके अलावा, एक योजना के तहत, सभी स्कूलों में डिजिटल पुस्तकालय की व्यवस्था भी शुरू की गई है. ये बाल नेता अब केवल सवाल नहीं उठा रहे, बल्कि नीतिगत परिवर्तन के वाहक बनते जा रहे हैं.

बाल सभाएँ: परिवर्तन की चौपाल

त्रैमासिक बाल सभाएँ, बच्चों को स्थानीय नेतृत्व के साथ सम्वाद का अवसर देती हैं. मिशिका राठौड़ ने ऐसी ही एक सभा में कहा कि, “हम आज सरपंच सर के साथ बाल सभा में हैं – उनसे आप खुलकर कुछ भी पूछ सकते हैं.”

इन सभाओं में खेल मैदान, सड़क सुधार, और स्कूल सुविधाओं की माँग की जाती है, जिससे योजना निर्माण में बच्चों की आवाज़ शामिल होती है.

एक बाल सभा में, मिशिका राठौड़.
© UNICEF/Mithila Jariwala
एक बाल सभा में, मिशिका राठौड़.

आने वाले कल की तस्वीर

मिशिका कहती हैं, “हमारे विचार अगली पीढ़ी को दिशा देंगे – अपना भविष्य उज्ज्वल और समृद्ध बनाने के लिए, हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा.”

“हमारी पंचायत – बाल-अनुकूल पंचायत” के नारों के साथ, ये बच्चे एक ऐसे राजस्थान की कल्पना को साकार कर रहे हैं जहाँ हर बच्चे की आवाज़ सुनी जाए, उसके हित नज़रअन्दाज़ न किए जाएँ और वो सशक्त महसूस करे.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.