भारत: बचपन की मज़बूत बुनियाद के लिए, स्वस्थ ‘आरम्भ’
बचपन को मानव जीवन का आधार माना गया है और इस बुनियाद पर ही किसी बच्चे की पूरी ज़िन्दगी का रूप व आकार निर्धारित होता है. भारत में यूनीसेफ़, महाराष्ट्र प्रदेश में, अपने विशेष कार्यक्रम “आरम्भ” के ज़रिए, मानवीय जीवन की इसी बुनियाद को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है.
यूनीसेफ़ के कार्यक्रम ‘आरम्भ’ के ज़रिए, बच्चों के जीवन के शुरूआती 1000 दिनों के दौरान, सम्पूर्ण पोषण देकर, शिक्षा, खेल व देखभाल प्रदान करके, एक ख़ुशहाल शुरुआत देने के प्रयास किए जा रहे हैं.
इस पहल का मुख्य उद्देश्य है - बच्चों के मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास के लिए पोषण, खेल, स्नेह एवं अभिभावकों की भागेदारी को केन्द्र में लाना.
इसमें कोई सन्देह नहीं कि शिशु के जन्म के बाद पहले 1000 दिन उसके सम्पूर्ण विकास की नींव होते हैं.

यूनीसेफ़ और महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (MGIMS) की साझेदारी में शुरू हुआ ‘आरम्भ’ कार्यक्रम, अब महाराष्ट्र सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का प्रमुख हिस्सा बन चुका है.
यूनीसेफ़ की पोषण विशेषज्ञ राजलक्ष्मी नायर बताती हैं कि इस पहल ने “आपका बच्चा कितना कुपोषित है” जैसे वाक्यांश को “आपका बच्चा कितना स्वस्थ है” में बदलकर सकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया है.
खेल, स्नेह और परवरिश की शक्ति

‘आरम्भ’ कार्यक्रम का ध्यान केवल पोषण पर ही केन्द्रित नहीं है, बल्कि बच्चों के साथ बातचीत करना, उनके साथ खेलना और देखभाल के ज़रिए मस्तिष्क के विकास पर है.
एक लाख 17 हज़ार से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 2,850 पर्यवेक्षक, पूरे महाराष्ट्र प्रदेश में पालक सभाएँ और पालक मेले आयोजित कर रहे हैं.
इनमें अभिभावकों को अपने बच्चों से जुड़ने और उनके विकास में योगदान देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शीतल करमाकर बताती हैं, “हम अभिभावकों को उनके बच्चों से जोड़ने के लिए खेलों का इस्तेमाल करते हैं."
"और हम उन्हें समझाते हैं कि हर खेल, बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास को प्रभावित करता है. वहीं साथ-साथ खेलने से, बच्चे का भावनात्मक और सामाजिक विकास होता है.”

एक समय चुपचाप रहने वाला मितांशु, अब आत्मविश्वासी होकर दौड़कर आता है, खेलता है और हँसता है.
उसकी माँ बताती हैं कि आंगनवाड़ी केन्द्र और पालक सभाओं में भाग लेने के बाद उसमें चमत्कारी बदलाव आया है.
समुदाय की भूमिका और पिता की भागेदारी
कार्यक्रम में पिता की भूमिका को भी सक्रिय किया गया है. अभिभावकों को समझाया गया है कि केवल पोषण नहीं, बल्कि बच्चों से जुड़ाव और संवाद भी विकास के लिए अहम है.
बहुत से परिवारों में पिता अब बच्चों को खाना खिलाने, खेलने और समय बिताने जैसे कार्यों में सक्रियता से भाग ले रहे हैं.
मितांशु के पिता नीलेश कहते हैं, “अब मैं अपने बेटे को पीठ पर लादकर घोड़ा-गाड़ी खेलता हूँ, और वह बहुत ख़ुश होता है.”

प्रदेश व्यापी विस्तार
‘आरम्भ’ की शुरुआत औरंगाबाद और यवतमाल में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हुई थी.
आज यह पूरे महाराष्ट्र प्रदेश में लागू है और इसे महिला एवं बाल विकास विभाग, आशा कार्यकर्ता, परियोजना अधिकारी और ज़िला कार्यक्रम अधिकारी मिलकर चला रहे हैं.
अधिकारियों की योजना, इस कार्यक्रम को शहरी क्षेत्रों तक पहुँचाने, और बच्चे के जन्म के पहले 1000 दिनों की महत्ता के साथ-साथ, 5 वर्ष तक के बाल विकास की ओर भी ध्यान केन्द्रित करने की है.
बाल कल्याण की ओर बढ़ते क़दम
‘आरम्भ’ ने यह सुनिश्चित किया है कि बच्चों को जीवन की शुरुआत में ही वह देखभाल, पोषण और स्नेह मिले जिसकी उन्हें ज़रूरत है.
यह पहल अब न केवल सरकारी नीति का हिस्सा है, बल्कि हर घर और हर समुदाय में एक सकारात्मक बदलाव की लहर बन चुकी है - जहाँ हर बच्चा खिल उठे, हर माता-पिता ज़िम्मेदारी से जुड़ें, और हर आरम्भ एक सुनहरा भविष्य बने.

यूनीसेफ़ का योगदान
राजलक्ष्मी नायर बताती हैं, “यूनीसेफ़ ने विज्ञान को नीतियों से जोड़ा और महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ साझेदारी के ज़रिए पोषण संरचना को मज़बूत किया गया.”
आज ‘आरम्भ’, राज्य सरकार की एक प्रमुख योजना बन चुकी है, जिसका विस्तार और मज़बूती सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है.
