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बहादुर दाई, जो तालेबान के सत्ता अधिग्रहण के बाद भी, काम पर डटी रहीं

अफ़ग़ान दाई मरीज़ा अहमदी ने बामियान प्रान्त में एक दूरदराज़ के परिवार स्वास्थ्य केन्द्र में, सुग़रा के बच्चे फ़रहाद को जन्म दिलाने में मदद की.
© UNFPA Afghanistan
अफ़ग़ान दाई मरीज़ा अहमदी ने बामियान प्रान्त में एक दूरदराज़ के परिवार स्वास्थ्य केन्द्र में, सुग़रा के बच्चे फ़रहाद को जन्म दिलाने में मदद की.

बहादुर दाई, जो तालेबान के सत्ता अधिग्रहण के बाद भी, काम पर डटी रहीं

स्वास्थ्य

संयुयक्त राष्ट्र की प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी - UNFPA अफ़ग़ानिस्तान में, 2021 से ही 70 पारिवारिक स्वास्थ्य केन्द्रों को सहायता प्रदान कर रही है. यह एक ऐसा आँकड़ा है जो अत्यन्त चुनौतीपूर्ण माहौल के बावजूद, छह गुना से भी ज़्यादा बढ़कर, 477 पर पहुँच गया है. 2021 के बाद सेइन क्लीनिकों ने 50 लाख से अधिक अफ़ग़ान लोगों को, ख़ासतौर पर दूरदराज़ व दुर्गम क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ कराई गई हैं. ऐसे ही एक क्लीनिक में काम करने वाली एक दाई की कहानी, जिसने अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में भी अपना काम नहीं रोका.

“अगर मैं चली जाती तो एक माँ और उसका शिशु बच नहीं पाते. मैं रुक गई क्योंकि लोगों, ख़ासतौर पर गर्भवती महिलाओं को मेरी मदद की ज़रूरत थी."

मारीज़ा अहमदी को, बामयान प्रान्त के अहंगरन पारिवारिक स्वास्थ्य निवास में काम करते हुए एक वर्ष ही हुआ था, जब अगस्त 2021 में तालेबान ने देश की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया.  

विदेशी सेना के अचानक बाहर जाने से, अफ़ग़ानिस्तान के लाखों लोगों, विशेषकर लड़कियों के जीवन में अफ़रा-तफ़री मच गई.

मारीज़ा अहमदी ने संयुक्त राष्ट्र की यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी UNFPA के साथ बातचीत में बताया, “मैं बहुत चिन्तित थी, लेकिन उन लोगों को छोड़कर नहीं जा पाई, जिन्हें हमारी सेवाओं की ज़रूरत थी – स्वास्थ्य सुविधाएँ बन्द होने से गर्भवती महिलाएँ बहुत परेशान थीं. इसलिए मैंने पारिवारिक स्वास्थ्य निवास बन्द नहीं किया.”

सत्ता पर तालेबान के नियंत्रण का, सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों पर अत्यधिक गम्भीर असर पड़ा और अस्पतालों व क्लीनिकों को या तो जबरन बन्द करवा दिया गया या वो काम करने लायक नहीं बचे. साथ ही उसका स्टाफ़ सुरक्षित तरीक़े से वहाँ काम करने में असमर्थ हो गया.

अहंगरन क्लीनिक से मदद माँगने वाले लोगों में, नौ महीने की गर्भवती महिला, 29 वर्षीय सुग़रा भी थीं.

वो बताती हैं, “इससे कुछ दिन पहले, मैं बामयान शहर के प्रांतीय अस्पताल गई, लेकिन स्टाफ़ ने मुझे बताया कि वो नहीं जानते कि अस्पताल आगे कितने दिन खुला रहेगा.”

सुग़रा, बिगड़ती सुक्षा स्थिति के बीच शहर में चिकित्सा सुविधा पाने की अनिश्चितता के कारण बहुत तनाव में आ गईं. जैसे ही उन्हें ये अहसास हुआ कि प्रसव पीड़ा शुरू होने वाली है, उन्होंने अहंगरन गाँव में अपने पिता के घर जाने का फ़ैसला कर लिया.

मारीज़ा अहमदी ने, UNFPA समर्थित स्वास्थ्य केन्द्र में काम करते हुए, अनेक महिलाओ को, बच्चा जनने में मदद की है.
© UNFPA Afghanistan

सेवा के लिए तत्पर मानवीय कार्यकर्ता

सुग़रा ने गाँव पहुँचने के लिए ट्रक में पीछे बैठकर, टूटी-फूटी सड़कों पर अपने पति व ननद के साथ, तीन घंटे का लम्बा सफ़र तय किया. 

वो याद करती हैं, “मुझे डर था कि कहीं बच्चा ट्रक में ही पैदा ना हो जाए.”

कुछ दिन बाद, सुग़रा को प्रसव पीड़ा हुई और उन्हें UNFPA से समर्थित, पारिवारिक स्वास्थ्य निवास ले जाया गया. इस इलाक़े का यह एकमात्र स्वास्थ्य केन्द्र है.

“हम सुबह-सुबह वहाँ पहुँचे, लेकिन मुझे पूरे दिन प्रसव पीड़ा जारी रही. दाई ने कहा कि अगर 4 बजे तक शिशु बाहर नहीं आया, तो मुझे प्रांतीय अस्पताल ले जाना पड़ेगा.”

लेकिन जब उन्होंने बामयान शहर के अस्पताल में सम्पर्क किया तो उन्हें मालूम हुआ कि वहाँ का सारा स्टाफ़ वहाँ से भागकर जा चुका है. अब केवल एक ही विकल्प बता था - मारीज़ा अहमदी के साथ अस्पताल तक जाकर बच्चा पैदा करना, क्योंकि उन्हें सीज़ेरियन ऑपरेशन जैसी सम्भावित जटिलताओं के लिए अस्पताल के उपकरणों की ज़रूरत थी और वो क्लीनिक में उपलब्ध नहीं थे.

लेकिन सुग़रा सौभाग्यशाली रहीं कि उसके तुरन्त बाद, उनके प्रसव में प्रगति हुई और उन्होंने 19 अगस्त, 2021 को दोपहर 2 बजे एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया.

देश के लिए प्रतिबद्धता

इस सुरक्षित प्रसव के पीछे एक साहसी दाई का हाथ था. मारीज़ा अहमदी बताती हैं, “वो बेहद कठिन हालात थे, लेकिन उस दौरान एक दिन के लिए भी यह क्लीनिक बन्द नहीं हुआ.”

“मैं भी डरी हुई थी, लेकिन अगर मैं चली जाती तो मातृ व नवजात शिशुओं की मौत की दर घटाने के हमारे सारे प्रयास व्यर्थ चले जाते.”

अफ़ग़ानिस्तान में लम्बे समय से दुनिया भर में सबसे अधिक जच्चा-बच्चा मृत्यु दर रही है. यहाँ गर्भावस्था और प्रसव सम्बन्धी जटिलताओं के कारण हर घंटे एक महिला की मौत हो जाती है - ऐसी मौतें जिन्हें दाइयों की कुशल देखभाल के साथ काफ़ी हद तक रोका जा सकता है.

चूँकि सत्तारूढ़ प्रशासन ने, पुरुष अभिभावक के बिना महिलाओं को काम करने व यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया है,  तो ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं एवं लड़कियों - और आने वाली पीढ़ियों के लिए हालात, अत्यधिक भयावह नजर आ रहे हैं.

उस सप्ताह, मारीज़ा अहमदी ने, बामयान के अन्य ज़िलों से विस्थापित लोगों के तीन प्रसव और करवाए थे.

उन्होंने कहा, “ मैं इसलिए रुकी क्योंकि लोगों को मेरी मदद की ज़रूरत थी और मेरे लिए इन गम्भीर हालात में उनको सेवा देना ज़रूरी था. मैं यहाँ चार साल से काम कर रही थी और इस क्लीनिक में कोई जच्चा-बच्चा मृत्यु नहीं हुई."

सुग़रा अपने बच्चे के जन्म में मदद के लिए, मारीज़ा अहमदी की बहुत शुक्रगुज़ार हैं.
© UNFPA Afghanistan

मुश्किल हाल में ख़िदमत के लिए तत्पर

सुग़रा का पुत्र अब तीन साल का होने वाला है. वो कहती हैं, “जब वो बड़ा हो जाएगा, तो उम्मीद करती हूँ कि वो शिक्षा हासिल कर पाएगा, जिससे अपने व अपने लोगों के लिए एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर पाए.”  

पहले इटली से समर्थन प्राप्त अहंगरन स्वास्थ्य सुविधा, वर्तमान में अमेरिका से वित्त पोषित है. बामयान से बहुत दूर स्थित इस स्वास्थ्य केंद्र में, आसपास रहने वाले, अलग-थलग पड़े समुदायों को जीवनरक्षक स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं.

दाइयाँ, आवश्यक प्रजनन, मातृ, नवजात और किशोर स्वास्थ्य आवश्यकताओं की लगभग 90 प्रतिशत को पूरा कर सकती हैं. फिर भी, वैश्विक स्तर पर लगभग 9 लाख प्रशिक्षित दाइयों की कमी है. 

कुशल प्रसव की माँग को पूरा करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान को तत्काल अतिरिक्त 18 हज़ार दाइयों की ज़रूरत है. दाइयों की इस क़िल्लत से जच्चा-बच्चा के लिए जोखिम रहता है और बड़े पैमाने पर महिलाओं एवं लड़कियों की शारीरिक स्वायत्तता कमज़ोर होती है.