बढ़ते समुद्रों से परेशान प्रशान्त देशों के लिए जलवायु न्याय की पुकार
समुद्रों के बढ़ते स्तर, क़र्ज़ और भूराजनैतिक तनावों से जूझ रहे प्रशान्त द्वीपीय देश, तभी अपने लिए खड़े हो सकते हैं, जब अन्तरराष्ट्रीय ऋणदाता, अहम विकास वित्त पोषण के लिए आसान शर्तों के लिए सहमत हों. साथ ही दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक देशों को, जलवायु आपदा का सामना करने के लिए, विशाल पैमाने पर वित्तीय योगदान करना होगा.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने गुरूवार को समोआ की यात्रा के दौरान यह आग्रह किया है. उन्होंने समोआ में बढ़ते समुद्र स्तर और तटीय बहाव के कारण अपने घरों से उजड़ने वाले लोगों से मुलाक़ात भी की है.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि प्रशान्त द्वीपों में रहने वाले लोगों ने, जलवायु परिवर्तन के पीड़ित बनने से इनकार कर दिया है. मगर लाखों लोगों के लिए अस्तित्व के संकट का मुक़ाबला करने के लिए उनकी महत्वाकांक्षी योजनाएँ, अभी रुकी पड़ी हैं, क्योंकि उनके पास वो धन नहीं पहुँच रहा है जिसका उनसे वादा किया गया है.
एंतोनियो गुटेरेश ने समोआ की राजधानी आपिया में यूएन हाउस में पत्रकारों से कहा, “हम जलवायु न्याय के लिए एक कठिन संघर्ष कर रहे हैं... [मगर] हम वो धन आता नज़र नहीं आ रहा है जिसकी ज़रूरत है."
"इसीलिए हम प्रशान्त देशों की स्थिति वाले देशों की ज़रूरतों के लिए धन मुहैया कराने के लिए अन्तरराष्ट्रीय वित्ती संस्थानों में सुधार किए जाने की पुकार लगा रहे हैं.”
कथनी से कहीं अधिक
एंतोनियो गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न झटकों की भरपाई करने के लिए, धनी देशों की तरफ़ से विकासशील देशों के लिए, सकारात्मक तरीक़े अपर्याप्त रहे हैं.
उन्होंने इस सन्दर्भ में, वर्ष 2022 में मिस्र में सम्पन्न हुए यूएन जलवायु सम्मेलन (कॉप27) में सहमत हानि और क्षति कोष की ओर इशारा किया.
महासचिव ने कहा कि विकासशील देशों ने वर्ष 2021 में उस जलवायु अनुकूलन धनराशि को भी दोगुना करने का संकल्प व्यक्त किया था जिसे वर्ष 2009 में प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर निर्धारित किया गया था.
उन्होंने साथ ही यह भी ध्यान दिलाया कि तस्वीर को पूरी तरह बदल देने वाली इस धनराशि को अभी तक पूर्ण समर्थन प्राप्त नहीं हुआ है.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “...सभी देशों को जलवायु वित्त और इस वर्ष के कॉप सम्मेलन से आने वाले मज़बूत वित्तीय नतीजों पर अपने वादों को पूरा करना होगा. इस सम्मेलन में 2025 के वित्तीय संकल्पों पर भी चर्चा होगी.”
समुद्री दीवार ख़तरे में
यूएन प्रमुख ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि समोआ के लोगों को किस तरह, जलवायु के झटकों में बार-बार पीछे धकेला गया है. इनमें वर्ष 2009 में आई सूनामी भी शामिल है, जब 192 लोगों की मृत्यु हुई थी.
उन्होंने कहा, “हमने ऐसे लोग देखे हैं जिन्हें अपने घर, भीतर की तरफ़ ले जाने पड़े हैं. हमने ऐसे लोग देखे हैं जो लोग वापिस आ रहे हैं और पुनर्निर्माण कर रहे हैं. हमने ना केवल सूनामी के प्रभावों का मुक़ाबला करने में, बल्कि समुद्री जल के बढ़ते स्तर के प्रभावों और समुद्री तूफ़ानों का सामना करने में लोगों का पक्का इरादा देखा है.”
“मैंने एक ऐसी दीवार देखी है जो समुद्र से गाँव की हिफ़ाज़त कर रही है. 20 वर्षों के दौरान वो दीवार, सूनामी के कारण, समुद्री जल स्तर में बढ़ोत्तरी, और भीषण तूफ़ानों के कारण, पहले ही तीन बार बनाई जा चुकी है.”
वित्तीय विषमताएँ
समोआ जैसे जलवायु संकट के अग्रिम मोर्चे पर मौजूद बहुत से विकासशील देशों को अन्तरराष्ट्रीय ऋणदाताओं से उच्च दरों पर क़र्ज़ पर निर्भर रहना पड़ता है, जबकि निर्धन देशों के क़र्ज़ कहीं कम दरों पर मिलता है. ऐसे हालात के कारण, इन देशों को ख़ुद की मदद करने के लिए अक्सर धन उपलब्ध नहीं होता है.
अन्तरराष्ट्रीय वित्त में, इस ऐतिहासिक ढाँचागत विषमता को दूर करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के साथ, राष्ट्रीय आय के एक नए मापन पर काम कर रहा है, इसका नाम है – बहुकोणीय निर्बलता सूचकांक (MVI), ताकि इन देशों को भी सतत विकास के लिए ज़रूरी और अहम धन उपलब्ध हो सके.
यूएन महासचिव ने समोआ जैसे लघु द्वीपीय देशों के लिए, विकास कोष में लगभग 80 अरब डॉलर धन की उपलब्धता की अपनी इच्छा भी दोहराई