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नेपाल: प्राकृतिक नज़ारों की बहाली के साथ, देश के चहेते पशुओं की वापसी

तराई क्षेत्र को बहाल करने के प्रयासों से, नेपाल की बाघों की आबादी में वृद्धि हुई है.
UN News/Vibhu Mishra
तराई क्षेत्र को बहाल करने के प्रयासों से, नेपाल की बाघों की आबादी में वृद्धि हुई है.

नेपाल: प्राकृतिक नज़ारों की बहाली के साथ, देश के चहेते पशुओं की वापसी

जलवायु और पर्यावरण

नेपाल के हिमालय क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम UNEP की एक अनूठी पहले से, न केवल इलाक़े में वनों की पुनर्बहाली सम्भव हुई है, बल्कि वहाँ के जंगलों में वन्यजीवों ने दोबारा विचरण करना शुरू कर दिया है. ख़ास बात ये है कि इन प्रयासों से बाघों की संख्या में तीन गुना वृद्धि देखी गई है.

भदई थारू नेपाल के जंगलों में, एक बाघ के पंजे की चपेट में आ गए थे जिससे घायल होकर बाँई आँख की रोशनी चली गई थी. लेकिन इस हादसे से, समुदाय का यह नेता समझ पाया कि आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए, प्रकृति को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.

हिमालय की तलहटी में बाघों का गढ़ है. इस तराई क्षेत्र के एक जंगल में अवैध शिकार विरोधी गश्त का नेतृत्व करते भदई थारू कहते हैं,  “बाघ ने मुझ पर इसलिए हमला किया क्योंकि मैं उसके घर में घुस गया था. वरना बाघ कभी भी इनसानों पर हमला नहीं करते."

तराई क्षेत्र, वन्य जीवन से समृद्ध है. लेकिन साथ ही यह उन लगभग 80 लाख लोगों का निवास स्थान भी है, जो लकड़ी से लेकर दवा तक, हर चीज़ के लिए इसके जंगलों पर निर्भर हैं, और उन्होंने खेती के लिए बड़े क्षेत्र साफ़ कर दिए हैं. 

इसके कारण पर्यावरणीय क्षरण होने से, गैंडों एवं हाथियों के साथ-साथ बाघ भी लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में पहुँच गए हैं.

अनूठी पहल

लगभग 40,000 नेपाली नागरिक, तराई क्षेत्र में वन्यजीवों की रक्षा के प्रयास में शामिल हो गए हैं, जिनमें से कई अवैध शिकार विरोधी गश्त में भाग ले रहे हैं.
© UNEP/Todd Brown

लेकिन हाल के वर्षों में, Terai Arc Landscapes पहल के तहत हालात बदले हैं. सरकार के नेतृत्व में शुरू की गई इस पहल के तहत, तराई के जंगलों की रक्षा व पुनर्बहाली में मदद की जा रही है, इससे न केवल नेपाल की समृद्ध जैव विविधता को हुई हानि पलटने में सफलता हासिल हुई है, बल्कि क्षेत्र के लोगों को अक्षुण्ण पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ भी मिला है.

2001 में शुरू हुई इस पहल में, एक सींग वाले गैंडे और एशियाई हाथी के साथ-साथ, रॉयल बंगाल टाइगर जैसी, ख़तरे में पड़ी प्रजातियों के लिए आवास सुरक्षित किया गया है. इसके अलावा, संरक्षित क्षेत्रों  को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए सात गलियारे बहाली किए गए हैं, जिसमें पड़ोसी देश भारत में स्थित वन्यजीव शरणस्थल भी शामिल हैं. 

मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं के समर्थन हेतु उपायों के साथ, गलियारा बहाली परियोजना को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विश्व बहाली फ्लैगशिप पुरस्कार के ज़रिए मान्यता दी गई थी. 

पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के हिस्से के रूप में प्रस्तुत यह पुरस्कार, लोगों एवं वन्यजीवों, दोनों के हित में पारिस्थितिकी तंत्र बहाल करने के उत्कृष्ट उदाहरण पेश करता है.

नेपाल के वन एवं पर्यावरण मंत्री बीरेंद्र प्रसाद महतो कहते हैं, “सीमा पार तराई आर्क क्षेत्र, न केवल एक जैविक हॉटस्पॉट है, बल्कि यह संरक्षण के परिदृश्य दृष्टिकोण की प्रभावशीलता का एक सच्चा सबूत भी देता है."

"हम संयुक्त राष्ट्र से मिली इस मान्यता के लिए बहुत आभारी हैं और इससे हमें अपने जंगलों, वन्यजीवों और समुदायों के सामने आने वाली मौजूदा एवं नई चुनौतियों से निपटने के लिए प्रोत्साहन मिला है." 

हिमालय हॉटस्पॉट 

Terai Arc Landscape पहल के ज़रिए, 24 लाख 70 हज़ार हैक्टेयर के जैव विविधता केन्द्र की पुनर्बहाली की जा रही है, जो 75 लाख लोगों का निवास स्थान भी है. 

इसके कई ग्रामीण इलाक़ों में, विशेष रूप से नेपाल के राष्ट्रीय उद्यानों के बाहर के क्षेत्रों में, वनों की कटाई, विखंडन, अतिक्रमण व अवैध शिकार की वजह से भूमि का गम्भीर क्षरण हुआ है.

संरक्षित क्षेत्रों के बीच गलियारों में, लगभग 65 हज़ार हैक्टेयर बंजर भूमि का पुर्नवीनीकरण किया गया है, जो नेपाल की राजधानी काठमांडू के आकार से 13 गुना अधिक है. 

स्थानीय समुदाय के लगभग 40 हज़ार सदस्य, अवैध शिकार विरोधी गश्त, वन्यजीव निगरानी तथा पारिस्थितिक पर्यटन जैसी गतिविधियाँ चलाने के लिए सरकार एवं नागरिक समाज समूहों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस परियोजना से लगभग 5 लाख परिवारों को लाभ हुआ है. 

पहल का असर

इन प्रयासों से तेज़ी से प्राकृतिक बहाली सम्भव हुई है, कार्बन संरक्षण, पानी का भंडारण तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति मानव एवं वन्यजीव आबादी की सहनसक्षमता बढ़ी है. कैमरा ट्रैप और रेडियो कॉलर के ज़रिए, अलग-थलग पड़े संरक्षित क्षेत्रों के बीच घूमने वाले बाघों, हाथियों, गैंडों, तेंदुओं, लकड़बग्घों और कई अन्य प्रजातियों का पता लगाने में मदद मिली है. 

इन प्रयासों से, आनुवंशिक विविधता बनाए रखने और विलुप्ती का जोखिम घटाने में भी मदद मिली है. नवीनतम राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, नेपाल में बाघों की आबादी 2009 में 121 से बढ़कर, 2022 में 355 यानि तीन गुना हो गई है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की कार्यकारी निदेशक इंन्गेर ऐंडरसन कहती हैं, " Terai Arc Landscape पहल में, लोगों को प्रकृति से अलग करने के बजाय, लोगों व प्रकृति को क़रीब लाकर, प्रकृति की रक्षा की जाती है." 

इन्गेर ऐंडरसन कहती हैं, “दशकों के अनियंत्रित शोषण और क्षरण के बाद, अब उस सम्बन्ध को दोबारा बनाने और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए संसाधनों की तत्काल आवश्यकता है. जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और बड़े पैमाने पर प्रदूषण से निपटने के लिए यह बेहद ज़रूरी है.''

हिमालय की तलहटी में स्थित तराई क्षेत्र की पुनर्बहाली के प्रयासों से, लगभग 5 लाख परिवारों को लाभ हुआ है.
© UNEP/Todd Brown

समुदाय का समर्थन 

पुनर्बहाली प्रयास का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, खाता गलियारा, जो 200 हैक्टेयर का जंगलों, घास के मैदानों, गाँवों एवं खेतों का इलाक़ा है. यह पश्चिमी नेपाल के बर्दिया राष्ट्रीय उद्यान को भारत के कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य से जोड़ता है. 

इसके लिए अधिकारियों को उन समुदायों का विश्वास हासिल करना ज़रूरी था, जो क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर थे, और जो बहाली को लेकर संशय में थे. इसके लिए अधिकारियों ने जलाऊ लकड़ी पर निर्भरता कम करने के लिए बायोगैस जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत विकसित करके दिखाए. 

टीमों ने पर्यटक होमस्टे व टिकाऊ फर्नीचर निर्माण सहित नई आर्थिक गतिविधियों का भी समर्थन किया.ज़मीन पर जैसे-जैसे दबाव कम हुआ है, पुनर्बहाली गतिविधियाँ तेज़ हो गई हैं. 

सामुदायिक वनों के पुर्नवीनीकरण के लिए, वृक्ष नर्सरियों से बढ़ती संख्या में पौधों की आपूर्ति की जा रही है. साथ ही, मवेशियों के चरने का स्थान विनियमित किया गया है, ताकि प्राकृतिक रूप से जंगलों की पुनर्बहाली सम्भव हो सके. 

परिणामस्वरूप, केवल दो दशकों में गलियारे में वन क्षेत्र एक वर्ग किलोमीटर से बढ़कर लगभग 100 वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया है. 

इस परियोजना के अहम साझीदार, नेपाल में WWF के देश निदेशक, घाना एस गुरुंग कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह चुनौती थी, यह कर दिखाने की - कि क्या हम उन एकीकृत दृष्टिकोणों को एक साथ ला सकते हैं, जिसमें लोग संरक्षण के कारण अपने जीवन में सुधार देख सकें." 

चुनौतियाँ

विश्व पुनर्बहाली फ्लैगशिप पुरस्कार के रूप में मान्यता पाने के साथ ही, 'तराई आर्क लैंडस्केप' परियोजना अब संयुक्त राष्ट्र से तकनीकी और वित्तीय सहायता पा सकेगी.
© UNEP/Todd Brown

लेकिन सफलता से कई चुनौतियाँ भी खड़ी हो गई हैं. बड़े स्तनधारी पशुओं को गाँवों में प्रवेश करने या फ़सल खाने से रोकने के लिए बाड़ लगाने की आवश्यकता है. कुछ किसानों ने कैमोमाइल या पुदीना जैसी कम स्वादिष्ट उपज उगाने का भी रुख़ किया है. मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने का मतलब, जोखिम घटाने के लिए, ख़तरों को पहले से पहचानकर उनसे निपटने की कार्रवाई करना भी है. 

हाल ही में वनों में गश्त पर गए थारू ने, शिकारियों को रोकने और वन्यजीवों की निगरानी के लिए, एक पेड़ के तने पर पंजे के निशान दिखाए.

उन्होंने ख़ाकी वर्दी पहने अपने साथी रेंजरों को निर्देश दिया, "इसे देखकर, हर किसी को मालूम हो जाना चाहिए कि यह बाघों का क्षेत्र है. इसलिए, गश्त करते समय हमें सावधान रहने की ज़रूरत है. हम दूसरों को बता सकते हैं कि एक बाघ इस रास्ते से गुज़रा है और उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे सकते हैं.”‘

 Terai Arc Landscape, विश्व पुनर्बहाली फ्लैगशिप कार्यक्रम के रूप में मान्यता पाने के साथ अब संयुक्त राष्ट्र से तकनीकी और वित्तीय सहायता पाने का हक़दार होगा. 

इस अतिरिक्त सहायता के साथ,  इस पहल के तहत, 2030 तक लगभग साढ़े तीन लाख हैक्टेयर क्षेत्र की बहाली सम्भव होगी. 

WWF के घाना एस गुरुंग कहते हैं, "हमने गैंडा संरक्षण में इतिहास रचा है (और) बाघों की संख्या लगभग तीन गुना अधिक कर दी है. बढ़ती मानव आबादी के अथाह समुद्र के बीच भी यह सम्भव हो पाया - यही वो अनूठा काम है, जो नेपाल ने कर दिखाया है."

यह कहानी पहले यहाँ प्रकाशित हुई.