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ग़ाज़ा में स्कूलों पर इसराइली हमलों में तेज़ी पर गम्भीर चिन्ता

पूरे ग़ाज़ा भर में इसराइली बमबारी से बचने के लिए लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, जिन्हें समुचित आश्रय भी नहीं मिल पा रहा है.
© WFP/Ali Jadallah
पूरे ग़ाज़ा भर में इसराइली बमबारी से बचने के लिए लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, जिन्हें समुचित आश्रय भी नहीं मिल पा रहा है.

ग़ाज़ा में स्कूलों पर इसराइली हमलों में तेज़ी पर गम्भीर चिन्ता

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने ग़ाज़ा में स्कूलों पर इसराइली सेनाओं के बढ़ते हमलों के चलन पर भीषण चिन्ता व्यक्त की है. पिछले एक महीने के दौरान, इन हमलों में, ग़ाज़ा के भीतर ही विस्थापित लोगों में से कम से कम 163 लोग मारे गए हैं, जिनमें बच्चे और महिलाएँ भी हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने ग़ाज़ा में स्कूलों पर इसराइली सेनाओं के बढ़ते हमलों के चलन पर भीषण चिन्ता व्यक्त की है. 

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पिछले एक महीने के दौरान, इन हमलों में, ग़ाज़ा के भीतर ही विस्थापित लोगों में से कम से कम 163 लोग मारे गए हैं, जिनमें बच्चे और महिलाएँ भी हैं.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, बीते एक महीने के दौरान 17 स्कूलों पर हमले गिए गए हैं जिससे इसराइल द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन किए जाने के बारे गम्भीर चिन्ताएँ उपजी हैं. 

इनमें नागरिक और युद्धक ठिकानों में भेद करना, अनुपात के अनुसार बल प्रयोग करना और ऐहतियात बरतने जैसे प्रावधान शामिल हैं.

OHCHR ने इस तरह के हमलों में तेज़ी की तरफ़ भी ध्यान खींचा है. गत सोमवार के बाद से, कम से कम सात स्कूलों को निशाना बनाया गया है. 

इन सभी स्कूलों को, आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDPs) के लिए आश्रय स्थल बनाया हुआ था. इनमें से एक स्कूल को मैदानी अस्पताल भी बनाया गया था.

इसराइल की ज़िम्मेदारियाँ

इसराइली सेना ने दावा किया है कि पाँच स्कूलों को, हमास से सम्बन्धित लोग अपनी गतिविधियों के लिए प्रयोग कर रहे थे.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने ज़ोर देकर कहा है कि इसराइल का यह दावा सही है तो सशस्त्र गुटों द्वारा आम लोगों को सुरक्षा कवच यानी शील्ड की तरह इस्तेमाल किया जाना भी, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का एक बड़ा उल्लंघन है.

“मगर, इस स्थिति से भी, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का सख़्ती से पालन करने की, इसराइल की ज़िम्मेदारी कम नहीं हो जाती है...”

मानवाधिकार कार्यालय का कहना है कि फ़लस्तीनी क्षेत्र पर एक क़ाबिज़ शक्ति के रूप में, इसराइल की यह ज़िम्मेदारी है कि वो विस्थापित आबादी की बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करे.

ग़ाज़ा में इसराइल की भीषण बमबारी में बुनियादी ढाँचा भी तहस-नहस हो गया है और लोगों को रोज़मर्रा की चीज़ों का इन्तेज़ाम करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
© UNRWA

पश्चिमी तट में हत्याएँ

मानवाधिकार कार्यालय - OHCHR ने इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र – पश्चिमी तट में, इसराइली सुरक्षा बलों द्वारा जानलेवा बल के निरन्तर उपयोग पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की है.

ऐसी ख़बरें हैं कि 3 अगस्त को इसराइली हमलों में नौ फ़लस्तीनी मारे गए, जिनमें से पाँच लोगों की मौत "ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से की गई सुनियोजित हत्या थी.

उधर इसराइली बलों ने दावा किया कि मारे गए लोगों में से पाँच लोग "आतंकवादी हमला" करने जा रहे थे. उसी दिन, चार फ़लस्तीनी सशस्त्र लोगों ने, इसराइली बलों के ख़िलाफ़ लड़ाई की और एक इसराइली हवाई हमले में मारे गए.

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मध्य पूर्व क्षेत्र में टकराव और तनाव बढ़ोत्तरी पर चिन्ताएँ

इस बीच, स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने मंगलवार को वृहत्तर मध्य पूर्व क्षेत्र में बढ़ती हिंसा व टकराव की निन्दा की है.

उन्होंने बीते सप्ताहों के दौरान इसराइल द्वारा क़ाबिज़ सीरियाई गोलान पहाड़ियों में हुए एक रॉकेट हमले में 12 लोगों की मौत का ज़िक्र किया, जिनमें अधिकतर बच्चे व किशोर थे.

विशेषज्ञों ने दक्षिणी बेरूत में हिज़बुल्लाह कमांडर की इसराइल द्वारा कथित हत्या और तेहरान में हमास के राजनैतिक प्रमुख इस्माइल हानीयेह की हत्या का भी हवाला दिया.

उन्होंने एक समाचार विज्ञप्ति में कहा, "हम इन हत्याओं से बेहद चिन्तित हैं, जो जीवन के मानव अधिकार का उल्लंघन करती हैं और क्षेत्र में हिंसा और विस्थापन के और अधिक बढ़ने का जोखिम पैदा करती हैं."

स्वतंत्र जाँच की पुकार

मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त इन विशेषज्ञों ने कहा कि ये घटनाएँ पूर्ण, स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच की ज़रूरत को रेखांकित करती हैं, जिसमें सभी प्रासंगिक साक्ष्यों तक पहुँच और सम्बन्धित देशों की तरफ़ पूर्ण सहयोग शामिल है.

उन्होंने सुरक्षा परिषद से क्षेत्र में उन सभी पक्षों को प्रभावी ढंग से जवाब देने की अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने का भी आहवान किया है, जिनकी कार्रवाइयाँ, अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं.

पत्रकारों की हत्या निन्दनीय

इस बीच मत व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मानवाधिकार विशेषज्ञ इरीन ख़ान ने 1 अगस्त को ग़ाज़ा में अल जज़ीरा के पत्रकार इस्माइल अल-ग़ौल और कैमरापरसन रमी अल-रिफ़ी की हत्या की निन्दा की है.

उन्होंने कहा कि इसराइल द्वारा जानबूझकर निशाना बनाए जाने से "इस युद्ध में मारे गए पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की संख्या में पहले से ही भयावह वृद्धि हुई है."

जब इसराइली ड्रोन मिसाइल ने एक वाहन पर हमला किया, तब अल-ग़ौल ने स्पष्ट रूप से चिह्नित प्रैस जैकेट पहन रखी थी. इसराइल की सेना ने अल-ग़ौल की मौत की पुष्टि की है और उन पर "हमास कार्यकर्ता" होने का आरोप लगाया है.

इरीन ख़ान ने ज़ोर देकर कहा, "इसराइली सेना बिना किसी ठोस सबूत के आरोप लगा रही है, मानो कि उसे पत्रकारों के जान से मारने का लाइसेंस मिला हुआ हो. ऐसा किया जाना, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पूरी तरह से उल्लंघन है."

उन्होंने कहा कि वह क़तर स्थित अल जज़ीरा मीडिया नैटवर्क को निशाना बनाकर किए गए हमलों पर नाख़ुशी व्यक्त करती हैं, जिनमें ग़ाज़ा में इसके पत्रकारों की जानबूझकर हत्याएँ किया जाना, इसराइल में अल जज़ीरा के प्रसारण पर पूर्ण प्रतिबन्ध और ब्रॉडकास्टर के ख़िलाफ़ दुर्भावनापूर्ण बदनामी अभियान शामिल है.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद की तरफ़ से की जाती है जिनमें विशेष प्रतिवेदक, स्वतंत्र विशेषज्ञ, कार्य समूह और समितियाँ शामिल हैं. उन्हें कुछ विषयगत क्षेत्रों या देश की स्थितियों में मानवाधिकार स्थिति का आकलन, निगरानी और रिपोर्ट करने का काम सौंपा जाता है. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और राष्ट्रीय सरकारों से स्वतंत्र होकर अपनी व्यक्तिगत क्षमता में काम करते हैं. वे संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है.