भारत: महाराष्ट्र में केले के रेशों से नया भविष्य बुनतीं महिलाएँ
भारत में महाराष्ट्र प्रदेश के नन्दूरबार और जलगाँव ज़िलों में केले के टिकाऊ हरे रेशों से सुन्दर हस्तशिल्प बनाए जा रहे हैं, जिससे सतत कौशल निर्माण के ज़रिए, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है. यह सम्भव हो सका है सैकंड चांस शिक्षा कार्यक्रम के तहत, बनाना फ़ाइबर क्राफ़्ट आजीविका परियोजना के ज़रिए.
2023 में शुरू हुई इस परियोजना के ज़रिए, अब तक 90 महिलाओं को इस कला में प्रशिक्षित किया जा चुका है. इससे न केवल उनके जीवन व आय में सुधार हुआ है बल्कि भारत सरकार के ‘हर एक ज़िले में एक उत्पाद’ नामक मिशन में भी योगदान दिया जा रहा है.
25 वर्षीय युवा विधवा माँ रीना उमेश कोली इस कला को सीखने वाली, अपने गाँव की पहली महिला थीं. वो बताती हैं, “इस कला का प्रशिक्षण लेने से पहले मेरा भविष्य बहुत अनिश्चितता से भरा था.”
रीना आज ना केवल अपने ख़ुद के हस्तशिल्प बनाती हैं, बल्कि अपने समुदाय की अन्य महिलाओं को भी इस काम का प्रशिक्षण देती हैं. वो कहती हैं, "10 दिन के प्रशिक्षण में, मैंने इसके तकनीकी कौशल सीखे और गाँव के दूसरे लोगों के साथ संवाद व बातचीत करने का आत्मविश्वास भी प्राप्त हुआ.”
कार्यान्वयन भागीदार, ‘हेड हेल्ड हाई फाउंडेशन’ के सहयोग से आयोजित किए गए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम में, केले के रेशों के 20 अद्वितीय उत्पादों को तैयार करने का हुनर सिखाया गया.
इन सत्रों में, रीना जैसे प्रतिभागियों ने इसके रचनात्मक पहलुओं के अलावा, मूल्य निर्धारण, पैकेजिंग, ब्रैंडिंग, प्रदर्शनियों, संचालन और उद्यम विकास जैसे, उद्यमशीलता के लिए आवश्यक कौशल पर भी ज्ञान प्राप्त किया. इससे उन्हें अपने व्यवसाय के सृदृढ़ स्थापन व प्रबन्धन में मदद मिली.
भारत में यूएन वीमेन की स्थानीय प्रतिनिधि सूसन फ़र्ग्युसन कहती हैं, “यह प्रेरक पहल, हमारे दिल के बहुत क़रीब है. ‘बनाना फ़ाइबर क्राफ़्ट लाइवलीहुड प्रोजेक्ट’ हमारे ‘सैकंड चांस एजुकेशन’ कार्यक्रम का हिस्सा है. इसके तहत हम महाराष्ट्र के नन्दुरबार में महिलाओं को मज़बूत बनाकर, केले के टिकाऊ रेशों से सुन्दर हस्तशिल्प बनाते हैं.”
उन्होंने कहा, “यह परियोजना मात्र कौशल विकास से कहीं अधिक बढ़कर है; यह महिलाओं को उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करती है और इसका प्रभाव परिवर्तनकारी है!”
उन्होंने बताया कि पहली 90 महिलाओं को प्रशिक्षण के बाद अपने उत्पादों के लिए महत्वपूर्ण ऑर्डर मिले हैं. इससे न केवल उनकी आय में सुधार हुआ है बल्कि सरकार के “एक ज़िला एक उत्पाद मिशन” में भी योगदान हो रहा है.
फ़रवरी 2024 से अब तक, नन्दूरबार व जलगाँव स्थित दो इकाइयाँ, 75 हज़ार रुपए मूल्य की कुल बिक्री करने में सक्षम हुई हैं.
कार्यशाला के बाद महिलाओं को प्रदर्शनियाँ आयोजित करने, ऑनलाइन व ऑफ़लाइन मंचों तथा विभिन्न वितरण नैटवर्कों के ज़रिए, बाज़ार सम्पर्क स्थापित करने से जुड़ा प्रशिक्षण भी दिया गया, जिससे वो आर्थिक स्वतंत्रता की राह पर अग्रसर हो सकीं.
भविष्य के लिए रीना ने महत्वाकाँक्षी योजना बनाई है. “मैं अपना व्यवसाय शुरू करके आत्मनिर्भर बनना चाहती हूँ. मेरा लक्ष्य है कि इससे मैं अपने बच्चों को एक उज्जवल भविष्य दे सकूँ.”