“सोचिए, अगर आपको अपना सबकुछ छोड़कर भागना पड़े तो कैसा लगेगा...”
भारत में संयुक्त राष्ट्र रैज़िडेन्ट कोऑर्डिनेटर, शॉम्बी शार्प ने हाल ही में यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) पंजीकरण सुविधा केन्द्र जाकर, कुछ युवा शरणार्थियों से बात की, उनकी चिन्ताओं व समस्याओं को सुना और उन्हें हरसम्भव मदद देने का भरोसा दिलाया. 'विश्व शरणार्थी दिवस' के अवसर पर एक विशेष प्रस्तुति...
भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित UNHCR के शरणार्थी पंजीकरण सुविधा केन्द्र में युवा शरणार्थियों से बातचीत के दौरान, 21 वर्षीय माया ने रैज़ीडेन्ट कोऑर्डिनेटर, शॉम्बी शार्प से पूछा, “सोचिए, अगर आपको अपना घर, परिवार, अपना सब-कुछ छोड़कर एक नए देश जाना पड़े तो कैसा लगेगा.”
हर वर्ष, हिंसक टकराव व दमन के कारण लाखों लोग अपने घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होते हैं. आश्रय लेने वाले लोगों के लिए पंजीकरण व दस्तावेज़ बनवाने के लिए UNHCR ही एकमात्र सहारा होता है.
भारत व मालदीव के लिए यूएन एजेंसी के मिशन प्रमुख, अरेनी सियानी ने बताया कि भारत में शरण लेने वाली श्रीलंका की एक महिला ने नागरिक के तौर पर क़ानूनी दर्जा मिलने के बाद पहली बार इन चुनावों में मतदान किया.
उन्होंने, विस्थापित लोगों को आश्रय देने की भारत की लम्बे समय से चली आ रही परम्परा पर रौशनी डाली. 2023 तक, भारत में यूएनएचसीआर द्वारा 46,569 लोगों का पंजीकरण किया जा चुका है.
यूएन एजेंसी के कर्मचारी, आश्रय की तलाश कर रहे लोगों का पंजीकरण करते हैं और एक शरणार्थी के रूप में उनकी पुष्टि करने वाला दस्तावेज़ जारी करने से पहले आवेदक की स्थिति का आकलन करने के लिए उनका इंटरव्यू लेते हैं.
मार्च में, भारत में यूएनएचसीआर ने बायोमेट्रिक डेटाबेस द्वारा संचालित एक नया शरण इच्छुक (asylum-seeker) और शरणार्थी कार्ड जारी किया, जिसे एक ऐप (Verify Plus) का उपयोग करके स्कैन एवं प्रमाणित किया जा सकता है.
अनेक चुनौतियाँ
यूएन रैज़िडेन्ट कोऑर्डिनेटर के साथ बातचीत में, युवा शरणार्थी माया ने युवजन के सामने मौजूद चुनौतियों के बारे में बताया. “हम भारत सरकार के आभारी हैं कि उन्होंने हमें यहाँ आने की अनुमति दी."
पावर-प्वाइंट प्रस्तुति के ज़रिए, सभी युवा शरणार्थियों ने अपनी चिन्ताएँ सामने रखीं – जिसमें अपने देश में व्याप्त असुरक्षित स्थितियों से भागने का सदमा, तथा मेज़बान देश में सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ने से लेकर, रोज़मर्रा के जीवन में सांस्कृतिक अन्तरों से जद्दोजहद करना शामिल था.
म्याँमार से आई शरणार्थी, बीई ने कहा, “सरकारी दस्तावेज़ों के अभाव में हम फ़ोन के लिए सिम कार्ड भी नहीं ले पाते, बैंक अकाउंट नहीं खोल पाते – तो हम काम करके तनख़्वाह कैसे लें?”
उन्होंने कहा, “हमें लगता है कि शरणार्थियों के रूप में हम अपने मेज़बान देश के लिए बोझ हैं.”
वहीं म्याँमार से आए एक अन्य युवा, थुरा ने बताया, “हम सुनते रहते हैं कि लोगों को उठाकर वापस म्याँमार भेजा जा रहा है. मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि मेरे साथ भी ऐसा ही होगा. मुझे भी इसी तरह हिरासत में ले लिया जाएगा.”
“घर किराए पर लेना भी मुश्किल हो जाता है. पुलिस प्रमाणन की ज़रूरत पड़ती है, और बिना दस्तावेज़ों के यह सम्भव नहीं हो पाता, तब वो हमें रहने के लिए घर देने से इनक़ार कर देते हैं.”
वहीं अफ़ग़ानिस्तान से आई एक युवा शरणार्थी, नूरा ने कहा, “मैं अपने देश वापिस जाने से बेहतर मरना पसन्द करूँगी. वो अब महिलाओं व लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रहा.”
अफ़ग़ानिस्तान से ही आए शरणार्थी, फ़िल ने बताया, “हममें से ज़्यादातर लोग अवसाद में हैं. हम पहले ही सदमें में हैं और हमें यह तक पता नहीं है कि हम यहाँ कितने समय तक रह सकते हैं.”
एक शरणार्थी ने कहा कि कौशल शिक्षा व औपचारिक रोज़गार के लिए सीमित अवसरों के कारण, भविष्य की अनिश्चितता को लेकर उनके मन में डर बना रहता है.
विकलांग शरणार्थियों की चुनौतियाँ
विकलांग शरणार्थी युवजन ने भी बातचीत के दौरान अपनी परेशानियाँ रैज़िडेन्ट कोऑर्डिनेटर के सामने रखीं.
विकलांग शरणार्थियों को ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सा सुविधा हासिल करना मुश्किल हो जाता है. स्थिति बहुत तनावपूर्ण है और कोई सुरक्षात्मक उपाय मौजूद नहीं हैं. उन्हें विकलांगता सर्टिफ़िकेट भी हासिल नहीं हो पाता, तो वो मेडिकल सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते.
यूएनएचसीआर के मिशन प्रमुख, अरेनी सियानी ने कहा कि उनका कार्यालय आश्रय चाहने वाले विकलांगजन से सम्बन्धित आँकड़ें जुटाने के प्रयास कर रहा है, ताकि उनकी समस्याओं के समाधान खोजे जा सकें.
उन्होंने कहा, "किसी को भी पीछे न छोड़ने की हमारी प्रतिबद्धता के तहत, हम किसी भी शरणार्थी को पीछे न छोड़ने की दिशा में कोशिशें जारी रखेंगे."
सहनसक्षमता व एकजुटता से हौसला
युवा शरणार्थियों ने बताया कि उन्होंने शहर भर में अपने जैसे शरणार्थियों के बीच भाईचारे का भाव बढ़ाने व आपस में एक-दूसरे की मदद के लिए, एक हज़ार क्लब स्थापित किए हैं. जब उनसे इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा, “साझा अनुभवों से सहनसक्षमता बढ़ाने के लिए,” जिससे “हम अपने हालात से ही परिभाषित न होकर रह जाएँ.”
शरणार्थियों के इस समूह ने, शॉम्बी शर्प के साथ अपने सपने और सर्वजन के कल्याण के लिए काम करने की अपनी आकाँक्षाएँ साझा कीं. साथ ही, सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए, शरणार्थियों का लगातार समावेश करते रहने की वकालत की.
शरणार्थियों को उनके संघर्ष, सपनों व उम्मीदों के बारे में दिल खोलकर बात करने की सराहना करते हुए, यूएन रैज़िडेन्ट कोऑर्डिनेटर ने इस वादे के साथ उनसे विदा ली कि वो उनकी आवाज़ व चिन्ताओं को उचित मंचों पर उठाते रहेंगे.
उन्होंने कहा कि “युवजन की आवाज़ तब तक पूरी तरह बुलन्द नहीं हो सकती, जब तक शरणार्थियों की आवाज़ें उसमें शामिल न की जाएँ. युवा शरणार्थियों की रचनात्मक व आर्थिक क्षमता को उजागर करने से, सर्वजन, ख़ासतौर पर मेज़बान समुदायों की समृद्धि एवं विकास होता है.”
*पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिए गए हैं.