वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

श्रवण क्षमता की बेहतरी के लिए चाहिए निवेश और नई सोच

किसी देश में, एक बच्चा, जिसकी श्रवण क्षमता कमज़ोर है, वो अपने पिता को संकेत भाषा सिखाते हुए.
© UNICEF/Frank Dejongh
किसी देश में, एक बच्चा, जिसकी श्रवण क्षमता कमज़ोर है, वो अपने पिता को संकेत भाषा सिखाते हुए.

श्रवण क्षमता की बेहतरी के लिए चाहिए निवेश और नई सोच

स्वास्थ्य

दुनिया भर में 40 करोड़ से अधिक ऐसे लोग हैं जिन्हें सुनने यानि अपनी श्रवण क्षमता बेहतर बनाने के लिए, विशेष यंत्रों की ज़रूरत है, मगर संसाधनों की कमी और समाजों में दकियानूसी सोच के कारण, उन्हें ये सुविधा नहीं मिल पाती है. भारत में भी छह करोड़ से अधिक लोग सुनने की क्षमता में बाधा के साथ जीवन जीते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि शुरुआती समय में ही, इस स्वास्थ्य समस्या की पहचान करने से, अच्छे नतीजे मिल सकते हैं. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वित्तीय और मानव संसाधनों की कमी व कलंक मानसिकता के कारण केवल इनमें से केवल 20 प्रतिशत लोगों को ही, श्रवण यंत्र मिल पाते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में, बहरेपन और श्रवण हानि की रोकथाम के काम की प्रभारी डॉक्टर शैली चड्ढा का कहना है कि औसतन पाँच में से केवल एक व्यक्ति को ही, वास्तव में श्रवण क्षमता बेहतरी की सुविधाएँ मयस्सर हैं.

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डॉक्टर शैली चड्ढा ने, 3 मार्च को मनाए जाने वाले विश्व श्रवण दिवस के अवसर पर ध्यान दिलाया कि वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी ने, पिछले कुछ वर्षों के दौरान, लगातार बढ़ती इस समस्या की तरफ़, बार-बार ध्यान आकर्षित किया है.

उन्होंने बताया कि समस्या के लिए "अनेक बाधाएँ" ज़िम्मेदार हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण, वैश्विक स्तर पर, श्रवण देखभाल विशेषज्ञों की कमी है. 

यूए स्वास्थ्य एजेंसी के नए दिशानिर्देश, उन बाधाओं को दूर करने में मदद करने के लिए ही तैयार किए गए हैं.

एक ऐसी दुनिया जिसे कम सुनाई देता है

हाल में प्राप्त आँकड़ों की बात करें तो अनुमान है कि वर्ष 2050 तक, लगभग 2.5 अरब लोगों को, सुनने की क्षमता में कुछ हद तक कमी का सामना करना पड़ सकता है. और कम से कम 70 करोड़ लोगों को श्रवण सहायता की आवश्यकता होगी. 

इसके अलावा, एक अरब से अधिक युव - वयस्कों को, असुरक्षित श्रवण व्यवहारों व चलन के कारण स्थाई, टालने योग्य श्रवण हानि का ख़तरा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन, समस्या का समाधान करने के लिए, श्रवण सहायता सेवाएँ प्रदान किए जाने के तरीक़ों की समीक्षा कर रहा है, ख़ासकर उन जगहों पर, जहाँ संसाधन, विशेष रूप से मानव संसाधन सीमित हैं.

डॉक्टर शैली चड्ढा ने बताया कि नए नज़रिए में अन्तर्निहित सिद्धान्त, दरअसल उच्च प्रशिक्षित विशेषज्ञों और प्रशिक्षित ग़ैर-विशेषज्ञों के बीच कार्य को बाँटना और उसमें तालमेल करना है.

भारत में 6 करोड़ से अधिक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में लगभग छह करोड़ 30 लाख लोग, बहरे पन या सुनने की सीमित क्षमता के साथ जीवन जी रहे हैं. अगर जीवन के शुरुआती स्तर पर ही इस स्वास्थ्य बाधा की पहचान कर ली जाए, तो इसका उपचार या इसके समाधान निकालने में बहुत अहम मदद मिल सकती है.

इसमें अत्यधिक जोखिम का सामना करने वाले लोगों में, सुनने की क्षमता में कमी और कान सम्बन्धी बीमारियों का पता लगाने के लिए, नियमित और व्यवस्थागत जाँच की ज़रूरत है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि नवजात शिशुओं और बच्चों, स्कूल से पहले की आयु और स्कूल जाने वाले बच्चों, कामकाज के स्थलों पर शोर या रसायनों की मौजूदगी में समय गुज़ारने वालों और बुज़ुर्गोौं को, इस तरह की जाँच से अहम लाभ पहुँचाए जा सकते हैं.

संगठन का कहना है कि सुनने की क्षमता में बाधा वाले लोगों को, श्रवण प्रौद्योगिकी और यंत्रों का प्रयोग करके, संचार और शिक्षा के बेहतर साधनों की सुविधा मुहैया कराई जा सकती है.

श्रवण क्षमता में लगाएँ संसाधन

ज़ाम्बिया में एक नर्स, एक बच्चे की श्रवण क्षमता की जाँच करते हुए. शुरुआती जीवन में ही इस तरह की जाँच से, अनेक लाभ मिल सकते हैं.
© WHO/Blink Media/Gareth Bentley

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि श्रवण क्षमता के अनसुलझे मुद्दों से, वैश्विक स्तर पर लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक वित्तीय नुक़सान होता है. 

वैसे तो, कान और श्रवण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को बढ़ाने के लिए, प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 1.40 डॉलर से भी कम अतिरिक्त संसाधन निवेश की आवश्यकता होती है. 

यह निवेश, प्रत्येक डॉलर के बदले, 10 साल की अवधि में, लगभग 16 डॉलर की रक़म के बराबर का मूल्य लौटाने की सम्भावना रखता है.

हालाँकि, मानव संसाधन की कमी के साथ-साथ, नीतियों की कमी या अपर्याप्त वित्तपोषण, इस पूरी चुनौती का केवल एक पहलू है.

तोड़ें मिथकों और पूर्वाग्रहों को

अध्ययन से मालूम होता है कि उन जगहों पर भी, लोगों को हमेशा इन सेवाओं तक पहुँच नहीं मिलती है, जहाँ, परीक्षण, श्रवण सहायता और पुनर्वास, स्वास्थ्य व्यवस्था के माध्यम से उपलब्ध हैं, और मुफ़्त हैं.

डॉक्टर शैली चड्ढा ने बताया कि स्वास्थ्य प्रणाली जितनी चुनौतियों का सामना करती है, उतनी ही गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक गलत धारणाएँ और कलंककारी मानसिकताएँ ऐसे कुछ प्रमुख कारक हैं, जो श्रवण हानि को रोकने और उससे सम्बन्धित समस्याओं से निपटने के प्रयासों को सीमित करती हैं.

यह मिथक कि केवल वृद्ध लोगों को सुनने की हानि होती है, या यह विचार कि श्रवण यंत्र हमेशा बहुत महंगे या अप्रभावी होते हैं, ना केवल उन लोगों को नुक़सान पहुँचाता है, जिनका जीवन अन्यथा बहुत बेहतर हो सकता है, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.

WHO, हर वर्ष इस समस्या के बारे में जागरूकता बढ़ाने, रूढ़ियों और ग़लत धारणाओं को तोड़ने के लिए, विश्व श्रवण दिवस का सहारा लेता है, जिससे अधिक लोगों को जीवन-सुधार सहायता हासिल करने में मदद मिलती है.