भारत: 'सर्कुलर डिज़ाइन' प्रतिस्पर्धा में छाए, सतत फ़ैशन के उत्कृष्ट उदाहरण
भारत में संयुक्त राष्ट्र ने रिलायंस उद्योग के साथ मिलकर, 'सर्कुलर डिज़ाइन चैलेंज 2023' प्रतिस्पर्धा का आयोजन किया, जिसके अन्तिम दौर में पहुँचे छह प्रतिभागियों ने, एक फ़ैशन शो में सतत फ़ैशन के अपने उत्पाद प्रस्तुत किए. भारत से ‘विदाउट’ लेबल के अनीश मालपानी को विजेता और योरोपीय संघ के फ़िलिपे फ़ियालो को उपविजेता घोषित किया गया.
पाँचवें सर्कुलर डिज़ाइन चैलेंज के विजेता अनीश मालपानी द्वारा चिप्स के पैकेटों को, री-सायकिल करके बनाए गए उनके धूप के चश्मों को सराहना मिली.
योरोपीय संघ के फ़िलिपे फ़ियालो के बायोडिग्रेडेबिल जूते, सततता (sustainability) की मिसाल रहे. इस प्रतिस्पर्धा का समापन ‘लैक्मे फ़ैशन वीक’ के एक समापन शो में हुआ.

प्रतिस्पर्धा का उद्देश्य
इस चुनौतीपूर्ण प्रतिस्पर्धा की शुरुआत, फ़ैशन डिज़ाइन प्रतिभा को एक वैश्विक मंच देने, अपशिष्ट एवं प्रदूषण को कम करने और उत्पादों को री-सायकिल करने के लिए डिज़ाइन एवं उत्पादन में एकीकरण करने के उद्देश्य से की गई थी. इस साल, सर्कुलर डिज़ाइन चैलेंज (CDC) का विस्तार, योरोप और एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में किया गया है.
भारत में संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से, रिलायंस उद्योग (R|Elan) द्वारा समर्थित इस प्रतिस्पर्धा के ज़रिए, विश्व स्तर पर फ़ैशन उद्योग की रचनाओं को, पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए प्रोत्साहन देने व एक हरित व अधिक टिकाऊ भविष्य की नींव रखने के प्रयास किए जा रहे हैं.
इस प्रतियोगिता के तहत, आधे दशक से इस चुनौती के ज़रिए, ऐसे विजेताओं की पहचान की जाती रही है, जो फ़ैशन को पर्यावरण-अनुकूल नवाचारों के साथ जोड़ते हैं.
पिछले कुछ विजेताओं में ‘I was a saree’ संगठन शामिल है, जो महिला कारीगरों को सशक्त बनाते हुए, ख़राब हो गई साड़ियों का इस्तेमाल करता है. मलाई बायोमटेरियल्स डिज़ाइन कम्पनी भी उल्लेखनीय रही, जो चमड़े के लिए टिकाऊ विकल्प बनाती है.
इसके अलावा, इस मंच के तहत, फ़ैशन पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव लाने के लिए, 25 पूर्व छात्रों को प्रशिक्षित किया गया है.

इस अवसर पर, भारत में संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प ने कहा, “दुनिया प्रदूषण, जैव विविधता हानि और जलवायु परिवर्तन के तिहरे ग्रहीय संकट का सामना कर रही है."
"सर्कुलर डिज़ाइन चैलेंज (सीडीसी) दर्शाता है कि फ़ैशन, ज़िम्मेदार उत्पादन और उपभोग, शैली एवं स्थिरता को जोड़ने का एक शक्तिशाली चालक हो सकता है. यह पर्यावरण के लिए वैश्विक जीवन शैली (LiFE) आन्दोलन, और पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली एवं उपभोक्ता विकल्पों की बढ़ती तात्कालिकता के साथ भी मेल खाता है.”
अन्तिम दौर में पहुँचने वाले कुछ उत्पाद
अनीश मालपानी का ‘विदाउट’ – भारत
अनीश मालपानी का ब्रैंड 'विदाउट' रैंप पर शानदार चश्मों का फ़ैशन लेकर आया है, लेकिन एक क्रान्तिकारी तकनीक के साथ, जिसका पेटेंट किया जा रहा है.
फेंक दी गई बहु-परतीय प्लास्टिक पैकेजिंग (Multi-layered Plastic Packaging) को 'विदाउट' में री-सायक्लिंग द्वारा एक फ़ैशन उत्पाद में बदल दिया जाता है. चिप्स के री-सायकिल किए हुए पैकेटों से धूप के आकर्षक चश्मे बनाए गए. 'विदाउट' ब्रैंड के इस कार्य से कचरा बीनने वालों के जीवन में भी बदलाव आया है.
फ़िलिपे फ़ियालो - योरोपीय संघ
फ़िलिपे फ़ियालो इक्वाडोर के नागरिक हैं, और इटली में रहते हैं. उन्होंने डिजिटल निर्माण, शैली और स्थिरता के संयोजन से जूते तैयार किए हैं. फ़िलिपे ने, लीक से हटकर जूते डिज़ाइन करते हुए, प्रकृति के इर्द-गिर्द अपनी रचनात्मक संवेदनाओं को जोड़ते हुए, प्रौद्योगिकी व शिल्प कौशल को एकीकृत किया और बायोडिग्रेडेबिल डिज़ाइनों पर ध्यान केन्द्रित किया.
बनोफ़ी + जिनाली मोदी और अरुन्धति कुमार का ‘स्टूडियो बीज’ - भारत
जिनाली मोदी और अरुन्धति कुमार के स्टूडियो बीज ने, केले की फ़सल के कचरे से एक पौधा-आधारित चमड़ा 'बनोफ़ी' बनाया, जो जैव अनुसन्धान, भारतीय शिल्प कौशल के साथ-साथ पर्यावरण जागरूकता का एक अभिनव विलय था.
इस जोड़ी की "बिपरिटा" फैशन रेंज, पूर्णत: शाकाहारी और क्रूरता से मुक्त थी. उन्होंने स्टाइलिश, बॉक्सी बैग, क्लच, फ़ोल्डर, पोर्टफ़ोलियो, टैग और अन्य पौधे-आधारित चमड़े के फ़ैशन उत्पाद पेश किए.

रिद्धि जैन द्वारा स्टूडियो माध्यम – भारत
रिद्धि जैन का 'स्टूडियो मीडियम' ब्रैंड, बाँधनी विधि की वस्तुओं में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है. सबसे उत्तम बन्धनी बनाने के लिए, धागे के कचरे और कपड़ों की कतरनों के कचरे से पर्यावरणविद परेशान हैं. ऐसे में, 'स्टूडियो मीडियम' ने, एक अभिनव समाधान पेश करते हुए, बड़ी मात्रा में रेशम के कटे हुए और बेकार पड़े धागों को आकर्षक परिधानों में बदल दिया और शून्य अपशिष्ट सुनिश्चित किया.
अमेश विजेसेकेरा – ब्रिटेन
लन्दन स्थित श्रीलंकाई डिज़ाइनर, अमेश विजेसेकेरा ने बुने हुए कपड़े, क्रोशिए और हथकरघा कारीगरों के साथ बड़े पैमाने पर काम किया है. अमेश का लक्ष्य, फ़ैक्ट्री में बचे हुए धागों की बर्बादी रोकने के उद्दश्य से, श्रीलंका में मौजूद कपड़ा उद्योग की मदद करना है, जहाँ कारीगर अक्सर अनैतिक व्यवहार एवं दुर्व्यवहार का शिकार बन जाते हैं.
