'सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज' का अभाव, ‘एक विशाल मानवाधिकार आपदा’
विश्व के नेतागण, सर्वजन को वर्ष 2030 तक सार्वभौनिक स्वास्थ्य कवरेज उपलब्ध कराने के प्रयास तेज़ करने पर सहमत हुए हैं.
यूएन मुख्यालय में गुरूवार को सदस्य देशों की एक उच्च स्तरीय बैठक में, एक नए राजनैतिक घोषणा-पत्र को स्वीकृति देते हुए, इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक धन मुहैया कराने और ठोस कार्रवाई करने का संकल्प भी लिया गया.
इस घोषणा-पत्र का नाम है – सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज: एक कोविड पश्चात विश्व में स्वास्थ्य और बेहतर रहन-सहन के लिए अपनी महत्वाकांक्षा का विस्तार.
इस घोषणा-पत्र में देशों की सरकारों ने, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के विस्तार को बढ़ावा देने में राजनैतिक सम्पदा का निवेश करने का भी वादा किया है.
राजनैतिक विकल्प
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने इस अवसर पर कहा है कि सर्वजन के लिए स्वास्थ्य कवरेज की प्राप्ति, अन्ततः एक राजनैतिक विकल्प का मामला है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “मगर ये विकल्प केवल काग़ज़ तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता. ये विकल्प बजट निर्णयों और नीति निर्णयों में भी चुना जाए है. और सबसे अधिक, ये विकल्प प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में संसाधन निवेश करके भी चुना जाए, जोकि सर्वाधिक समावेशी, समान, और सार्वबौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए एक सरल मार्ग हो.”
चौंकाने वाले आँकड़े
इस घोषणा-पत्र की तात्कालिकता, चौंकाने वाले आँकड़ों के सन्दर्भ में स्पष्ट नज़र आती है.
वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार, दुनिया की लगभग आधी आबादी, यानि क़रीब साढ़े चार अरब लोग, अनिवार्य स्वास्थ्य सेवाओं के दायरे में पूर्ण रूप से नहीं हैं.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच बनाने के परिणाम स्वरूप, लगभग दो अरब लोगों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.
उधर लगभग एक अरब 30 करोड़ लोग इसलिए अत्यधिक निर्धनता में धकेल दिए गए क्योंकि उन्होंने बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं और दवाओं तक पहुँच हासिल करने की कोशिश की.
संगठन के अनुसार ये स्थिति व्यापक होती स्वास्थ्य विषमताओं की स्पष्ट वास्तविकता को दर्शाती है.
एक बुनियादी अधिकार
संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने, यूएन प्रमुख की तरफ़ से बोलते हुए, ज़ोर दिया कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज “एक विशाल दायरे वाली मानवाधिकार त्रासदी” को सही करेगी, जिसमें अरबों लोग, फ़िलहाल बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक सुलभ पहुँच से वंचित हैं.
उप महासचिव ने देशों से, लड़कियों व महिलाओं को यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने का आहवान किया.
साथ ही, सबसे निर्बल हालात वाली आबादियों पर भी ध्यान केन्द्रित करने का आग्रह भी किया जिनमें बच्चे, शरणार्थी, प्रवासी और मानवीय संकटों में रहने वाले लोग शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “देशों को सु-प्रशिक्षित और पर्याप्त वेतन पाने वाले स्वास्थ्य कर्मियों में संसाधन निवेश करना होगा जो तमाम ज़रूरतमन्द लोगों को, एक सुरक्षइत, प्रभावकारी व गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने में सक्षम हों.”