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अफ़ग़ानिस्तान: महिला कालीन बुनकरों की आजीविका को आर्थिक सहारा

अफ़ग़ानिस्तान के कालीन बाफ़न इलाक़े में कालीन बुनती महिलाएँ.
© UNHCR/Caroline Gluck
अफ़ग़ानिस्तान के कालीन बाफ़न इलाक़े में कालीन बुनती महिलाएँ.

अफ़ग़ानिस्तान: महिला कालीन बुनकरों की आजीविका को आर्थिक सहारा

आर्थिक विकास

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संगठन (UNHCR), आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों या देश वापिस लौटने वाले शरणार्थियों को रोज़गार व आजीविका के विकल्प देने के लिए कालीन बुनने की प्रथा को फिर से जीवन्त करने के प्रयासों में लगा है. इसके लिए कालीन बुनकर क्षेत्रों में बुनाई एवं प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे पूर्व शरणार्थी और विस्थापित अफ़ग़ान महिलाओं को नए सिरे से रोज़गार व बेहतर कामकाजी परिस्थितियाँ हासिल होंगी,

धीमी रोशनी वाली मिट्टी की एक झोपड़ी में, सात महिलाओं का एक समूह फ़र्श पर एक लकड़ी के करघे के पास पालथी मारकर, ऊनी कालीन बुन रहा है.

इस कालीन को पूरा करने में महिलाओं को दो महीने लगेंगे और अपने इस सामूहिक प्रयास से वो लगभग 16,000 अफ़ग़ानी (185 डॉलर) कमा पाएँगी. 10 साल की उम्र से कालीन बुनने का काम कर रहीं, 71 वर्षीय बीबी नियाज़ ने कहा, “आम तौर पर, यहाँ आठ लोग काम करते हैं. लेकिन अक्सर, कोई न कोई बीमार होता है, जैसेकि आज. जब यहाँ गर्मी पड़ती है, तो बहुत मुश्किलें होती हैं; मेरी पीठ और कंधों में अक्सर दर्द होता है.”

उन्होंने कहा कि सर्दियों में यहाँ कालीन बुनना और भी कठिन हो जाता है - खिड़कियों को प्लास्टिक से ढँकना पड़ता है और अपने हाथ गर्म रखने के लिए आग जलानी पड़ती है.

उन्होंने कहा, “अब कालीनों के कारण मुझे साँस की परेशानी होने लगी है; अक्सर बहुत तेज़ खाँसी होती है.” 

घरों तक सीमित महिलाओं को मिला रोज़गार

71 वर्ष की बीबी नियाज़, 10 साल की उम्र से कालीन बुनने का काम कर रही हैं.
© UNHCR/Caroline Gluck

पारम्परिक अफ़ग़ान सांस्कृतिक प्रथाओं, महिलाओं के यात्रा, अध्ययन व कामकाज करने पर पाबन्दियों के कारण, पहले से कहीं अधिक महिलाएँ घरेलू कामकाज तक ही सीमित होकर रह गई हैं. कुछ लोगों ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कालीन बुनाई का काम शुरू कर दिया है.

बीबी नियाज़ के साथ काम करने वाले बुनकरों में से एक, 18 वर्षीय सालेहा का सपना नर्स बनने का था, लेकिन दो साल पहले, तालेबान प्रशासन द्वारा माध्यमिक से आगे शिक्षा पाने के लड़कियों के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाए जाने पर उऩके सपने चकनाचूर हो गए. वो आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर सकीं. 

उन्होंने बताया, ''अब धन कमाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. स्कूलों का रास्ता बन्द होने का मतलब था कि मुझे घर पर ही रहना था. ऐसे में, इस काम के ज़रिए मैं ख़ुद को व्यस्त रखती हूँ."

उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में कालीन बाफ़न (यानि"कालीन बुनकर") की इस बस्ती में, हर परिवार किसी न किसी तरह से कालीन बनाने के कार्य में शामिल है. इनमें से अधिकाँश पाकिस्तान व ईरान से आए पूर्व शरणार्थी हैं, या फिर अफ़ग़ानिस्तान के अन्य हिस्सों से विस्थापित लोग हैं. 

2006 में एक सरकारी भूमि आवंटन योजना के तहत, कालीन बुनाई कौशल वाले भूमिहीन शरणार्थियों को, यहाँ बसने के लिए ज़मीन प्रदान की गई थी.

शहर व उसके आसपास के दो अन्य स्थल, जहाँ वापिस लौटे या आन्तरिक रूप से विस्थापित शरणार्थी रहते हैं (यानि सखी कैम्प और फ़िरदौसी) को यूएनएचसीआर ने वापसी एवं पुनर्एकीकरण के प्राथमिकता क्षेत्र (PARR) चिन्हित किया है. 

यह उन 80 क्षेत्रों में से एक है जहाँ यूएनएचसीआर, अधिक सहनसक्षम समुदायों के निर्माण और आगे विस्थापन की सम्भावना कम करने के उद्देश्य से, बुनियादी सेवाओं तक पहुँच में सुधार के लिए, भागीदारों एवं सहयोगी संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है.

नए रोज़गार केन्द्र

नए कालीन बुनकर केन्द्र सितम्बर से शुरू होंगे, जिससे कालीन बुनकरों को बेहतर स्थिति में काम करने का लाभ मिलेगा और बिचौलियों के हटने से ज़्यादा मुनाफ़ा भी होगा.
© UNHCR/Caroline Gluck

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने एक मूल्याँकन के बाद, कालीन बुनाई को महिलाओं के विकास और आर्थिक सशक्तिकरण की मज़बूत क्षमता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना. 

फिर, यूएनएचसीआर ने यहाँ एक कालीन बुनाई केन्द्र और कालीन प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किया, जो सितम्बर से खोले जाएँगे. इससे इलाक़े की महिला कालीन बुनकरों की स्थिति में जल्द सुधार होने की उम्मीद जगी है. 

इन केन्द्रों से लगभग 30 नए रोज़गार उत्पन्न होने की उम्मीद की जा रही है और बुनकरों को उनके तैयार कालीनों के लिए ऊँची क़ीमतें दिलवाने के लिए मोल-भाव करने में भी मदद मिलेगी.

वर्तमान में महिलाओं द्वारा अपने घरों में बुने जाने वाले अधिकाँश कालीन, बिचौलियों द्वारा ऑर्डर किए जाते हैं, जो ग्रामीण परिवारों को डिज़ाइन, कच्चा माल देते हैं व अक्सर करघे भी किराए पर देते हैं. बुनकरों को उनके काम के लिए कालीन के आकार एवं डिज़ाइन की जटिलता के अनुसार भुगतान किया जाता है. 

हालाँकि, यह अनुमान लगाया गया है कि अफ़ग़ानिस्तान में इन सुविधाओं तक सीमित पहुँच होने के कारण, 80 प्रतिशत से अधिक हाथ से बुने कालीन काटने, धोने, सुखाने और खींचने के लिए पाकिस्तान को निर्यात किए जाते हैं. 

प्रसंस्करण के बाद ही बुनाई का कौशल और सुंदरता स्पष्ट होती है, जिससे विक्रेता कालीनों के लिए ऊँची क़ीमत माँग सकता है. कई कालीन अत्यधिक बेशक़ीमती होते हैं और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बिकते हैं.

62 वर्षीय पूर्व शरणार्थी, हाजी ग्यास, क़ालीन बाफ़न में एक समुदाय के नेता हैं व उनकी पत्नी भी एक बुनकर हैं. उन्होंने बताया, “इसका प्रभाव नाटकीय होगा और परिवारों को बेहतर आय मिलने में मदद मिलेगी. यह क्षेत्र कालीन बुनाई के लिए मशहूर है और हमें उम्मीद है कि हम इन्हें अन्य देशों को भी निर्यात कर सकेंगे."

आर्थिक संकट से निपटने के प्रयास

अभी तक कई घरों से महिलाएँ, मिट्टी की झोपड़ियों में धूल-मिट्टी के बीच काम करती रही हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
© UNHCR/Caroline Gluck

योजना केन्द्र से होने वाले मुनाफ़े को सामुदायिक विकास के लिए वापस निवेश किया जाएगा. स्थानीय कालीन प्रसंस्करण सुविधाएँ स्थापित करने की एक समान परियोजना, उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के जवज़ान प्रान्त के अक्चा ज़िले में, एक अन्य वापसी एवं पुनर्एकीकरण के प्राथमिकता क्षेत्र (PARR)  में भी चल रही है.

अन्य PARR क्षेत्रों में, UNHCR ने, संघर्षरत ग्रामीण समुदायों और ख़ासतौर पर महिलाओं को, देश में आर्थिक संकट से निपटने में मदद करने हेतु मधुमक्खी पालन और मुर्गी पालन से लेकर, सिलाई परियोजनाओं तक आजीविका सहायता और प्रशिक्षण के अवसर प्रदान किए हैं.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा अप्रैल में किए एक अध्ययन में पाया गया कि अगस्त 2021 में, तालेबान के सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद, अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. 

इसमें कहा गया है कि शिक्षा और कामकाज के अवसरों सहित महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबन्धों के परिणामस्वरूप, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय सहायता में कटौती होगी, जिससे पहले से ही गम्भीर आर्थिक स्थिति और बदतर हो सकती है.

क़ालीन बफ़ान में बुनाई के काम पर लगी ज़्यादातर महिलाएँ और लड़कियाँ, बहुत कम आय में ही अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मजबूर हैं. इससे उन्हे कालीन ख़त्म होने तक उधार पर भोजन ख़रीदना पड़ता है, और वो अक्सर कर्ज़ में डूब जाती हैं.

बीबी नियाज़ ने बढ़ती खाद्य क़ामतों और आमदनी के विकल्पों की कमी की शिकायत की, “यदि कालीन बुनाई का काम नहीं हो, तो हमारे पास भोजन भी नहीं होगा, कुछ भी नहीं होगा.”    

उन्होंने कहा, “हमें आटा, चावल, तेल, चाय जैसी रोज़मर्रा की सभी वस्तुए ख़रीदने पड़ते हैं. जब तक मेरी आँखें मेरा साथ देंगी, मैं कालीन बुनना जारी रखूँगी, अपने जीवन के अन्त तक."

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.