काला सागर निर्यात पहल: यूएन महासचिव ने राष्ट्रपति पुतिन को लिखा पत्र
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रूसी महासंघ के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के नाम अपने एक पत्र में काला सागर अनाज निर्यात पहल को बिना किसी अवरोध के जारी रखने और इस सम्बन्ध में सहमति-पत्र को लागू किए जाने के लिए प्रस्ताव पेश किया है.
यूएन प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने बुधवार को महासचिव की ओर से एक वक्तव्य जारी किया, जिसमें काला सागर निर्यात व्यवस्था की अहमियत को रेखांकित किया गया है.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए रूसी महासंघ और यूक्रेन से खाद्य सामग्री और उर्वरक की निर्यात व्यवस्था की निरन्तरता बनाए रखने पर विशेष रूप से अपना ध्यान केन्द्रित किया है.
यूएन प्रमुख के इस पत्र का उद्देश्य रूसी कृषि बैन्क के ज़रिये वित्तीय लेनदेन को प्रभावित करने वाली बाधाओं को दूर करना और काला सागर के ज़रिये यूक्रेनी अनाज के निर्यात को जारी रखना है.
बताया गया है कि रूसी महासंघ ने वित्तीय लेनदेन में पेश आने वाले अवरोधों के विषय में चिन्ता प्रकट की है.
रूस ने 18 मई 2023 को फिर से इस पहल में अपनी भागीदारी को 60 दिनों के लिए बढ़ाए जाने की घोषणा की, जिसके फलस्वरूप अब इस पहल का नवीकनीकरण, 17 जुलाई को प्रस्तावित है.
यूएन प्रमुख इस मुद्दे पर सभी प्रासंगिक पक्षों के साथ सम्पर्क में हैं और उन्होंने रूसी महासंघ के साथ अपने प्रस्ताव पर विस्तार से बातचीत करने की इच्छा व्यक्त की है.
यूएन प्रमुख ने इस विषय में निरन्तर सम्पर्क में बने रहने व बातचीत के लिए तुर्कीये का आभार प्रकट किया है.
महत्वपूर्ण पहल
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा है कि तुर्कीये के इस्ताम्बूल शहर में जुलाई 2022 में हस्ताक्षरित समझौतों को पूर्ण रूप से लागू किया जाना अहम होगा, ताकि अनाज व उर्वरक को विश्व बाज़ारों तक बिना किसी समस्या के पहुँचाया जा सके.
इन समझौतों के ज़रिये, वैश्विक खाद्य क़ीमतों में सतत रूप से कमी लाना सम्भव हुआ है. मार्च 2022 में खाद्य क़ीमतें अपनी रिकॉर्ड ऊँचाई पर थीं, मगर उस स्तर से अब 23 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है.
इस समझौते को लगभग एक वर्ष पूरा हो चुका है, जिसके तहत काला सागर में स्थित तीन यूक्रेनी बन्दरगाहों से, अब तक तीन करोड़ 20 लाख टन खाद्य सामग्री का, तीन महाद्वीपों में 45 देशों के लिए निर्यात किया गया है.
स्तेफ़ान दुजैरिक ने बताया कि यूएन महासचिव, विश्व भर में सम्वेदनशील हालात का सामना कर रहे लोगों की मुश्किलों के प्रति चिन्तित है.
इस्ताम्बूल समझौतों को अमल में ना लाए जाने से सबसे ज़्यादा इन्हीं निर्बल समुदायों पर होगा और वैश्विक खाद्य व उर्वरक क़ीमतों में भी उछाल आने की आशंका है.