वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

भारत: फ़सलों के अवशेषों से छुटकारा पाने में, आग और धुँआ रहित स्थाई समाधान

भारत के उत्तरी राज्यों में बची हुई फ़सल के अवशेषों को जला दिया जाता है, जो भारी मात्रा में वायु प्रदूषण का कारण बन गया है.
WFP India/Shyamalima Kalita
भारत के उत्तरी राज्यों में बची हुई फ़सल के अवशेषों को जला दिया जाता है, जो भारी मात्रा में वायु प्रदूषण का कारण बन गया है.

भारत: फ़सलों के अवशेषों से छुटकारा पाने में, आग और धुँआ रहित स्थाई समाधान

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र का विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), भारत में ‘टकाचार’ नामक एक क़िफ़ायती एवं कुशल नवाचार कार्यक्रम को समर्थन दे रहा है, जो किसानों को फ़सल के अवशेषों को जलाने का विकल्प देता है. साथ ही, अत्यधिक उर्वरक उपयोग के कारण कम उत्पादकता से जूझ रहे किसानों को, अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो रही है.

भारत की राजधानी दिल्ली में, सर्दियों की शुरुआत में धूएँ की गन्ध के साथ आकाश धूसर होने लगता है, और यहाँ की वायु गुणवत्ता अक्सर ख़तरे के स्तर को पार कर जाती है. इसकी वजह, वो धुआँ है, जिसकी चिन्ता राष्ट्रीय और वैश्विक मीडिया पर छाई रही है. यह धुआँ, पड़ोसी प्रदेशों से उत्पन्न होता है, जहाँ किसान, फ़सलों के अवशेषों के प्रबन्धन व अगली फ़सल की तैयारी हेतु, कटाई के बाद बची पराली जलाना शुरू कर देते हैं.

हर वर्ष सर्दियों के मौसम में, वाहन उत्सर्जन, निर्माण कार्यों व पंजाब और हरियाणा राज्यों में पराली जलाने से पैदा हुई धूल, भारी ठंडी हवा में मिल जाती है, जिससे दुनिया के सबसे प्रदूषित नगर दिल्ली में धुन्ध का गुबार छा जाता है.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, खेत की आग से निकलने वाले धुएँ ने शहर की हवा में, फेफड़ों को नुक़सान पहुँचाने वाले प्रदूषकों - छोटे पीएम 2.5 में, 26 प्रतिशत तक का योगदान दिया है - जो कि पिछले दो वर्षों के मुक़ाबले, मध्य अक्टूबर से नवम्बर 2022 की अवधि में सबसे अधिक है.

धुआँ रहित समाधान

एक किसान जितेन्द हुड्डा बताते हैं,“हमें बुरा लगता है कि हमारे खेतों में फ़सल अवशेषों को जलाने की पारम्परिक प्रथा से इतनी बड़ी स्वास्थ्य समस्या खड़ी हो गई है. आग और धुएँ से हमारे स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. इसके लिए अक्सर किसानों को दोषी ठहराया जाता है, इसलिए हम भी इसका समाधान चाहते हैं.” जितेन्द्र हुड्डा उन किसानों में से एक हैं, जिन्होंने 'टकाचार' मशीन उपयोगिता प्रदर्शित करने की एक पायलट परियोजना में भाग लिया है.

दिल्ली से लगभग 70 किलोमीटर दूर हरियाणा के रोहतक शहर में, कृषि की विशाल कृषि मशीनें दिखना कोई अजीब बात नहीं है. लेकिन गेहूँ की फ़सल के बीच खड़ी टकाचार मशीनें, बरबस ही स्थानीय लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं.

जितेन्द्र हुड्डा ग्राम परिषद के प्रमुख भी हैं और उनके समुदाय से आवश्यक समर्थन लाने में सहायक रहे हैं. उन्होंने बताया, “यहाँ का समुदाय, इस पहल और उर्वरकों व मिट्टी को मिलाकर पैदा की गई जैविक सामग्री के परीक्षण का समर्थन कर रहा है. हम आशान्वित हैं और वादे के अनुरूप परिणाम देखने के लिए बेहद उत्सुक हैं.”

टकाचार के तहत, एक छोटे पैमाने पर, कम लागत वाली, पोर्टेबल मशीन ईजाद की गई है, जिसे  खेतों में ले जाकर, पराली को उपयोगी पदार्थों में परिवर्तित किया जा सकता है.
WFP India/Shyamalima Kalita

मशीनी समाधान

बहुत से किसान पिछली फ़सल का कचरा ख़त्म करने के लिए अपनी फ़सल के अवशेषों को इसलिए जलाते हैं, क्योंकि ये अवशेष, खुले हुए, गीले, भारी होते हैं या फिर इन्हें मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करने के लिए अन्य स्थान पर भेजने में काफ़ी लागत लग सकती है. नतीजतन, खेत के कचरे को खुले में जलाने से पर्यावरण पर असर तो पड़ता ही है, आर्थिक नुक़सान भी पहुँचता है.

टकाचार के तहत, एक छोटे पैमाने पर, कम लागत वाली, सचल मशीन ईजाद की गई है, जिसे ट्रैक्टरों से खींचकर खेतों में पहुँचाया जाया जा सकता है.

फिर फ़सल के अवशेषों को मशीन में डालकर, नियंत्रित तरीक़े से भूना जाता है, जिससे कणीय व वाष्पशील पदार्थों, CO और NOx का उत्सर्जन न हो, और फ़सल के अवशेष, जैव ईंधन, उर्वरक एवं सक्रिय कार्बन जैसे मूल्यवान बायो-उत्पादों में परिवर्तित हो जाएँ.

यह अभिनव प्रणाली पूर्णत: ऑटो थर्मल है और इसे लागत प्रभावी बनाने के लिए किसी बाहरी ईंधन या गर्मी की आवश्यकता नहीं पड़ती.

टकाचार के ज़रिए, छोटे किसानों की आजीविका और व्यवसाय की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं, और वो बाज़ार में मांग अनुसार बायो-उत्पाद बेचकर, अतिरिक्त आमदनी अर्जित करने में सक्षम होते हैं.

टकाचार के साथ काम करने वाले, राजीव ने बताया, "किसी भी समाधान को अनेक आयामों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि किसान और ग्रामीण समुदाय इसे अपनाकर, इसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित हो सकें. इस मशीन और इसकी विशेषताओं को, समुदाय के सन्दर्भ और ज़रूरतों के अनुसार अनुकूलित किया जाता है. अतिरिक्त आमदनी व उर्वरक बनाकर उत्पादों का मूल्यवर्धन करना, किसानों को ख़ासतौर पर बेहद आकर्षित करता है.”

उन्होंने कहा कि समाधान लगातार विकसित हो रहा है और किसानों को ऐसी सचल मशीन उपलब्ध करवाने के प्रयास चल रहे हैं, जिसे कटाई के समय सीधे खेत में लाकर, शीघ्रता से पराली को उपयोगी उप-उत्पादों में परिवर्तित किया जा सके, जिससे खेत अगली फ़सल के लिए तैयार हो जाए.”

समुदाय में निहित समाधान

जिस गाँव में टकाचार मशीन का परीक्षण किया जा रहा है, वहाँ का छोटा लेकिन अपेक्षाकृत समृद्ध कृषक समुदाय, पहले से ही गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर, फ़सल अवशेषों को जलाने की समस्या का स्थाई समाधान खोजने के लिए काम कर रहा था.

यह समुदाय, परिणामों को लेकर काफ़ी उत्साहित हैं. उन्होंने देखा है कि कैसे यह मशीन, धुँआ या अन्य कोई प्रदूषण फैलाए बिना ही, भूसी व अन्य अवशेषों को बायो-तारकोल या जैविक कार्बन पदार्थ में परिवर्तित कर रही है.

चार सदस्यों के परिवार की देखरेख के लिए एक खेत सम्भालने वाले मुकेश ने कहा, “धान और गेहूँ की फ़सल की कटाई के बाद बची पराली को जलाना बहुत हानिकारक होता है और हम यह अच्छी तरह जानते हैं. जलने से जो धुआँ निकलता है उससे हमारा दम घुटने लगता है. हम अब टकाचार मशीन में पराली डालकर, बायोचार प्राप्त कर रहे हैं, जिसे हम उर्वरक के साथ मिट्टी में डालकर, सब्ज़ियाँ व अनाज उगा रहे हैं.”

टकाचार परियोजना का दावा है कि फ़सल के हर मौसम में, प्रति किसान, प्रति एकड़, तीन मीट्रिक टन चावल के भूसे को खुले में जलाने से रोकने से, हानिकारक वायु प्रदूषण की रोकथाम सम्भव है. इससे छोटे किसानों की कुल आय में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि कर सकती है, और टकाचार मशीनों द्वारा उत्पादित उर्वरकों का उपयोग करने वाले खेतों की उपज में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि सम्भव है.

डब्ल्यूएफ़पी इनोवेशन एक्सेलरेटर’ का स्प्रिंट कार्यक्रम, इस प्रोटोटाइप मशीन को दुनिया भर के किसानों के इस्तेमाल योग्य कार्यशील मशीन बनाने में, टकाचार टीम की मदद कर रहा है.
WFP India/Shyamalima Kalita

एक सामयिक योजना

'WFP नवाचार प्रोत्साहक’ का स्प्रिंट कार्यक्रम, इस प्रोटोटाइप मशीन को दुनिया भर के किसानों के इस्तेमाल योग्य कार्यशील मशीन बनाने में, टकाचार टीम की मदद कर रहा है.

भारत में विश्व खाद्य कार्यक्रम इस मशीन के असर मापने के लिए टकाचार टीम के साथ मिलकर काम कर रहा है. ये आँकड़े, भारत सरकार के साथ साझा किए जाएंगे, ताकि भारत और दुनिया भर में वायु गुणवत्ता में सुधार पर अभिनव समाधानों के प्रभाव उजागर किए जा सकें.

विश्व खाद्य कार्यक्रम में नीति निर्माण, एसएसटीसी, और जलवायु परिवर्तन के लिए वरिष्ठ कार्यक्रम नीति अधिकारी, प्रदन्या पैठंकर के अनुसार,“टकाचार समाधान बहुत उम्मीद भरा है, क्योंकि पराली जलाने से होने वाली वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने के अलावा, यह प्रबन्धनीय प्रौद्योगिकी, कम लागत, सम्भावित बाज़ारों और किसानों को प्रोत्साहन देने की दिशा में भी काम कर रहा है."

"असली परीक्षा, इसकी मापनीयता व किसानों द्वारा इसके बढ़ते उपयोग से होगी. डब्ल्यूएफ़पी का मानना है कि पायलट योजना की सफलता और उपयोगिता से, सरकारों एवं वित्तपोषकों द्वारा नीति व निवेश समर्थन के रास्ते खुलेंगे."