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USA: गर्भपात प्रतिबन्ध से लाखों महिलाओं व लड़कियों पर जोखिम

अमेरिका के वाशिंगटन डीसी शहर में, अक्टूबर 2021 में, गर्भपात अधिकारों के समर्थन में प्रदर्शन
© Unsplash/Gayatri Malhotra
अमेरिका के वाशिंगटन डीसी शहर में, अक्टूबर 2021 में, गर्भपात अधिकारों के समर्थन में प्रदर्शन

USA: गर्भपात प्रतिबन्ध से लाखों महिलाओं व लड़कियों पर जोखिम

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में, जून 2022 में गर्भपात का संवैधानिक अधिकार ख़त्म किए जाने के बाद से, लाखों महिलाओं व लड़कियों को, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल हासिल करने में चिन्ताजनक गिरावट का सामना करना पड़ा है.

ग़ौरतलब है कि देश के उच्चतम न्यायालय ने, गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को, जून 2022 में पलट दिया था.

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संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा है कि वर्ष 2023 के दौरान 14 राज्यों में गर्भपात को प्रतिबन्धित कर दिया गया है, और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिणाम, सम्पूर्ण क़ानूनी और नीति प्रणाली में दोहराए गए हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “उच्चतम न्यायालय द्वारा, कड़ा रुख़ अपनाए जाने से, देश में गर्भपात के अधिकार के संरक्षण की लगभग 50 वर्ष पुरानी प्रथा ध्वस्त हो जाने से, लाखों महिलाओं व लड़कियों को लिए गम्भीर जोखिम उत्पन्न हो गया है.”

उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक निर्णय के परिणामस्वरूप, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के हनन हुए हैं.

ग़ौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय के ज़रिए, 1973 के Roe vs Wade निर्णय को पलटकर, गर्भपात क़ानून, राज्यों की विधायिकाओं को लौटा दिया गया था.

विशाल अनुपलब्धता

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय उपरान्त गर्भपात पर लगे प्रतिबन्ध से, महिलाओं व लड़कियों को गर्भपात सेवाएँ आमतौर पर अनुपलब्ध हो गई हैं, जिससे व्यापक स्वास्थ्य देखभाल के उनके बुनियादी अधिकार का हनन होता है. इसमें यौन और प्रजनन स्वास्थ्य भी शामिल हैं.

उन्होंने साथ ही ये भी कहा है कि मानवाधिकार उल्लंघन के इन मामलों में, महिलाओं की निजता, शारीरिक गरिमा और स्वायत्ता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचारों की स्वतंत्रता, अन्तःकरण, धर्म या आस्था, समानता, भेदभाव से मुक्ति, और उत्पीड़न व क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक बर्ताव और लैंगिक हिंसा से मुक्ति, के मामले भी शामिल हैं.

अनुपात से अधिक प्रभाव

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “नाज़ुक परिस्थितियों वाली महिलाएँ व लड़कियाँ, इन प्रतिबन्धों से अनुपात से अधिक प्रभावित हुई हैं.”

इस सन्दर्भ में उन्होंने हाशिए पर रहने वाले समुदायों, नस्लीय व जातीय अल्पसंख्यकों, आप्रवासी समुदायों की महिलाओं व लड़कियों, विकलांगता वाली महिलाओं व लड़कियों, या निम्न आय पर, या दुर्व्यहारजनक सम्बन्धों में रहने वाली, या ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं का ज़िक्र किया.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए ये भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने, चिकित्सकों और स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों पर भी बहुत नकारात्मक प्रभाव छोड़ा है क्योंकि उन्हें भी स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी निर्णयों के लिए, क़ानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.

इनमें चिकित्सीय रूप से अनिवार्य गर्भपात, या जीवनरक्षक गर्भपात, या फिर अपूर्ण गर्भपात के अवशेषों को, महिलाओं के शरीर से साफ़ करने जैसे चिकित्सीय कार्य शामिल हैं.

मौत की धमकियाँ

अमेरिका के वाशिंगटन डीसी शहर में, गर्भपात अधिकारों के समर्थन में प्रदर्शन.
Unsplash/Gayatri Malhotra

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “हम विशेष रूप से इन बढ़ती ख़बरों पर चिन्तित हैं कि पूरे देश में, गर्भपात सेवाएँ उपलब्ध कराने वालों को, मौत की धमकियाँ दी जा रही हैं.”

उन्होंने कहा कि अनेक राज्यों में गर्भपात का आपराधिकरण किए जाने की धमकियों ने, महिलाओं व लड़कियों को, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं से सम्पर्क साधने और गर्भ के दौरान स्वास्थ्य देखभाल हासिल करने से हतोत्साहित किया है.

“ये विशेष रूप से बहुत चिन्ता की बात है कि कुछ क्लीनिक, गर्भपात-सम्बन्धी सेवाएँ मुहैया कराने से कतरा रहे हैं, यहाँ तक कि उन राज्यों में भी, जहाँ गर्भपात अभी क़ानूनी है.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने निष्कर्षतः संघीय और प्रान्तीय सरकारों से, इस सम्बन्ध में पूरी क़ानूनी व्यवस्था में फैल चुकी दमनकारी बयानबाज़ियों को पलटने के लिए कार्रवाई करने और सुरक्षित व क़ानूनी गर्भपात तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए, सकारात्मक उपाय किए जाने का आग्रह किया है.

संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर और अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद करती है. उनकी नियुक्ति, किसी विशिष्ट मुद्दे या किसी देश की ख़ास स्थितियों की निगरानी करने और उन पर रिपोर्ट सौंपने के लिए की जाती है. वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं, और ना ही उन्हें उनके कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.