मलेशिया: लज़ीज़ पकवानों की मेज़ और ' आव्रजन की कहानियाँ'
लज़ीज़ चिकन कोरमा से लेकर, इंडोनेशिया के मदुरा द्वीप पर बनाए जाने वाले कलडू कोकोट तक, हर पकवान की अपनी एक कहानी है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने, सात व्यंजनों को जीवन्त करने वाला एक अभिनव अभियान शुरू किया है, जिसके तहत भोजन और संस्कृति की समृद्ध विविधता परोस कर, प्रवासियों और शरणार्थियों के ख़िलाफ़ नफ़रत की भाषा (Hate speech) से निपटने की कोशिश की जा रही है.
दारी दापुर अभियान के निर्माता और खोजी पत्रकार, एलरोई यी ने कहा, "सभी को एक-साथ लाने के लिए, भोजन से बेहतर कोई तरीक़ा हो ही नहीं सकता. हमें उन कहानियों को साझा करने की आवश्यकता है जो प्रवासियों और शरणार्थियों को मलेशियाई गाथाओं में स्थान दे सकें."
दारी दापुर के वीडियो में, तमिल पुत्तु, कम्बोडिया के नोम बान चोक, कचिन जंगल फूड शान जू, यमनी चिकन मैंडी, और रोहिंज्याओं की फ्लैटब्रेड लुडिफिडा के स्वाद का तड़का देकर, उनकी कहानियाँ बयान की गई हैं.इसमें मलेशिया की मशहूर हस्तियाँ पकवानों की विरासत का स्वाद चखती हैं और उनका मज़ा लेती हैं.
ओएचसीएचआर द्वारा दिसम्बर 2022 में शुरू किए गए इस अभियान ने, कुआलालंपुर स्थित untitled kompeni नामक सोशल इम्पैक्ट प्रोडक्शन टीम के साथ भागेदारी की, ताकि इन स्वादिष्ट कहानियों को सार्वजनिक चर्चा के केंद्र में रखा जा सके.
'भोजन हमेशा लोगों को एकजुट करता है'
मशहूर हस्तियों ने सात लघु वीडियो के ज़रिए, प्रवासी श्रमिकों और शरणार्थियों के रसोईघरों का दौरा किया और एक ही टेबल पर बैठकर, घर का बना भोजन खाते हुए, एक दूसरे के जीवन, आशाओं व सपने साझा किए, और जाना कि उन दोनों में क्या समानताएँ हैं.
शेफ़ वान ने हमीद के साथ एक एपिसोड में कहा, "जब भी आप अपने मेहमानों के लिए भोजन पकाते हैं, तो सबके चेहरों पर मुस्कान फैल जाती है, सब ख़ुश होते हैं, क्योंकि भोजन का स्वाद हमेशा लोगों को एक-साथ लाता है."
उन्होंने कहा, "हम भले ही किसी भी संस्कृति से आते हों, लेकिन भोजन की ज़रूरत सबको होती है."
बागान की यात्रा
एक कम्बोडियाई बागान कार्यकर्ता, लीज़ा ने अपने मेहमानों, मलेशियाई हास्य कलाकार कविन जे और भोजन इंस्टाग्राम हस्ती एल्वी के साथ, भोजन के अलावा भी बहुत-कुछ साझा किया.
लीज़ा ने बागानों में एक दिन की यात्रा के दौरान, उन्हें सुगन्धित किण्वित चावल नूडल पकवान, नोम बन चोक बनाने की विधि सिखाई.
लीज़ा ने कहा, "उनके यहाँ मुझसे और मेरे दोस्तों से मिलने आने से मुझे बहुत ख़ुशी हुई."
भोजन की मेज़ पर चुटकुलों का आदान-प्रदान करते हुए कविन जे ने कहा, "हर किसी के पास प्रवासन की अपनी कहानी होती है."
उन्होंने कहा, "इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आपकी नस्ल क्या है, अगर आप इतिहास देखेंगे, तो आपको अपनी प्रवासन की कहानी मिल जाएगी."
दारी दापुर एपिसोड में भी रात के भोजन के समय, इसी तरह हँसी-मज़ाक का माहौल रहा, जिसमें प्रवासी और शरणार्थी रसोइयों ने, सामाजिक न्याय हस्ती डॉक्टर हरतिनी ज़ैनुद्दीन, हिजाबी, रैपर बुंगा, शिक्षाविद सैमुअल इसायाह, तमिल फिल्म स्टार यासमीन नादिया, चीनी भाषा के रेडियो डीजे क्रिस्टीना, और राजनेता व सामाजिक कार्यकर्ता, नूरुल इज़्ज़ा अनवर के साथ शिरकत की.
'सब-कुछ एक समान है!'
एक एपिसोड में देखा गया कि रमदान महीने में, उपवास ख़त्म करने का तरीक़ा, म्याँमार से मलेशिया तक बिल्कुल एक जैसा ही है. इसमें, प्रसारण पत्रकार मेलिसा इदरीस और अमेरिकी राजदूत ब्रायन मैकफीटर्स ने रोहिंज्या समुदाय की ट्रेनर, आयशा के साथ गुफ़्तगू की.
आयशा ने अपने मेहमानों के लिए इफ़्तार की दावत तैयार करते हुए कहा, "मैं उन्हें जानना चाहती हूँ और मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि मैं बता पाऊंगी कि मैं क्या करती हूँ और मैं [उनके लिए] कौन हूँ."
आयशा ने, पारम्परिक व्यंजनों से भरी मेज़ पर बैठाकर, अपनी कुछ सहेलियों के साथ खुलकर बात की.
ईद समारोह के बारे में बातचीत करने से पहले उन्होंने बताया, "इससे पहले, मैंने कभी अन्य समुदायों के लिए खाना नहीं बनाया."
इदरीस और आयशा के दोस्त, रोकोन ने अपने मलेशियाई गाँव और म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में स्थित अपने पुश्तैनी घर में बिताए अपने बचपन की यादें साझा कीं.
इदरीस ने कहा, "सब-कुछ एकदम एक जैसा ही है! कभी-कभी हम मतभेदों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और यह नहीं समझ पाते कि हमारी परम्पराएँ लगभग समान ही हैं."
दावत के बाद, उसने आभार व्यक्त करते हुए एक रहस्योद्घाटन किया.
उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि कैसे "मीडिया, शरणार्थियों और प्रवासियों को अलग-थलग करने, घृणा को आम करने, विभाजन के बीज बोने, व पहले से ही हाशिए पर धकेले समुदाय को, महामारी के दौरान डराने व बलि का बकरा बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है."
पत्रकार मेलिसा इदरीस ने नम आँखों से कहा, “उन्होंने हमें सर्वश्रेष्ठ दिया, सभी कुछ दिया. उन्होंने जितना प्यार भरा बर्ताव मेरे साथ किया, अगर एक मेज़बान के तौर पर हमारा देश भी, उतना ही कृपालु हो जाए, तो कितना कुछ बदल सकता है.”
‘शोर को चीरता अभियान'
अभियान के लिए, OHCHR ने जो शोध किया उसमें प्रवासियों और मलेशियाई लोगों के बीच जटिल सम्बन्ध उजागर हुए. निष्कर्षों से पता चला कि शोध में भाग लेने वाले जन, इस बात से पूर्ण सहमत हैं कि मानवाधिकारों का सम्मान, एक सभ्य समाज का संकेत है, और देश में सर्वजन को समान अधिकार मिलना चाहिए.
लगभग 63 प्रतिशत लोगों ने सहमति व्यक्त की कि सर्वजन के समर्थन से, समुदाय मज़बूत बनते हैं, और आधे से अधिक लोगों का मानना था कि उन्हें अन्य लोगों की मदद करनी चाहिए, चाहे वो कोई भी हों या कहीं से भी आए हों.
लगभग 35 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने काफ़ी दृढ़ता से माना कि उत्पीड़न या युद्ध से भाग रहे लोगों का स्वागत किया जाना चाहिए. इतनी ही संख्या उन लोगों की भी थी जो उन लोगों की मदद करना चाहते हैं, जो स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, भोजन या सभ्य कामकाज हासिल करने में असमर्थ हैं.
OHCHR में एशिया प्रशान्त क्षेत्र में प्रवास पर वरिष्ठ सलाहकार पिया ओबेरॉय ने कहा, "बहुत से मलेशियाई लोगों के लिए प्रवास एक जटिल और भावनात्मक मुद्दा है, लेकिन कहानियाँ इस शोर को चीरने का अच्छा माध्यम हैं."
सूप एवं मैत्री
उन्होंने कहा, "हमारे शोध में पाया गया है कि यह समझने के लिए कि हमें विभाजित करने वाले मुद्दों के बजाय, हमें एकजुट करने वाले मुद्दे अधिक हैं, लोग विस्थापित लोगों के दैनिक जीवन के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं."
उन्होंने कहा कि यह अभियान, साझा वास्तविकताओं और मूल्यों के आसपास रचा गया है, और 75 साल पुराने - मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र में उपयोग किए गए शब्दों का प्रतीक है.
उन्होंने कहा कि इन लघु फिल्मों के निर्माण के ज़रिए, "हम मलेशियाई कहानीकारों को उनके कथानक साझा करने और सभी को अपने प्रवासी एवं शरणार्थी पड़ोसियों के साथ अपने सम्बन्धों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद करते हैं."
अभिनेत्री लीसा सुरिहानी ने, एक विशाल बागान पर, एक इंडोनेशियाई बागान कार्यकर्ता, सुहा द्वारा बनाया गया - गाय के खुरों का सूप, कलडू कोकोट चाव से पिया.
दारी डापुर प्रकरण में अभिनेत्री लीसा सुरिहानी ने कहा, "मैंने यह सीखा कि ‘जिस बात से आप अनभिज्ञ हैं, उससे प्रभावित होकर अन्य मनुष्यों के प्रति अपना व्यवहार नहीं बदलें."
लीसा सुरिहानी ने कहा, "चाहे वो कोई भी हो, हमारे कार्य करूणा से प्रेरित होने चाहिए."
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