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पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के ज़रिए, अपना कौशल निखारती रोहिंज्या शरणार्थी महिलाएँ

बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थी महिलाओं ने पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने का कौशल हासिल किया.
© UNHCR/Kamrul Hasan
बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थी महिलाओं ने पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने का कौशल हासिल किया.

पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के ज़रिए, अपना कौशल निखारती रोहिंज्या शरणार्थी महिलाएँ

महिलाएँ

बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में दूर तक फैले हुए कुटुपलोंग शरणार्थी शिविर में स्थित जूट थैला उत्पादन केन्द्र, बाहर से देखने पर बाँस से बना हुआ एक साधारण, अस्थाई ढाँचा ही नज़र आता है. मगर, भीतर क़दम रखने पर मालूम होता है कि यह तो उजले प्रकाश में व्यस्त कामगारों का केन्द्र है, जहाँ अनेक रोहिंज्या शरणार्थी महिलाएँ, सिलाई मशीन पर काम करते हुए या मेज़ बनाते हुए नज़र आती हैं.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) और ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एनजीओ फ़ोरम’ नामक साझीदार संगठन, संयुक्त रूप से ‘जूट थैला उत्पादन केन्द्र’ का संचालन करते हैं. 

इस केन्द्र में 130 रोहिंज्या महिलाएँ अन्य मानवीय राहत संगठनों के लिए सामान रखने के थैले, पादप रोपण के थैले, कमर पर लटकाए जाने वाले बैग, फ़ाइल रखने के लिए फ़ोल्डर समेत अनेक प्रकार की चीज़ें तैयार करती हैं.

ये सभी वस्तुएँ जूट से तैयार की जाती हैं, जोकि प्राकृतिक और स्थानीय स्तर पर उगाया जाने वाला एक फ़ाइबर है. यह पर्यावरण के अनुकूल और स्वाभाविक रूप से सड़नशील (biodegradable) है.

एक बेहतर भविष्य की ओर

उर्बी चाकमा इस केन्द्र की प्रभारी हैं और यहाँ तभी से काम कर रही हैं, जब दो साल पहले 2021 में इसका उदघाटन किया गया था. उन्होंने बताया कि यहाँ काम करने वाली अधिकांश महिलाएँ, विधवा या तलाक़शुदा हैं और अपने घर-परिवार की ज़िम्मेदारी सम्भाल रही हैं.

बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी महिलाओं ने पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने का कौशल हासिल किया.
© UNHCR/Kamrul Hasan

इन सभी महिलाओं को इलैक्ट्रिक सिलाई मशीन का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे शिविर में इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद बना सकें. उन्हें अपने काम के लिए वेतन भी दिया जाता है.

उर्बी का कहना है कि महिलाएँ, इस केन्द्र में, अपने भविष्य के लिए नए कौशल सीखने के इरादे से आती हैं.

“ये महिलाएँ जब म्याँमार वापिस लौटेंगी तो इस नए हुनर के ज़रिए आय अर्जित कर सकती हैं और इस विचार से उन्हें एक उम्मीद मिलती है.”

बांगलादेश में रोहिंज्या शरणार्थी संकट का यह छठा वर्ष है. लगभग दस लाख शरणार्थियों की तात्कालिक ज़रूरतों के बावजूद, मानवीय सहायता धनराशि में कमी आई है. शरणार्थी आबादी में 75 फ़ीसदी से अधिक महिलाएँ और बच्चे हैं, और उन्हें दुर्व्यवहार, शोषण व लिंग-आधारित हिंसा के जोखिम से जूझना पड़ता है.

जूट उत्पादन केन्द्र, रोहिंज्या महिलाओं को मानवीय सहायता पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है. शरणार्थियों को नए कौशल व आजीविका अवसरों से जोड़ना, उनके परिवारों को सहारा देने, अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने, और स्वैच्छिक व गरिमामय ढंग से म्याँमार वापसी के लिए उन्हें तैयार करने के नज़रिए से महत्वपूर्ण है.

एकल माताएँ अक्सर अपने समुदायों में अलग-थलग महसूस करती हैं. इसके मद्देनज़र, यह केन्द्र ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रही अन्य महिलाओं को आपस में मिलने व जानने का अवसर देता है.

उर्बी के अनुसार, महिलाएँ अपनी समस्याओं व दुखों को एक-दूसरे के साथ साझा करती हैं, जिससे वास्तव में उनका अवसाद कम होता है.

हुसैन बानो का कहना है कि जब से उन्होंने जूट बैग फैक्ट्री में काम करना शुरू किया है, तब से उनके जीवन को नया अर्थ मिला है.
© UNHCR/Kamrul Hasan

सामाजिक जुड़ाव का अवसर

32 साल की हुसैन बानो के लिए यह केन्द्र एक ऐसी जगह है, जहाँ वो ना केवल काम करने और नए कौशल सीखने के लिए आती हैं, बल्कि जहाँ वो अपनी सहेलियों के साथ बातें कर सकती हैं. जैसेकि उन्होंने बीती रात खाने में क्या बनाया था या फिर वे अपने बीमार बच्चों का किस तरह ध्यान रख रही हैं.

“मुझे यहाँ हर दिन आना पसन्द है. अगर, मैं केवल घर में ही रहती हूँ तो मुझे अच्छा नहीं लगता, क्योंकि मेरे पति नहीं हैं, केवल बच्चे हैं."

अगस्त 2017 में म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में हिंसा भड़कने के बाद, हुसैन बानो अपने पति से बिछड़ गईं थी. उन्होंने जान बचाने के लिए अपने माता-पिता और दो छोटे बच्चों के साथ सीमा-पार बांग्लादेश में शरण ली और कॉक्सेस बाज़ार पहुँचने के बाद अपने तीसरे बच्चे को जन्म दिया.

“उसके बाद से अब तक मुझे मेरे पति के बारे में कोई ख़बर नहीं मिली है, और मैंने मान लिया है कि अब वह जीवित नहीं हैं.”

उन्हें लगभग एक साल पहले उत्पादन केन्द्र में काम शुरू करने से पहले, अपनी गुज़ार-बसर और बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था.

हुसैन बानो ने बताया कि राशन के अलावा उन्हें कभी कोई कपड़ा या कुछ और सामान नहीं मिला, और भोजन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं था. मुझे हमेशा चिन्ता रहती थी कि मैं अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे करूंगी.

अब उन्हें जो थोड़ा वेतन मिलता है, उससे वह कभी-कभी अपने बच्चों के लिए मछली, उनके पहनने के लिए जूते और अन्य चीज़ें ख़रीद सकती हैं.

नज़रिए में बदलाव

उर्बी का कहना है कि रोहिंज्या समुदाय में महिलाओं के प्रति कथित रूढ़िवादी दृष्टिकोण के कारण महिलाओं के लिए ऐसे केन्द्र में आना आसान नहीं है.

“वे इन सामाजिक मानदंडों और पूर्वाग्रहों को तोड़कर अपने परिवारों की भलाई के लिए ऐसा कर रही हैं.” हुसैन बानो बताती हैं कि अगर उन्हें किसी से घर पर रहने की सलाह मिलती है तो वे उस पर ध्यान नहीं देती है.

“अगर, मैं दूसरों की बात सुनुँ तो क्या करूंगी. मैं अपने बच्चों के लिए वस्तुएँ ख़रीद सकती हूँ और मेरे लिए यही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.”

उर्बी के अनुसार, घर से बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं के बारे में समुदाय की सोच धीरे-धीरे बदल रही है, लेकिन उन्होंने सबसे अधिक परिवर्तन स्वयं महिलाओं में ही देखा है.

“जब हम प्रशिक्षण शुरू करते हैं तो महिलाएँ बहुत संकोच करती हैं, लेकिन प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, आप उन्हें अपनी आवाज़ उठाते हुए देख सकते हैं.”