वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान से ‘दैहिक दंड’ को ख़त्म करने की पुकार

अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद में, एक सड़क पर कुछ महिलाएँ (फ़ाइल फ़ोटो)
UN Photo/Fardin Waezi
अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद में, एक सड़क पर कुछ महिलाएँ (फ़ाइल फ़ोटो)

अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान से ‘दैहिक दंड’ को ख़त्म करने की पुकार

मानवाधिकार

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) ने सोमवार को कहा है कि देश में सत्तारूढ़ तालेबान अधिकारियों द्वारा दिया जा रहा दैहिक दंड, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के ख़िलाफ़ है और उस पर तत्काल रोक लगाई जानी होगी. इस दंड के दायरे में शारीरिक उत्पीड़न किए जाने के साथ-साथ मृत्युदंड भी शामिल हो सकता है.

अफ़ग़ानिस्तान में यूएन मिशन की मानवाधिकार प्रमुख फ़ियोना फ़्रेज़र ने कहा है, “दैहिक दंड, उत्पीड़न पर कन्वेंशन का उल्लंघन है और उस पर तत्काल रोक लगाई जानी होगी.”

Tweet URL

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र मृत्युदंड के “सख़्त ख़िलाफ़” है.

फ़ियोना फ़्रेज़र ने सत्तारूढ़ प्रशासन से मृत्युदंड पर “तत्काल स्वैच्छिक रोक” लगाए जाने का आहवान किया है.

कोड़े मारना और संगसारी

यूनामा की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने 15 अगस्त 2021 को तालेबान की सत्ता वापसी के बाद से “दैहिक दंड के अनेक तरीक़ों” का संकलन किया है. इनमें लोगों को बैंत या कोड़े से मारना, पत्थरों से मारना (संगसारी), लोगों को ठंडे पानी में खड़े रहने के लिए विवश करना और जबरन सिर मुंडवाने जैसे दंडात्मक तरीक़े शामिल हैं”.

ध्यान रहे कि तालेबान ने एक निर्वाचित सरकार को सत्ता से बेदख़ल करके अपना नियंत्रण स्थापित किया था.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों के दौरान, 274 पुरुषों, 58 महिलाओं और दो लड़कों को सरेआम कोड़ों से मारा-पीटा गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान में इस समय क़ानून व्यवस्था, “निष्पक्ष मुक़दमे और क़ानूनी प्रक्रिया की न्यूनतम गारंटी सुनिश्चित करने में नाकाम हो रही है”.

यूनामा ने आगाह करते हुए कहा है कि तालेबान द्वारा महिला बचाव वकीलों को लाइसेंस देने से इनकार करने और महिला न्यायाधीशों को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर कर देने से, न्याय तक महिलाओं और लड़कियों की पहुँच पर प्रभाव पड़ रहा है.

अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का हनन

दैहिक दंड को ऐसे किसी भी दंड के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें शारीरिक बल प्रयोग किया जाता है और एक निश्चित स्तर की दर्द या तकलीफ़ पहुँचाने की नीयत होती है, चाहे वो कितना भी हल्का बल प्रयोग हो.

यूनामा की रिपोर्ट में दोहराते हुए कहा गया है कि उत्पीड़न और क्रूरता, अमानवीय या अपमानजनक बर्ताव या दंड की निषिद्धता को, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत एक बुनियादी सिद्धान्त समझा जाता है.

100 कौड़ों की सज़ा

यूनामा ने 15 अगस्त 2021 से 12 नवम्बर 2022 तक की अवधि में, न्यायिक दैहिक दंड दिए जाने के कम से कम 18 मामले दर्ज किए, जिन्हें प्रान्तीय, ज़िला स्तरीय और अपील न्यायालयों में सत्ताधीन प्रशासनिक अधिकारियों ने अंजाम दिया.

रिपोर्ट में दिखाया गया है, “इन 18 मामलों में 33 पुरुषों और 22 महिलाओं को दंडित किया गया, जिनमें दो लड़कियाँ भी थीं.

दैहिक दंड के इन मामलों में अधिकतर, परस्त्रीगमन (Adultry) या घर से भाग जाने के कथित अपराधों से सम्बन्धित थे और जिन महिलाओं व लड़कियों को दंडित किया गया, उन सभी को इन अपराधों में अभियुक्त बनाया गया था.”

रिपोर्ट के अनुसार, आमतौर पर, इन दंडों में, दोषी क़रार दिए गए हर एक व्यक्ति को, 30 से 39 कोड़े मारे गए. अलबत्ता कुछ मामलों में तो लोगों को 80 से 100 तक कोड़े भी मारे गए.