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अफ़ग़ान महिलाओं के शब्द: ‘हम जीवित तो हैं, मगर ज़िन्दगी से महरूम हैं’

अफ़ग़ानिस्तान के कन्दाहार में, यूनीसेफ़ समर्थित एक सचल स्वास्थ्य केन्द्र में, महिलाएँ और बच्चे अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए.
© UNICEF/Salam Al-Janabi
अफ़ग़ानिस्तान के कन्दाहार में, यूनीसेफ़ समर्थित एक सचल स्वास्थ्य केन्द्र में, महिलाएँ और बच्चे अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए.

अफ़ग़ान महिलाओं के शब्द: ‘हम जीवित तो हैं, मगर ज़िन्दगी से महरूम हैं’

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान द्वारा, देश की महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के व्यवस्थागत दमन के परिणामस्वरूप ऐसे मौतें होने के हालात तैयार हो सकते हैं जिन्हें रोका जा सकता है, और अगर पाबन्दियाँ नहीं हटाई गईं तो इन मौतों को जानबूझकर महिलाओं की हत्या माना जा सकता है.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अफ़ग़ानिस्तान का आठ दिन का दौरा करने के बाद ये बात कही है.

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उन्होंने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करके कहा है, “हम व्यापक रूप से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों और महिलाओं व लड़कियों में आत्म हत्या के बढ़ते मामलों पर चकित हैं.”

“अफ़ग़ानिस्तान में संस्थागत लैंगिक भेदभाव की यह अत्यन्त गम्भीर स्थिति, दुनिया में अन्य किसी भी स्थान पर देखने को नहीं मिलती है.”

अत्यन्त भेदभाव

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चेतावनी भरे अन्दाज़ में कहा है कि अगस्त 2021 में देश की सत्ता पर तालेबान का नियंत्रण होने के बाद से, सत्तारूढ़ प्रशासन ने प्रतिबन्धकारी आदेशों का पुलन्दा जारी किया है जो, संस्थागत लिंग-आधारित अत्यन्त गम्भीर भेदभाव का रूप हैं, और महिलाओं व लड़कियों को व्यवस्थागत रूप से उनके अधिकारों से वंचित करने वाले हैं.

उन्होंने कहा कि लगातार जारी भयावह मानवाधिकार हनन ने, लिंग आधारित अन्य तरह के भेदभावों को भी उजागर कर दिया है, जो तालेबान का शासन शुरू होने से पहले भी मौजूद थे, जो समाज में गहरी जड़ें जमा चुके हैं और उन्हें अब सामान्य समझा जाने लगा है.

इस समय, महिलाओं को छठी कक्षा से ऊपर की शिक्षा हासिल करने से प्रतिबन्धित किया गया है, जिनमें विश्व विद्यालय की शिक्षा पर पाबन्दी भी शामिल है.

साथ ही महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल केवल महिलाएँ ही उपलब्ध करा सकती हैं और महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र व ग़ैर-सरकार संगठनों (NDGs) के लिए भी काम करने से रोका हुआ है.

‘नज़रबन्दी में जीवन’

अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर रिचर्ड बैनेट और महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध भेदभाव पर कार्यकारी दल की अध्यक्ष डॉरोथी ऐस्ट्रैडा-टैंक ने, इस यात्रा के अपने आरम्भिक अनुभव साझा किए हैं, जिनमें तालेबान नेताओं के साथ उनकी बैठकों और काबुल व मज़ार-ए-शरीफ़ में महिलाओं व लड़कियों से मुलाक़ातों के दौरान मिली जानकारियाँ भी शामिल हैं. ये मुलाक़ातें 17 अप्रैल और 4 मई के दौरान की गईं.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “अनेक महिलाओं ने डर और अत्यन्त गम्भीर चिन्ता भावनाएँ व्यक्त कीं और अपनी स्थिति को नज़रबन्दी की ज़िन्दगी क़रार दिया.”

उन्होंने कहा, “हम इस वास्तविकता पर भी विशेष रूप से चिन्तित हैं कि जो महिलाएँ इन दमनकारी उपायों के ख़िलाफ़ शान्तिपूर्ण प्रदर्शन करती हैं, उन्हें धमकियों, उत्पीड़न, मनमाने तरीक़े से बन्दीकरण और अत्याचार का सामना करना पड़ता है.”

मानवीय राहत मामलों में संयोजन के लिए यूएन एजेंसी की एक महिला कर्मचारी, पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में विस्थापित महिलाओं से मिल रही है.
© UNOCHA/Charlotte Cans

अत्यन्त स्त्रीद्वेष

मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार देश में सत्तारूढ़ प्राधिकारियों ने क़ानूनी और संस्थानात्मक ढाँचे को ध्वस्त कर दिया है और वो स्त्रीद्वेश के अत्यन्त गम्भीर तरीक़ों से शासन कर रहे हैं. इन उपायों ने, लैंगिक समानता में पिछले दो दशकों के दौरान हासिल की गई तुलनात्मक प्रगति को भी तबाह कर दिया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि तालेबान के साथ बैठकों में उन्हें बताया गया है कि महिलाएँ, स्वास्थ्य, शिक्षा, और व्यवाय क्षेत्रों में काम कर रही हैं और वो ये भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि महिलाएँ शरिया के अनुसार, पुरुषों से अलग हालात में कामकाज कर सकें.

सत्तारूढ़ प्राधिकारियों ने अपना ये सन्देश भी दोहराया कि स्कूल फिर से खोलने पर भी काम कर रहे हैं, हालाँकि उन्होंने कोई स्पष्ट समय सीमा नहीं बताई. उन्होंने साथ ही ये संकेत भी दिया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को, देश के अन्दरूनी मामलों में दख़ल नहीं देना चाहिए.

अलबत्ता उन्होंने ये भी ध्यान दिलाया कि तालेबान धर्म की कुछ ऐसी परिभाषाएँ भी लागू करते हैं, जो ऐसा लगता है कि बहुसंख्या में अफ़ग़ान लोग स्वीकार नहीं करते हैं.

‘जीवत तो हैं मगर ज़िन्दगी जी नहीं रहे’

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि उन्होंने एक महिला के साथ बात की, जिसने कहा, “हम जीवित तो हैं मगर ज़िन्दगी नहीं रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि प्रतिबन्धकारी उपायों के कारण, तथाकथित ‘नैतिक अपराधों’ के नाम पर गिरफ़्तारियाँ हो रही हैं. नए क़ानूनों ने घरेलू हिंसा से बचने वालों के लिए सुरक्षा व समर्थन की व्यवस्था को बिखेर दिया है, जिससे महिलाओं और लड़कियों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि प्रभाव बहुत चिन्ताजनक हैं, और तालेबान द्वारा लागू किए गए उपायों के कारण, बाल व जबरन विवाह, और लिंग आधारित हिंसा के मामलों में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिनमें दंडमुक्ति भी देखने को मिलती है.

उन्होंने चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि दुनिया अपनी आँखें नहीं बन्द कर सकती.