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चीन: 'रोज़गार कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम', तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान के लिए ख़तरा

ल्हासा में एक धार्मिक आयोजन के दौरान दो तिब्बती बुज़ुर्ग.
© Unsplash/Aden Lao
ल्हासा में एक धार्मिक आयोजन के दौरान दो तिब्बती बुज़ुर्ग.

चीन: 'रोज़गार कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम', तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान के लिए ख़तरा

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गुरूवार को अपने एक संयुक्त वक्तव्य में आगाह किया है कि चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में ‘श्रमिक स्थानांतरण’ और ‘व्यवसाय एवं रोज़गार कौशल’ प्रशिक्षण कार्यक्रमों (vocational training) से तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान पर ख़तरा है, और इससे जबरन श्रम कराए जाने की परिस्थितियाँ उपज सकती हैं.

यूएन विशेषज्ञों ने तिब्बत के लाखों लोगों को, वर्ष 2015 से अपने पारम्परिक ग्रामीण जीवन व रहन-सहन से ‘स्थानांतरित’ किए जाने और उन्हें कम कौशल व कम वेतन के रोज़गार पर रखे जाने की ख़बरों पर चिन्ता जताई है.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने कहा कि वैसे तो इस कार्यक्रम को स्वैच्छिक बताया गया है मगर, असल में लोगों पर इसमें शामिल होने का दबाव डाला जाता है.

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उनके अनुसार, श्रमिक स्थानांतरण कार्यक्रमों को एक वोकेशनल प्रशिक्षण केन्द्र के एक नैटवर्क के ज़रिये संचालित किया जाता है, जिसमें एक सैन्य माहौल में सांस्कृतिक व राजनैतिक रूप से दिलो-दिमाग़ को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है.

कार्यक्रम के प्रतिभागियों को कथित तौर पर अल्पसंख्यक तिब्बतियों की भाषा का प्रयोग करने से रोका जाता है, सांस्कृतिक पहचान की अभिव्यक्ति से हतोत्साहित किया जाता है.

यूएन विशेषज्ञों ने बताया कि स्थानीय प्रशासन द्वारा इन्हें, निर्धनता उन्मूलन की दिशा में एक अवरोध के रूप में देखा जाता है.

लेकिन, मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि इस कार्यक्रम से तिब्बत के लोग और अधिक दरिद्रता और जबरन काम कराए जाने का शिकार हो सकते हैं.

निरीक्षण व्यवस्था का अभाव

विशेषज्ञों ने बताया कि तिब्बत के लोगों को उनकी टिकाऊ आजीविकाओं, जैसेकि ऊन व दूध उत्पादन से दूर किया जा रहा है, जोकि पारम्परिक रूप से उनके लिए बेहतर साबित हुई है, और निर्माण व उत्पादन में कम आय और कम कौशल वाले काम की ओर धकेला जा रहा है.

“तिब्बतियों को प्रशिक्षण केन्द्रों से सीधे नए कार्यस्थलों में स्थानांतरित किया जाता है, जिससे इस नए रोज़गार के लिए उनकी सहमति के बारे स्पष्ट जानकारी नहीं है.”

उनके अनुसार, ऐसी कोई निरीक्षण व्यवस्था नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि कामकाजी परिस्थितियों को जबरन श्रम की श्रेणी में रखा जा सकता है या नहीं.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चीन से उन क़दमों के बारे जानकारी प्रदान करने का आग्रह किया है जिनके ज़रिये तिब्बत के लोग, वोकेशनल प्रशिक्षण और श्रम स्थानांतरण कार्यक्रमों से अलग हट सकते हैं.

साथ ही, उनके नए रोज़गार स्थलों पर कामकाजी परिस्थितियों की निगरानी करने और तिब्बतियों के धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के लिए सम्मान सुनिश्चित किए जाने पर बल दिया गया है.

बताया गया है कि चीन सरकार की ओर से आरम्भिक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है और इस मुद्दे पर सम्बद्ध प्रशासनिक कार्यालय से सम्पर्क बरक़रार है.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

इस वक्तव्य को जारी करने वाले छह स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.

सभी रैपोर्टेयर अपने शासनादेश (mandate) के तहत, दासता के समकालीन रूपों, मानव तस्करी, सांस्कृतिक अधिकार और अल्पसंख्यक मामलों समेत अनेक मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं.

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.