कोविड-19 व बढ़ती भ्रामक जानकारी के कारण, करोड़ों बच्चे जीवनरक्षक टीकों से वंचित
यूनीसेफ़ की State of the World’s Children 2023 रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान 112 देशों में टीकाकरण कवरेज का स्तर घटा है, जोकि "30 वर्षों में बाल टीकाकरण में लगातार हुई सबसे बड़ी गिरावट" है. एजेंसी के अनुसार, टीकों के बारे में भ्रामक जानकारी में वृद्धि इसका एक बड़ा कारण है.
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UNICEF
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक, कैथरीन रसैल ने कहा कि महामारी के चरम पर, वैज्ञानिकों ने तेज़ी से जीवनरक्षक टीकों का विकास किया, "इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बावजूद, सभी प्रकार के टीकों के बारे में भय और ग़लत जानकारी, वायरस की तरह ही व्यापक रूप से फैली."
चेतावनी संकेत
यूनीसेफ़ के अनुसार, महामारी से स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव पड़ने और घर पर ही रहने के उपायों के कारण, बाल टीकाकरण "लगभग हर स्थान" पर बाधित हुआ. इस नए डेटा में, कई देशों में बाल टीकाकरण के प्रति भरोसे में 44 प्रतिशत तक की गिरावट की प्रवृत्ति उजागर हुई है.
कैथरीन रसैल ने ज़ोर देकर कहा, "यह आँकड़े एक चिन्ताजनक चेतावनी का संकेत है. हम नियमित टीकाकरण पर भरोसे को, महामारी का एक और शिकार नहीं बनने दे सकते. अन्यथा, मौतों की अगली लहर ख़सरा, डिप्थीरिया जैसी रोकथाम योग्य बीमारियों से ग्रस्त बच्चों की हो सकती हैं."
वैक्सीन हिचकिचाहट में वृद्धि
यूनीसेफ़ की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अध्ययन में शामिल 55 में से 52 देशों में कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों के लिए टीकों के महत्व को लेकर लोगों की धारणा में गिरावट आई है.
चीन, भारत और मैक्सिको ही ऐसे देश थे, जहाँ टीकों की अहमियत पर धारणा स्थिर रही, या फिर उसमें सुधार हुआ. अधिकाँश देशों में, 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों और महिलाओं में, महामारी की शुरुआत के बाद बच्चों के टीकों पर भरोसा घटने की सम्भावना अधिक जताई गई.
लम्बी अवधि की प्रवृत्ति?
रिपोर्ट में कहा गया है कि "वैक्सीन पर विश्वास, अस्थिर और समय-विशिष्ट है," और यह निर्धारित करने के लिए निरन्तर अधिक डेटा संग्रह एवं विश्लेषण की आवश्यकता होगी कि क्या वैक्सीन पर भरोसे में गिरावट आगे भी बनी रह सकती है.
हालाँकि यूनीसेफ़ ने यह भी माना कि टीकों के लिए समग्र समर्थन मज़बूत बना हुआ है, और अध्ययन किए गए 55 देशों में से लगभग आधे देशों में, उत्तरदाताओं के एक विशाल बहुमत – यानि 80 प्रतिशत से अधिक ने – बाल टीकाकरण को "महत्वपूर्ण" माना.
भ्रामक जानकारी का क़सूर
रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि "कई कारकों को आपस में जोड़कर देखने से पता चलता है कि वैक्सीन हिचकिचाहट का ख़तरा बढ़ रहा है."
इन कारकों में, रिपोर्ट के लेखकों ने भ्रामक जानकारी तक बढ़ती पहुँच, विशेषज्ञता में घटते विश्वास और राजनैतिक ध्रुवीकरण का हवाला दिया है.
'बाल अस्तित्व पर संकट'
यूनीसेफ़ का कहना है कि महामारी से ठीक पहले या उसके दौरान पैदा हुए बच्चे, टीकाकरण की उम्र पार कर चुके हैं. इस अंतराल के कारण, यह बच्चे वैक्सीन से रोकथाम योग्य बीमारियों के घातक प्रकोप के जोखिम में हैं, जिसे यूनीसेफ़ ने "बाल अस्तित्व पर संकट" क़रार दिया है.
रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि दुनिया भर में ख़सरे के मामले 2021 की तुलना में, 2022 में दोगुने हो गए, और पोलियो से लकवाग्रस्त बच्चों की संख्या में साल-दर-साल 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
2019 और 2021 के बीच तीन साल की अवधि में, पोलियो से, उससे पहले के तीन वर्षों की तुलना में आठ गुना अधिक बच्चे लकवे का शिकार हुए.
गहराती असमानताएँ
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष का कहना है कि महामारी ने टीकाकरण सम्बन्धित मौजूदा असमानताओं को और बढ़ा दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि "बहुत से बच्चों के लिए, विशेष रूप से हाशिए पर धकेले समुदायों में, टीकाकरण अभी भी उपलब्ध, सुलभ या सस्ता नहीं है."
2019 और 2021 के बीच नियमित टीकाकरण से चूक गए 6 करोड़ 70 लाख बच्चों में से लगभग आधे, अफ़्रीकी महाद्वीप से हैं. रिपोर्ट में "विशाल जन्म समूह वाले देशों" के रूप में वर्णित भारत और नाइजीरिया में, 2021 के अंत तक, उन बच्चों की संख्या सबसे अधिक थी, जिन्हें एक भी नियमित टीकाकरण नहीं प्राप्त हुआ था.
कुल मिलाकर, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, शहरी क्षेत्रों के 10 में से एक बच्चा और ग्रामीण क्षेत्रों में छह में से एक बच्चा को एक भी नियमित टीकाकरण हासिल नहीं हुआ था.
निर्धनता, सशक्तिकरण की कमी
यूनीसेफ़ का कहना है कि जिन बच्चों का टीकाकरण रह गया है वो ज़्यादातर "सबसे ग़रीब और दूरस्थ" समुदायों में रहने वाले हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों या शहरी मलिन बस्तियों में स्थित हैं, और कई बार संघर्ष से प्रभावित होते हैं.
रिपोर्ट में, बच्चों को टीका लगाने के परिवार के फ़ैसले में महिला सशक्तिकरण की भूमिका को रेखांकित किया गया है. साथ ही यह संकेत दिया गया है कि नियमित टीकाकरण से वंचित बच्चों की "माताएँ अक्सर ऐसी होती हैं, जो स्कूली शिक्षा से वंचित रहीं और जिन्हें परिवार के फ़ैसलों में कम ही शामिल किया जाता है."
अल्प वेतन
यूनीसेफ़ का कहना है कि इसके निष्कर्षों में, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करने और टीकाकरण की अग्रिम पंक्ति में रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में निवेश करके, टीकाकरण के प्रयास सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है.
इन श्रमिकों में मुख्य रूप से महिलाएँ होती हैं, और रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें कम वेतन, अनौपचारिक रोज़गार, औपचारिक प्रशिक्षण व करियर के अवसरों की कमी के साथ-साथ, सुरक्षा सम्बन्धी ख़तरों जैसी अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
कार्रवाई का आहवान
यूनीसेफ़ ने सभी देशों से अपील की है कि वे तत्काल संसाधन उपलब्ध कराएँ, ताकि छूटे हुए टीकाकरण को पूरा करने के प्रयासों में तेज़ी लाई जा सके, टीकों पर भरोसा पुनर्बहाल किया जा सके और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं एवं स्थानीय वैक्सीन निर्माण को समर्थन देकर, स्वास्थ्य प्रणालियों का लचीलापन मज़बूत किया जा सके.
कैथरीन रसेल ने कहा, “भविष्य की महामारियों, अनावश्यक मौतों और पीड़ा को रोकने के लिए, नियमित टीकाकरण और मज़बूत स्वास्थ्य प्रणालियाँ ही सर्वोत्कृष्ट उपाय हैं. कोविड-19 टीकाकरण अभियान के संसाधन अभी भी उपलब्ध हैं. ऐसे में, यह समय है, इस धनराशि को टीकाकरण सेवाएँ मज़बूत करने की ओर मोड़ने और हर एक बच्चे के लिए स्थाई प्रणालियों में निवेश करने का.”