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मध्य पूर्व: पूर्वी येरूशेलम में ‘प्रथम दृष्टि में युद्धापराधों’ की शिनाख़्त

येरूशेलम के एक बाज़ार का दृश्य
UN News/Maher Nasser
येरूशेलम के एक बाज़ार का दृश्य

मध्य पूर्व: पूर्वी येरूशेलम में ‘प्रथम दृष्टि में युद्धापराधों’ की शिनाख़्त

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गुरूवार को कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को, इसराइल द्वारा पूर्वी येरूशेलम को छीनने और शहर को फ़लस्तीनियों से मुक्त कराने के हिस्से के रूप में, वहाँ से फ़लस्तीनियों को जबरन बेदख़ल करने और उनके विस्थापन को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी होगी.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में कहा है, “एक लगातार और बेक़ाबू त्रासदी होती रही है: फ़लस्तीनियों को उनके घरों से जबरन बेदख़ल करने की.”

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उन्होंने कहा, “इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में अपनी आबादी को स्थानान्तरित किया जाना, क़ब्ज़े वाले इस इलाक़े को औपनिवेशिक रूप में अपने स्वामित्व में लेने की स्पष्ट मंशा की पुष्टि करता है, जबकि इस तरह की कार्रवाई अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में निषिद्ध है.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने घोषित रूप में कहा, “यह कार्रवाई प्रथम दृष्टि में युद्धापराध की श्रेणी में आती है.”

यह संयुक्त वक्तव्य संयुक्त राष्ट्र के तीन स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की तरफ़ से जारी किया गया है:

फ्रांसेस्का अल्बानीज़ जोकि 1967 से इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में मानवाधिकार स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर हैं. बालकृष्णन राजगोपाल, जोकि समुचित आवास के अधिकार पर विशेष रैपोर्टेयर हैं, और देश के भीतर विस्थापित लोगों के मानवाधिकारों पर विशेष रैपोर्टेयरपाउला गैवीरिया बेटनकर.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि इसराइल की सरकार के साथ बार-बार ये मुद्दे उठाए जाने के बावजूद, इसराइल की तरफ़ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई है.

नगर के दर्जे में अपरिवर्तनीय बदलाव

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, दरअसल अन्तरराष्ट्रीय संगठनों और कार्यकर्ताओं के प्रयासों के बावजूद, इसराइल के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में रहने वाले फ़लस्तीनियों को, भेदभावपूर्ण क़ानूनों के आधार पर, जबरन उनके घरों से बेदख़ल किया जा रहा है और उनकी ज़मीनें व सम्पत्तियाँ छीनी जा रही हैं.

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि ये क़ानून येरूशेलम में यहूदी स्वामित्व मज़बूत करने के लिए, शहर की जनसांख्यिकी संरचना और दर्जे को, इस रूप में तब्दील किया जा रहा है, जिसे बाद में पुनर्बहाल भी नहीं किया जा सकेगा.

भेदभावपूर्ण क़ानून

येरूशेलम के पुरानी बस्ती के निकटवर्ती इलाक़े में, इस समय लगभग 150 फ़लस्तीनी परिवार, इसराइली अधिकारियों और यहूदी निवासियों द्वारा बेदख़ल और विस्थापित किए जाने के जोखिम का सामना कर रहे हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि पिछले दशकों के दौरान, पूर्वी येरूशेलम में, सैकड़ों फ़लस्तीनी सम्पत्तियों पर यहूदी निवासियों ने क़ब्ज़ा कर लिया है. ये उस क़ानून की वजह से सम्भव हुआ है जिसमें 1948 से पहले की यहूदी सम्पत्ति को, “मूल यहूदी स्वामियों” या उनके “उत्तराधिकारियों” को हस्तान्तरित करने की अनुमति देता है.

‘क़ानून युद्ध’

मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा क़ानून, फ़लस्तीनी सम्पत्तियों को, क़ानून की हेराफेरी के माध्यम से, हड़पने में यहूदी निवासियों के संगठनों की मदद करता है.

उन्होंने कहा, “यह क़ानून युद्ध का कार्रवाई रूप है. यह क़ानून भेदभावपूर्ण है और अपनी मूल प्रवृत्ति में छीनने वाला है, और इस तरह का कोई भी पुनर्बहाली या क्षतिपूर्ति का अधिकार उन दस लाख से ज़्यादा फ़लस्तीनियों और उनके उत्तराधिकारियों के लिए वजूद में नहीं है जिन्हें येरूशेलम, इसराइल और पश्चिमी तट व ग़ाज़ा के अन्य इलाक़ों से 1947 में और फिर 1967 में, विस्थापित और बेदख़ल कर दिया गया था ”

यूएन विशेषज्ञों ने कहा ये फ़लस्तीनी लोग अब भी, लम्बे समय से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का भारी उल्लंघन

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि ये अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का खुला उल्लंघन है, जो क़ाबिज़ ताक़त के इस अधिकार से मेल नहीं खाता है कि उसे केवल कड़ी सुरक्षा ज़रूरतों के तहत ही, स्थानीय क़ानून को बदलने का अधिकार है: यहूदी निवासियों और औपनिवेशिक नीयत व हित, कोई सुरक्षा ज़रूरत नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि यहूदी बस्तियाँ बसाया जाना और उनका विस्तार किया जाना, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का एक गम्भीर उल्लंघन है, जिसके लिए रोम संविदा के तहत मुक़दमा चलाया जा सकता है.

उन्होंने साथ ही ज़ोर देकर ये भी कहा कि किसी भी देश को, फ़लस्तीनियों के आत्म-निर्णय, पर्याप्त आवास, सम्पत्ति और भेदभाव से मुक्तता के अधिकारों की ख़ातिर, इन ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों को निष्क्रिय रूप में नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “फ़लस्तीनियों के लिए, अपने मानवाधिकारों का आनन्द उठाना, एक दूर की उम्मीद है क्योंकि इन अधिकारों का हनन, इसराइल के क़ब्ज़े की मूल भावना का हिस्सा है.”

उन्होंने कहा कि लगभग 56 वर्ष से चला आ रहा इसराइली क़ब्ज़े और इस तरह से इसे एक आम दंडमुक्ति के साथ, परिणामों की चिन्ता किए बिना अंजाम दिया गया है, वो अन्तरराष्ट्रीय क़ानून और उसे लागू करने की शासनादेश व्यवस्था का मखौल उड़ाता है.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “ये क़ब्ज़ा एक मज़बूत रफ़्तार के साथ रोका जाना होगा और जब तक ये नहीं होता है, तब तक इसराइल को अन्तरराष्ट्रीय क़ानून और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के तहत अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभानी होंगी.”

विशेष रैपोर्टेयर

विशेष रैपोर्टेयर और अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्त, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद करती है. ये किसी देश में ख़ास स्थिति या मानावाधिकार मुद्दों की निगरानी करते हैं और परिषद को रिपोर्ट सौंपते हैं. विशेष रैपोर्टेयर और मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र के स्टाफ़ नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.