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माली: आम नागरिक चुका रहे हैं 'आतंकी हिंसा में आई तेज़ी की क़ीमत'

माली में संयुक्त राष्ट्र मिशन के प्रमुख और महासचिव के विशेष प्रतिनिधि ऐल-घ़ासिम वाने ने सुरक्षा परिषद को देश में हालात से अवगत कराया.
UN Photo/Eskinder Debebe
माली में संयुक्त राष्ट्र मिशन के प्रमुख और महासचिव के विशेष प्रतिनिधि ऐल-घ़ासिम वाने ने सुरक्षा परिषद को देश में हालात से अवगत कराया.

माली: आम नागरिक चुका रहे हैं 'आतंकी हिंसा में आई तेज़ी की क़ीमत'

शान्ति और सुरक्षा

माली में संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी ने आगाह किया है कि देश में सुरक्षा हालात अब भी उतार-चढ़ाव से भरे हैं और कुछ इलाक़ों में आतंकवादी हिंसा हो रही है, जिसके आम लोगों के लिए विनाशकारी नतीजे हुए हैं.

माली में यूएन मिशन (MINUSMA) के प्रमुख और महासचिव के विशेष प्रतिनिधि ऐल-घ़ासिम वाने ने बुधवार को सुरक्षा परिषद की एक बैठक के दौरान, पश्चिमी अफ़्रीकी देश में पिछले तीन महीनों के घटनाक्रम का ब्यौरा दिया.

माली के उत्तरी हिस्से में असुरक्षा और सैन्य तख़्तापलट की एक विफल कोशिश के बाद, यूएन मिशन को एक दशक पहले स्थापित किया गया था.

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इसके बाद, सरकार और दो हथियारबन्द गुटों के बीच वर्ष 2015 में शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे.

विशेष प्रतिनिधि वाने ने बुधवार को सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को फ़िलहाल जारी शान्ति प्रक्रिया, और तीन वर्ष पहले हुए सैन्य तख़्तापलट के बाद नागरिक शासन (civilian rule) की दिशा में क़दम बढ़ाने की दिशा में हुई प्रगति से अवगत कराया.

उन्होंने देश में बढ़ती असुरक्षा पर चिन्ता जताते हुए कहा कि देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित मेनाका में हालात बद से बदतर हुए हैं, जिसके बारे में उन्होंने पिछले वर्ष भी आगाह किया था.

इस वर्ष जनवरी महीने से, ग्रेटर सहारा में इस्लामिक स्टेट (ISGS) और चरमपंथी जिहादी गुट, JNIM, के बीच हिंसा फिर से भड़क उठी है.

दोनों गुट अपने प्रभुत्व वाले इलाक़ों का विस्तार करने की प्रतिस्पर्धा में हैं और सप्लाई चेन पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते हैं. इस बीच, आम लोगों पर निरन्तर हमले हो रहे हैं.

मानवीय राहत प्रयासों के लिए चुनौती

विशेष प्रतिनिधि वाने के अनुसार, निजेर और माली के सुरक्षा बलों के अभियानों के बावजूद, सुरक्षा और मानवीय हालात त्रासदीपूर्ण हैं.

30 हज़ार से अधिक विस्थापित, मुख्य शहर मेनाका के पास एकत्र हो गए हैं, जबकि लगभग ढाई हज़ार लोगों ने यूएन शिविर के पास शरण ली है.  

देश की सीमाओं के भीतर विस्थापित लोगों के प्रवाह से मानवीय राहत प्रयासों पर बोझ बढ़ा है और लोगों को पेजयल, भोजन, दवा व शरण जैसी तात्कालिक ज़रूरतों से जूझना पड़ रहा है.

“उन विस्थापित लोगों को सुनना, जो वस्तुत: हमसे पेयजल की भीख मांग रहे हैं, एक स्तब्धकारी अनुभव था.”

यूएन शान्तिरक्षकों ने आमजन की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रयासों को जारी रखा है, और माली के सुरक्षा बलों के समन्वय में दिन-रात गश्त लगाई जा रही हैं.

यूएन मिशन ने अन्तर-सामुदायिक तनाव में कमी लाने के लिए आपसी मेल-मिलाप प्रयासों को भी बढ़ावा दिया है.

चरमपंथियों के बढ़ते हमले

इस बीच, गाओ और माली के मध्य क्षेत्र में चरमपंथी गुटों, ISGS और JNIM के बीच टकराव बढ़ा है. बताया गया है कि शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके अन्य हथियारबन्द गुट भी आइसिल से जुड़े इस गुट के विरुद्ध लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं.

ऐल-घ़ासिम वाने के अनुसार, माली के सुरक्षा बलों के अभियान के परिणामस्वरूप आमतौर पर केन्द्रीय इलाक़े में चरमपंथी गतिविधियों में व्यवधान आया है, और उन्हें पड़ोसी इलाक़ों, टिम्बकटू और गाओ में तितर-बितर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

उन्होंने कहा कि इन हालात में, केन्द्रीय इलाक़े में स्थिरता लाने पर केन्द्रित, सरकार की तीन वर्षीय रणनीति एक अहम क़दम है.

इस सिलसिले में माली में यूएन मिशन ने रणनीति विकसित करने में अपना समर्थन दिया है और उसे लागू करने में भी सहायता प्रदान की जाएगी.

मौजूदा सुरक्षा चुनौतियों की पृष्ठभूमि में, विशेष प्रतिनिधि ने माली के सुरक्षा बलों और यूएन मिशन के बीच नज़दीकी समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया है.

माली में यूएन शान्तिरक्षा मिशन (MINUSMA), ने देश में शान्ति व सुलह-सफ़ाई प्रयासों को समर्थन दिया है.
MINUSMA/Harandane Dicko

शान्ति प्रक्रिया

उन्होंने राजनैतिक घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए बताया कि वर्ष 2015 के शान्ति व सुरक्षा समझौते के दायरे में सम्पर्क व बातचीत जारी है, विशेष रूप से विभिन्न निगरानी तंत्रों की फिर से शुरुआत करने के विषय में.

अल्जीरिया के नेतृत्व में अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थकारों ने इस सिलसिले में अपने प्रस्तावों को पेश किया है.

ऐल-घ़ासिम वाने ने बताया कि संक्रमणकालीन प्रक्रिया में, पिछले महीने संवैधानिक जनमत-संग्रह आयोजित कराए जाने का कार्यक्रम था, मगर अभी फ़िलहाल स्थगित किया गया है ताकि हाल ही में स्थापित की गई, स्वतंत्र निर्वाचन प्रबन्धन संस्था अपना कामकाज पूर्ण रूप से संभाल सके.

फ़िलहाल, नए जनमत-संग्रह के लिए नई तारीख़ की घोषणा नहीं की गई है, मगर माली प्रशासन ने कहा है कि इस देरी से, मार्च 2024 तक संवैधानिक व्यवस्था बहाल किए जाने का लक्ष्य प्रभावित नहीं होगा.

इस बीच, प्रशासन ने संक्रमणकालीन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए क़दम उठाए हैं, जिनमें संविधान के मसौदे को अन्तिम रूप देना, और निर्वाचन क़ानून व क्षेत्रीय पुर्नगठन से सम्बन्धित क़ानूनों को पारित किया जाना है.