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भारत: कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर 'दमनात्मक' कार्रवाई तुरन्त रोके जाने की मांग

जम्मू और कश्मीर में शुक्रवार की नमाज़ का एक दृश्य. (फ़ाइल)
©John Isaac
जम्मू और कश्मीर में शुक्रवार की नमाज़ का एक दृश्य. (फ़ाइल)

भारत: कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर 'दमनात्मक' कार्रवाई तुरन्त रोके जाने की मांग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ मैरी लॉलोर ने भारत सरकार से कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध दमनकारी कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की है. यूएन विशेषज्ञ ने कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ को आतंकवाद के आरोप में एक दूसरे मामले में गिरफ़्तार किए जाने के बाद शुक्रवार को जारी अपने वक्तव्य में यह बात कही है.

मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय एजेंसियाँ, कश्मीरी नागरिक समाज के लम्बे समय से जारी दमन को और तेज़ कर रही हैं.”

“राज्यसत्ता को अपने मानवाधिकार दायित्वों का सम्मान करना होगा, और जहाँ उनका हनन किया जाता है, वहाँ जवाबदेही तय की जानी होगी.”

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पूछताछ व गिरफ़्तारी

यूएन विशेषज्ञ के अनुसार, ख़ुर्रम परवेज़, जिन्हें नवम्बर 2021 से आतंकवाद के आरोपों में पहले से ही हिरासत में रखा गया है, उन्हें 22 मार्च 2023 को भारतीय अन्वेषण एजेंसी (NIA) ने दो दिनों की पूछताछ के बाद एक दूसरे मामले में गिरफ़्तार कर लिया.

एनआईए, भारत की प्रमुख आतंकवाद-निरोधक जाँच एजेंसी है.

ख़ुर्रम परेवज़ पर ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों की रोकथाम पर क़ानून (UAPA) के तहत, जम्मू और कश्मीर नागरिक समाज गठबन्धन (JKCCS) के कामकाज के ज़रिए, आतंकवादी गतिविधियों के वित्त पोषण का आरोप लगाया गया है.

बताया गया है कि ख़ुर्रम परवेज़ की गिरफ़्तारी से पहले, जम्मू व कश्मीर नागरिक समाज गठबन्धन के एक पूर्व सहयोगी, मानवाधिकार कार्यकर्ता व पत्रकार इरफ़ान मेहराज को इसी मामले में 20 मार्च को श्रीनगर से गिरफ़्तार किया गया और फिर तत्काल नई दिल्ली हस्तान्तरित कर दिया गया.

'बढ़ता दबाव'

यूएन विशेषज्ञ का कहना है कि JKCCS के अन्य पूर्व सहयोगियों व स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को दबाव का सामना करना पड़ रहा है, और प्रशासनिक एजेंसियों ने उन्हें डरा-धमका रही हैं.

“जम्मू और कश्मीर नागरिक समाज गठबन्धन द्वारा मानवाधिकारों की निगरानी का अति-आवश्यक कार्य किया जाता है.”

उन्होंने कहा कि इस संगठन द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर शोध कार्य व विश्लेषण बहुत अहम है, उन अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के लिए भी, जोकि दुर्व्यवहार को फिर ना दोहराए जाने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं.

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों की रोकथाम क़ानून के सम्बन्ध में अपनी गम्भीर चिन्ताएँ बार-बार प्रकट की हैं.

मैरी लॉलोर ने कहा कि भारत सरकार को, देश के आतंकवाद-निरोधक फ़्रेमवर्क में बुनियादी मुद्दों को सुलटाने और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बदनाम करने और उन्हें चुप कराने में ग़लत इस्तेमाल किए जाने के बारे में बार-बार याद दिलाया गया है.

जवाबदेही पर बल

उन्होंने कहा कि अपने मानवाधिकारों का उपयोग कर रहे लोगों की गिरफ़्तारी और बन्दीकरण, मनमर्ज़ी की कार्रवाई है, और इसके लिए जवाबदेही तय करनी होगी और ऐसे क़दमों के मामलों में निवारण उपाय किए जाने होंगे.

उनके अनुसार, इस क़ानून के तहत “किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में चिन्हित किया जा सकता है और इसे किसी प्रतिबन्धित गुट के साथ सम्बन्ध या सदस्यता को स्थापित किए बिना ही किया जा सकता है.”

विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर ने कहा कि इस क़ानून को भारत-प्रशासित जम्मू व कश्मीर में नागरिक समाज, मीडिया, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध दबाव के एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

उन्होंने सभी कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध जाँच को बन्द किए जाने और उनकी रिहाई का आग्रह किया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिए करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.