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भारत: कमज़ोर समुदायों तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए, असम का अनूठा मॉडल

असम के मोरीगांव ज़िले के गोपाल कृष्णा टी एस्टेट अस्पताल में, माताएँ अपने बच्चों को टीका लगवाने के लिए धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इन्तज़ार कर रही हैं.
WHO India/Sanchita Sharma
असम के मोरीगांव ज़िले के गोपाल कृष्णा टी एस्टेट अस्पताल में, माताएँ अपने बच्चों को टीका लगवाने के लिए धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इन्तज़ार कर रही हैं.

भारत: कमज़ोर समुदायों तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए, असम का अनूठा मॉडल

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारत सरकार के सहयोग से, देश के असम प्रदेश में, एक अनूठे मॉडल के ज़रिए, घर-घर तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाई जा रहीं हैं. सरकारी व निजी सैक्टर की भागेदारी वाले इस मॉडल का उद्देश्य - कमज़ोर समुदायों को उनके घर के पास ही टीकाकरण व उचित इलाज सुविधाएँ प्रदान करना है. 

असम के मोरीगाँव ज़िले में किलिंग नदी घाटी के मनोरम गोपाल कृष्ण टी ऐस्टेट अस्पताल में, तीन महीने की अनु मिर्दा उन लगभग 10-12 बच्चों में से एक हैं, जिनका टीकाकरण किया जा रहा है.

अपने बच्चों को टीका लगवाने की प्रतीक्षा कर रही अधिकांश महिलाएँ, असम की "चाय जनजातियों" से हैं और 425 एकड़ के चाय बाग़ान में रहती व काम करती हैं. चाय जनजाति, चाय-ऐस्टेट श्रमिकों का एक बहु-जातीय समुदाय है, जो मूल रूप से ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल से आए थे, और कई पीढ़ियों से असम में रह रहे हैं.

गोपाल कृष्ण टी ऐस्टेट में 651 स्थाई कर्मचारी हैं और कुल मिलाकर यह 2,200 से अधिक लोगों का निवास स्थान है.

अस्पताल में टीकाकरण सत्र सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच होता है, लेकिन माताओं व बच्चों के पहुँचने का सिलसिला देर दोपहर तक जारी रहता है.

असम सरकार द्वारा प्रशिक्षित चाय बाग़ान कर्मचारी व सहायक नर्स मिडवाइफ़ (एएनएम), अनामिका दास, कुशलता से इन सभी को संभालतीं हैं. वो बताती हैं, "आज की 'ड्यू लिस्ट' (सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टीकाकरण के लिए बच्चों की सूची) में 16 बच्चे हैं, लेकिन कुछ ऐसी माताएँ भी हैं, जिनके बच्चों के टीके की कोई ख़ुराक़ रह गई है. कुछ अन्य लोग बाद में आएंगे, हम काम ख़त्म करके, आने वाली महिलाओं का इन्तज़ार करते हैं. आज यहाँ आने वाले सभी लोगों को टीका लग जाएगा.”

अनामिका दास, सावधानीपूर्वक जन्म से तीसरे दिन से लेकर 42 सप्ताह तक प्रत्येक नवजात शिशु के स्वास्थ्य और वज़न का रिकॉर्ड रखती हैं. साथ ही, समीक्षा व डिजिटल प्रक्रिया के लिए नियमित रूप से ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के साथ सारा डेटा साझा करती हैं.

असम में मोरीगाँव के ज़िला टीकाकरण अधिकारी, डॉक्टर निरंजन कोंवर बताते हैं, "यह अस्पताल चाय बाग़ान अस्पतालों के साथ, असम सरकार के सार्वजनिक - निजी साझेदारी (पीपीपी) का हिस्सा है, जिसका मक़सद लोगों के निवास स्थान के समीप ही, नियमित टीकाकरण व प्रसव पूर्व एवं प्रसवोत्तर देखभाल सहित अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को मज़बूत करना है.

योजना के तहत, असम का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन आवश्यक दवाओं, डॉक्टरों, एएनएम (सहायक नर्स मिडवाइफ़) और आशा (सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवकों) के रूप में सहायता प्रदान करता है, जिसमें प्रशिक्षण, नए उपकरणों की ख़रीद व मौजूदा बुनियादी ढाँचे का नवीनीकरण करने के लिए, वित्तीय सहायता शामिल है. लक्ष्य है - ऐसे बच्चों की संख्या में कमी लाना, जिन्हें टीके की एक भी ख़ुराक़ नहीं मिली है और यह सुनिश्चित करना कि कोई भी बच्चा या माँ, टीकाकरण से छूट न जाए.”

स्वतंत्रता-पूर्व एक ब्रिटिश बंगले में स्थित, गोपाल कृष्ण टी ऐस्टेट अस्पताल में, हाल ही में चार बिस्तर, एक लेबर रूम और बेबी-वार्मर वाला एक प्रसूति वार्ड जोड़ा गया है.

डब्ल्यूएचओ निगरानी चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरूप के. डेका, अस्पताल में नियमित टीकाकरण गतिविधियों की निगरानी कर रहे हैं.
WHO India/Sanchita Sharma

WHO की भूमिका

पदमश्री अपनी डेढ़ महीने की बेटी निर्मला को पेंटावेलेंट वैक्सीन की पहली ख़ुराक़ के लिए यहाँ लाई हैं, जो बच्चों को पाँच जानलेवा बीमारियों - डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनस, हेपेटाइटिस-बी और Hib (हेमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी) से सुरक्षा प्रदान करती है.

पदमश्री को आशा कार्यकर्ता, नोमिता पहाड़िया ने नियमित टीकाकरण दिवस के बारे में सचेत किया. नोमिता पहाड़िया ने बताया, "यहाँ आमतौर पर लोग टीका लगवाने में संकोच नहीं करते, परिवारों को टीकाकरण व अच्छे स्वास्थ्य का मूल्य पता है."

WHO का राष्ट्रीय लोक समर्थन नैटवर्क, असम सरकार को एक भी ख़ुराक़ न पाने वाले बच्चों की संख्या में कमी लाने, पूर्ण टीकाकरण कवरेज में सुधार करने, स्कूल टीकाकरण योजनाओं को बढ़ाने और शहरी, कम सेवा वाले व दुर्गम क्षेत्रों में टीकाकरण कवरेज को बढ़ावा देने के लिए, तकनीकी और निगरानी सहायता प्रदान करता है.

सुरजुमुनि मुर्मू, थकान और उनीन्देपन के लक्षणों की जाँच करवाने अस्पताल आई हैं. उनकी जाँच के  नतीजे बताते हैं कि उसका हीमोग्लोबिन 6 mg/dL पर है, जोकि काफ़ी कम है. सरकारी चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मोहित डेकराजा ने, उन्हें आयरन सप्लीमेंट और पोषण सम्बन्धी परामर्श दिया.

डॉक्टर मोहित डेकराजा बताते हैं, "मलेरिया के मामलों में कमी आई है, लेकिन कृमि संक्रमण, रक्ताल्पता और टीबी बड़ी समस्या बनी हुई है. हमारे यहाँ 10 टीबी के मामले हैं, जिनमें से दो ठीक हो चुके हैं लेकिन आठ - सात पुरुष और एक महिला - अब भी डॉट्स (directly observed treatment shortcourse) पर हैं."

"उनकी नियमित निगरानी की जाती है, जिसमें पोषण पैकेज देना, सक्रिय टीबी के लिए सभी घरेलू सम्पर्कों की जाँच करना और जाँच में टीबी न आने पर, उन्हें निवारक उपचार देना शामिल है. हमें मोरीगाँव सिविल अस्पताल और मोरीगाँव ज़िला स्वास्थ्य प्रशासन का समर्थन प्राप्त है.”

टीबी और नियमित टीकाकरण जैसी गुणवत्तापूर्ण सेवाओं और सामुदायिक सम्पर्क पहलों की उपलब्धता से, लोगों का भरोसा बढ़ा है और उत्तम स्वास्थ्य के लिए उनमें व्यवहार परिवर्तन देखा जा रहा है.

मोरीगाँव ज़िले के 12 गाँवों की आशा पर्यवेक्षक, येरुनेसा ख़ातून कहती हैं, "यहाँ टीके लगाने को लेकर कोई झिझक दिखाई नहीं देती. लोग आशा कार्यर्ताओं से पूछते रहते हैं कि वे अपने बच्चों को टीका लगवाने के लिए कब ला सकते हैं."