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LDC5: अल्पतम विकसित देशों में, अधिक समावेशी व न्यायसंगत डिजिटल परिवर्तन की पुकार

सूडान में एक लड़की, सौर ऊर्जा से संचालित एक लघु कम्प्यूटर टैबलेट का प्रयोग करते हुए.
© UNICEF/Florine Bos
सूडान में एक लड़की, सौर ऊर्जा से संचालित एक लघु कम्प्यूटर टैबलेट का प्रयोग करते हुए.

LDC5: अल्पतम विकसित देशों में, अधिक समावेशी व न्यायसंगत डिजिटल परिवर्तन की पुकार

आर्थिक विकास

अल्पतम विकसित देशों (LDCs) पर, क़तर की राजधानी दोहा में चल रहे संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने, सोमवार को अपना ध्यान विश्व की सर्वाधिक विवादास्पद चुनौतियों में से एक की तरफ़ मोड़ा: विश्व के धनी और निर्धन देशों के दरम्यान आश्चर्यजनक रूप से अति व्यापक डिजिटल खाई को पाटना.

इस मुद्दे पर ये ताज़ा चर्चा, एक ऐसे समय में हुई है जब संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि कम विकसित देशों (LDCs) की दो-तिहाई आबादी अब भी ऑफ़लाइन है.

कम विकसित देशों (LDCs) पर संयुक्त राष्ट्र के पाँचवें सम्मेलन में, सोमवार को एक गोलमेज़ चर्चा, वैश्विक नेतृत्व हस्तियों ने इन देशों के सामने दरपेश, सर्वाधिक बुनियादी बाधाओं पर बहस की: विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) का बेहतर प्रयोग किस तरह किया जाए, और इस तरह के ढाँचागत बदलाव, कैसे प्रोत्साहित किए जाएँ, जिनसे, इन समाजों की निर्बलतम आबादी के सामने दरपेश वास्तविक बाधाओं पर पार पाने में मदद मिल सके.

कम विकसित देशों में निर्धनता उन्मूलन, टिकाऊ विकास की तरफ़ बढ़त और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) की अहम भूमिका है. अलबत्ता, ये निर्बल देश, ढाँचागत अवरोधों के कारण, अक्सर प्रौद्योगिकीय विकास के पूर्ण आर्थिक और सामाजिक लाभ नहीं उठा पाते हैं, क्योंकि इन देशों और अन्य देशों के दरम्यान अच्छी-ख़ासी विषमताएँ मौजूद हैं.

अल्पतम विकसित देशों में रहने वाले करोड़ों लोगों और गहरी जड़ें जमाए हुए विषमताओं की वास्तविकता कठोर है: अगर आप ऑनलाइन पहुँच हासिल नहीं कर सकते तो इंटरनैट की सुविधा निरर्थक है; अगर किसी को ब्राउज़र का प्रयोग करना ही नहीं आता हो तो, ऑनलाइन होने की सुविधा भी बेमानी हो जाती है.

सोमवार की चर्च में शिरकत करने वाले अनेक वक्ताओं के अनुसार, कुंजी दरअसल इसमें निहित है कि पीछे छूट गए लोगों को ना केवल कनैक्ट करने के रास्ते तलाश किए जाएँ, बल्कि डिजिटल खाई को टिकाऊ तरीक़े से पाटने और अधिक समावेशी डिजिटल पहुँच के लिए, अनुकूल परिस्थितियाँ बनाई जाएँ.

वर्ष 2022 में ब्रॉडबैंड क़ीमतें कम तो थीं, मगर अधिकतर निम्न आय वाले देशों में, इंटरनैट कनैक्टिविटी की लागत उच्च ही रही.
ITU

बढ़ती डिजिटल खाई

संयुक्त राष्ट्र के अन्तरराष्ट्रीय दरसंचार संघ (ITU) की एक नई विशेष रिपोर्ट में दिखाया गया है कि अल्पतम विकसित देशों और शेष विश्व के दरम्यान डिजिटल खाई के, कम होने के कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे हैं. कम विकसित देशों में इंटरनैट का प्रयोग करने वाली आबादी 2011 में चार प्रतिशत से बढ़कर, 36 प्रतिशत हो गई है, मगर दो तिहाई आबादी अब भी ऑफ़लाइन है.

आईटीयू की Fact and Figures on the Least Developed Countries, में दिए गए आँकड़ों के अनुसार, कम विकसित देशों में वर्ष 2022 में अनुमानतः 40 करोड़ 70 लाख लोग इंटरनैट का प्रयोग कर रहे थे. इन देशों में ऑफ़लाइन आबादी की संख्या क़रीब 72 करोड़ है जोकि वैश्विक ऑफ़लाइन आबादी के 27 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है. जबकि विश्व की कुल आबादी में, अल्पमत देशों की आबादी का हिस्सा केवल 14 प्रतिशत है.

आईटीयू के अध्ययन में पाया गया है कि समुदायों को ऑनलाइन मंच पर पहुँचाना, पिछले एक दशक में, और भी जटिल हो गया है. और जिन लोगों को इंटरनैट तक पहुँच हासिल भी है, उनमें से भी बहुत से लोग, कौशल अभाव व लागत जैसी बाधाओं के कारण ऑनलाइन नहीं हो सकते हैं.

डिजिटल बदलाव को टिकाऊ बनाना

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इस तरह की चुनौतियों में दोहा कार्रवाई कार्यक्रम (DPoA) रौशनी की किरण है, जोकि अल्पतम विकसित देशों (LDCs) और उनके विकास साझीदारों के दरम्यान नवीन संकल्प और सम्पर्क का एक ब्लूप्रिंट है. इन साझीदारों में निजी सैक्टर, सिविल सोसायटी और हर स्तर पर सरकारें शामिल हैं.

इस कार्यक्रम में उन साझीदारों से, अल्पतम विकसित देशों को सुलभ ब्रॉडबैंड, मोबाइल नैटवर्क और Wi-Fi की उपलब्धता का विस्तार सुनिश्चित करने के लिए, अतिरिक्त व टिकाऊ समर्थन मुहैया कराने का आग्रह किया गया है.

आईटीयू की महासचिव डोरीन बोगडैन-मार्टिन ने भी सोमवार को गोलमेज़ चर्चा में शिरकत की. उन्होंने कहा, “अल्पतम विकसित देशों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के ज़रिए डिजिटल विकास, ना केवल एक अवसर है, बल्कि ये अनिवार्यता भी है. एक नैतिक आवश्यकता.”

उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि कनैक्टिविटी को सार्थक बनाना और डिजिटल परिवर्तन को टिकाऊ बनाना, हमारी ज़िम्मेदारी है.”

ये सम्मेलन 9 मार्च तक चलेगा जिस दौरान आईटीयू, दोहा कार्रवाई कार्यक्रम (DPoA) को रफ़्तार देने और इसकी प्राप्ति व टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) की ख़ातिर डिजिटल सहयोग की महत्ता को रेखांकित करेगा.

समावेशी डिजिटल परिवर्तन के लिए साझेदारी

माइक्रोसॉफ़्ट फ़िलेन्थ्रॉपीज़ (समाज सेवा) के सामाजिक प्रभाव विभाग के उपाध्यक्ष और वैश्विक तकनीकी मुखिया जस्टिन स्पेलहॉग ने यूएन न्यूज़ से कहा, “इतनी बड़ी संख्या में युवजन हैं... अल्पतम विकसित देशों की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी 19 वर्ष से कम उम्र की है. यह विश्व के भविष्य का कार्यबल है.”

“इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि माइक्रोसॉफ़्ट और निजी सैक्टर की अन्य कम्पनियाँ, वास्तव में बदलाव लाने के लिए, सरकारों के साथ यूएन भागेदारी के साथ मिलकर, इन देशों के विकास की तरफ़ अपना झुकाव बढ़ाएँ.”

माइक्रोसॉफ़्ट के उपाध्यक्ष और समाज सेवा विभाग के मुखिया जस्टिन स्पेलहॉग, दोहा में, एलडीसी5 फ़ोरम में.
UN/Shuo Li

उन्होंने विश्व बैंक के डिजिटल विकास साझेदारी कार्यक्रम की तरफ़ ध्यान दिलाया, जिसका उद्देश्य, विश्व के अल्पतम विकसित देशों में प्रौद्योगिकी, डिजिटल सार्वजनिक उत्पाद, ब्रॉडबैंड और डिजिटल क्षमता निर्माण सेवाओं में वृद्धि करना है.

उन्होंने कहा, “इस कार्यक्रम प्रौद्योगिकी तक विशाल पहुँच की ख़ातिर कुछ महत्वपूर्ण चीज़ो और सुलभ व्यासायिक मॉडल को साथ लाया गया है.”

इस साझेदारी से संयुक्त राष्ट्र को, एक अधिक समृद्ध विश्व सृजित करने के अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने का मौक़ा मिलेगा.

अल्पतम विकसित देशों के लिए साझेदारी की नई पीढ़ी

इस सम्मेलन में रविवार को तीन दिवसीय निजी सैक्टर फ़ोरम भी शुरू किया गया है जिसका उद्देश्य, अल्पतम विकसित देशों में वित्त तक पहुँच, रोज़गार सृजन, प्रौद्योगिकी परिवरनत और दीर्घकालीन सततता को प्रोत्साहन देना है.

सोमवार को इस फ़ोरम में, अल्पतम विकसित देशों में प्रगति के एक उत्प्रेरक के रूप में डिजिटल सम्पर्क को बेहतर बनाने और कृषि व ग्रामीण विकास को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया गया.

अल्पतम विकसित देशों के लिए इस पाँचवें सम्मेलन (LDC5) की महासचिव रबाब फ़ातिमा का कहना है, “निजी सैक्टर फ़ोरम, किसी को भी पीछे नहीं छोड़ देने की भावना में, कम विकसित देशों को उनकी अधिकतम क्षमता हासिल करने में मदद के लिए, निजी सैक्टर के समर्थन को सक्रिय करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.”

उन्होंने कहा, “सहकारिता और साझेदारियों के ज़रिए, हम, अल्पतम विकसित देशों में दरपेश विकास चुनौतियों पर पार पाने में मदद के लिए, निजी सैक्टर के संसाधन, विशेषज्ञता, और उद्यमी भावना का लाभ उठा सकते हैं, ताकि ये देश अपने नागरिकों के लिए ज़्यादा ख़ुशहाल भविष्य बनाएँ.”

रबाब फ़ातिमा, अल्पतम विकसित देशों (LDCs), भूमिबद्ध विकासशील देशों और लघु द्विपीय विकासशील देशों (UN-OHRLLS) के लिए, उच्च प्रतिनिधि हैं.