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भारत के बिहार राज्य के गाँव की कुछ महिलाएँ, एक सामुदायिक बैठक के लिए एकत्रित हुई हैं.

CSW: 1946 से महिला अधिकारों की पैरवी के लिए प्रयासरत

UN Women
भारत के बिहार राज्य के गाँव की कुछ महिलाएँ, एक सामुदायिक बैठक के लिए एकत्रित हुई हैं.

CSW: 1946 से महिला अधिकारों की पैरवी के लिए प्रयासरत

महिलाएँ

महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग यानि CSW में हर साल मार्च में, व्यापक असमानताओं, हिंसा और भेदभाव जैसे उन सभी मुद्दों पर चर्चा होती है, जिनका सामना आज भी, दुनिया भर की महिलाएँ कर रही हैं. यहाँ प्रस्तुत है - इसी उच्च-स्तरीय संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम की पाँच-सूत्रीय जानकारी.

मौजूदा दरों पर, महिलाओं और लड़कियों के लिए समानता लाने में लगभग तीन शताब्दियाँ और लगेंगी.

लगातार असमानताओं से पीड़ित, लगभग 38 करोड़ 30 लाख महिलाएँ और लड़कियाँ, अत्यधिक निर्धनता में रहने को मजबूर हैं, और हर 11 मिनट में एक महिला या लड़की, अपने ही परिवार के किसी सदस्य के हाथों मौत का शिकार होती है.

ऐसे कारणों की वजह से महिलाओं की स्थिति पर वार्षिक संयुक्त राष्ट्र आयोग (CSW) आज भी प्रासंगिक बना हुआ है. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के तुरन्त बाद जब पहली बार CSW बुलाया गया था, यह तब से अब तक संयुक्त राष्ट्र के कैलेंडर पर एक ज़रूरी मुद्दा बना हुआ है.

महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के उप आयोग के सदस्य, न्यूयॉर्क के हण्टर कॉलेज में, 14 मई 1946 को एक प्रेस वार्ता करते हुए. इनमें सबसे दाईं तरफ़ डॉक्टर हंसा मेहता नज़र आ रही हैं.
UN Photo

1. आठ दशकों से कार्रवाई के लिए दबाव 

संयुक्त राष्ट्र महासभा की उद्घाटन बैठकों के कुछ ही दिनों बाद, अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला ऐलेनॉर रूज़वेल्ट और उनके प्रतिनिधिमंडल ने, "दुनिया की महिलाओं" को सम्बोधित करता हुआ एक खुला पत्र पढ़ा, जिसके बाद 1946 में आयोग का काम शुरू हुआ.

ऐलेनोर रूज़वेल्ट ने "दुनिया की सरकारों से आहवान किया था कि वे हर जगह महिलाओं को राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मामलों में अधिक सक्रियता से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें, और उन महिलाओं से आगे बढ़कर, शान्ति एवं पुनर्निर्माण के कार्यों में उसी तरह हिस्सा लेने के लिए कहा, जिस तरह उन्होंने युद्ध और प्रतिरोध के दौरान किया था.”

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के आयोग (ECOSOC) ने, तुरन्त एक उप-आयोग की स्थापना की. इसके छह सदस्यों - चीन, डेनमार्क, डोमिनिकन गणराज्य, फ्रांस, भारत, लेबनान और पोलैंड - को "महिलाओं की स्थिति से सम्बन्धित समस्याओं" का आकलन करके, ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ को सलाह देने का काम सौंपा गया था, जो आगे चलकर ‘मानवाधिकार आयोग’ कहलाया.

उसकी पहली रिपोर्ट में, "सदस्यों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि उप-आयोग का काम तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक कि मानव उद्यम के सभी क्षेत्रों में, महिलाएँ, पुरुषों की बराबरी के दर्जे पर नहीं पहुँच जातीं."

कार्रवाई का आहवान शुरुआत से ही था, जिसमें राजनैतिक अधिकारों को प्राथमिकता देना शामिल था, "क्योंकि उसके बिना बहुत कम प्रगति ही सम्भव थी. रिपोर्ट में कहा गया कि साथ ही "नागरिक शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में सुधार की सिफ़ारिशों के साथ, "समस्याओं से एक-साथ निपटना होगा." इसके अलावा, रिपोर्ट में कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र महिला सम्मेलन" आयोजित करने की अपील भी की गई.

जून 1946 में इसे ECOSOC की सहायक संस्था के रूप में मान्यता मिली और औपचारिक रूप से यह ‘महिलाओं की स्थिति पर आयोग’ कहा जाने लगा. 1947 से 1962 तक, आयोग ने भेदभावपूर्ण क़ानूनों को बदलने और महिलाओं के मुद्दों के बारे में वैश्विक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए, मानक स्थापित करने व अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने पर ध्यान केन्द्रित किया.

इथियोपिया के बिरेसॉ की एक किसान.
© World Bank/Dana Smillie

2. मील का पत्थर मान जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय समझौते लागू

शुरुआती दिनों में, आयोग की बढ़ती सदस्यता के साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में कुछ सबसे व्यापक सहमति वाले अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन हुए. उनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

आयोग ने, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के लिए मसौदा समिति की अध्यक्ष, ऐलेनोर रूज़वेल्ट की मदद करते हुए, "पुरुषों" को मानवता के पर्याय का सन्दर्भ मानने के ख़िलाफ़ सफलतापूर्वक तर्क दिया. इसमें, 1948 में महासभा द्वारा अपनाए गए अन्तिम संस्करण में नई, अधिक समावेशी भाषा भी समायोजित की गई.

1963 में, महिलाओं के अधिकारों पर मानकों को मज़बूत करने के प्रयासों में, महासभा ने आयोग से महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव के उन्मूलन पर एक घोषणा-पत्र तैयार करने का अनुरोध किया, जिसे इस विश्व समुदाय ने 1967 में अपनाया.

1995 में, लैंगिक समानता पर प्रमुख वैश्विक नीति दस्तावेज़, ‘बेजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच’ को अपनाने में भी CSW की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य के बाज़ार में खाना बेचती एक महिला.
UN Women/Carlos Ngeleka

3. अधिक देश, अधिक आवश्यकताएँ

1960 के दशक में संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता बढ़ती गई, साथ ही ऐसे बढ़ते साक्ष्य भी सामने आने लगे कि महिलाएँ ग़रीबी से असमान रूप से प्रभावित थीं. इसके मद्देनज़र, CSW ने समुदाय व ग्रामीण विकास, कृषि कार्य, परिवार नियोजन और वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास में महिलाओं की ज़रूरतों पर ध्यान केन्द्रित किया. विशेष रूप से, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को विकासशील देशों में महिलाओं की उन्नति के लिए तकनीकी सहायता का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

CSW ने इस सम्बन्ध में आगे जाकर, 1979 में महिलाओं के ख़िलाफ़ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन (CEDAW) पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी कनवेन्शन का मसौदा तैयार किया.

इस दशक में संयुक्त राष्ट्र ने, 1975 को अन्तरराष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया और मैक्सिको में महिलाओं पर पहला विश्व सम्मेलन आयोजित किया. 1977 में, संयुक्त राष्ट्र ने औपचारिक रूप से अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दी, जो 8 मार्च को मनाया जाता है.

2010 में, वर्षों की चर्चा के बाद, महासभा ने संगठन के सम्बन्धित वर्गों एवं विभागों को लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र इकाई - UNWOMEN में समाहित करने हेतु एक संकल्प अपनाया, जो आज भी आयोग के साथ मिलकर सहयोग करना जारी रखे हुए है.

जलवायु परिवर्तन ने हाल के वर्षों में महिला किसानों के जीवन को और कठिन बना दिया है.
Jose Manuel Moya

4. उभरते मुद्दों को सम्बोधित करना

वार्षिक सत्रों में, ‘बेजिंग कार्रवाई मंच’ को लागू करने में हो रही प्रगति और अन्तरालों के साथ-साथ, उभरते मुद्दों का आकलन किया जाता है. उसके बाद सदस्य देश, प्रगति को गति देने के लिए भविष्य के क़दमों पर सहमत होते हैं. 2018 से, CSW ने जलवायु परिवर्तन, लिंग आधारित हिंसा, और निर्णय लेने व टिकाऊ विकास रणनीतियों में महिलाओं की पूर्ण भागेदारी सुनिश्चित करने जैसी चुनौतियों का समाधान किया है.

प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए, कार्य के बहु-वर्षीय कार्यक्रमों को अपनाने और ‘कार्रवाई मंच’ के क्रियान्वयन में तेज़ी लाने के लिए, आगे की सिफ़ारिशें लागू करने के लिए CSW, ECOSOC को अपनी वार्ता के निष्कर्ष भेजता है.

यह आयोग, सभी महिलाओं तक पहुँचने और किसी को भी पीछे नहीं छोड़ने की दृष्टि से, लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण की प्राप्ति में तेज़ी लाने के लिए, टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा की प्रगति की निगरानी में भी योगदान देता है.

विश्वविद्यालय की छात्राएँ, रोबोटिक्स का अध्ययन करते हुए.
© Missouri S&T/Michael Pierce

5. 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटना

यह तेज़ी से स्पष्ट हो रहा है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ भौतिक दुनिया में होने वाला भेदभाव, दुर्व्यवहार और स्त्री-द्वेष, वर्चुअल दुनिया में भी पैर पसार रहा है.

इन इक्कीसवीं सदी के मुद्दों को 2023 CSW सत्र में सम्बोधित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य डिजिटल क्षेत्र से सम्बन्धित मुद्दों से निपटना है. साथ ही, प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच, ऑनलाइन हिंसा में कमी लाने, तकनीकी उद्योगों में प्रतिनिधित्व एवं लैंगिक पूर्वाग्रह जैसे मुद्दे भी इसमें शामिल होंगे.

2020 में कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद से अपनी पहली व्यक्तिगत बैठक में, आयोग के 45 सदस्य, लैंगिक समानता और सभी महिलाओं एवं लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए डिजिटल युग में नवाचार व तकनीकी परिवर्तन तथा शिक्षा पर चर्चा करेंगे.

पिछले व्यक्तिगत सत्र, CSW63 में 7,000 से अधिक हितधारकों ने भाग लिया, जिसमें लगभग 2,000 सदस्य देशों के प्रतिनिधि, 86 मंत्री और दुनिया भर के नागरिक समाज संगठनों के 5,000 प्रतिनिधि शामिल थे.

इस वर्ष महिलाओं की स्थिति पर आयोग की बैठक, न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 6 से 17 मार्च तक हो रही है. अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.

CSW के अतीत और वर्तमान के बारे में अधिक जानने के लिए, महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र महिला आयोग का संक्षिप्त इतिहास देखें.