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फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइली क़ब्ज़ा, कर रहा है दोनों समाजों को ‘खोखला’

इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े - पश्चिमी तट के एक ध्वस्त गाँव में खेलते कुछ बच्चे.
© UNOCHA
इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े - पश्चिमी तट के एक ध्वस्त गाँव में खेलते कुछ बच्चे.

फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइली क़ब्ज़ा, कर रहा है दोनों समाजों को ‘खोखला’

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को कहा है कि मध्य पूर्व में मौजूदा घातक हिंसा की लहर, इसराइल और फ़लस्तीन के बीच, दो राष्ट्रों की स्थापना वाले समाधान की सम्भावनाओं को और दूर कर रही है, क्योंकि फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइल का क़ब्ज़ा दोनों समाजों को खोखला कर रहा है.

वोल्कर टर्क ने मध्य पूर्व की स्थिति पर अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट, मानवाधिकार परिषद में प्रस्तुत करते हुए कहा, “मैं सभी तरफ़ के निर्णय-निर्माताओं और आम लोगों से, हमारी रिपोर्टों में पेश की गईं सिफ़ारिशों पर अमल करने और ऐसे गतिरोध से पीछे हटने का आग्रह करता हूँ, जिसे लगातार जारी अतिवाद और हिंसा से बल मिला है.”

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उन्होंने कहा कि इस हिंसा की रोकथाम के लिए, फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइली क़ब्ज़ा भी ख़त्म होना होगा.

उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में, एक नवम्बर 2021 से 31 अक्टूबर 2022 तक की घटनाओं को शामिल किया गया है, जिस दौरान हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई, जिससे अनेक लोग हताहत हुए हैं.

दरअसल, वर्ष 2022 के दौरान, इसराइली सुरक्षा बलों के हाथों इतनी संख्या में फ़लस्तीनी लोगों की मौत हुई, जोकि पिछले 17 वर्ष में सबसे ज़्यादा थी. और वर्ष 2016 के बाद से सबसे बड़ी संख्या में इसराइली लोग भी मारे गए हैं.

बढ़ती मृतक संख्या

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि वर्ष 2023 के शुरुआती सप्ताहों में और फ़रवरी में, मृतक संख्या और बढ़ी व बदतर हुई है.

रिपोर्ट में दिखा गया है कि एक नवम्बर 2021 से 31 अक्टूबर 2022 की इस अवधि में फ़लस्तीनियों के हाथों, 13 इसराइली लोगों की मौत हुई, जबकि नौ अन्य घायल हुए, जिनमें तीन बच्चे हैं.

घातक बल

उन्होंने कहा कि इसी अवधि के दौरान, इसराइली सुरक्षा बलों ने बार-बार घातक बल प्रयोग किया, जिसमें जोखिम के स्तर का भी ध्यान नहीं रखा गया, और अक्सर घातक बल प्रयोग, अन्तिम उपाय के रूप में करने के बजाय, एकदम शुरुआती उपाय के तौर पर किया.

उन्होंने न्यायेतर हत्याओं और सोच समझकर की गई हत्याओं के मामलों का भी ज़िक्र किया.

शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों से अलग भी, इसराइली सुरक्षा बलों के कर्मियों के हाथों, बीते वर्ष 131 फ़लस्तीनियों को मार दिया गया, जिनमें 65 ऐसे लोग थे, जो ना तो हथियारबन्द थे, और ना ही वो किसी हमले या झड़पों में शामिल थे.

निरन्तर दंडमुक्ति

वोल्कर टर्क ने कहा कि वर्ष 2017 से इस तरह की मौतों में 15 प्रतिशत से भी कम की जाँच हुई है, और एक प्रतिशत से भी कम मामलों में अपराध साबित हुए हैं.

रिपोर्ट में ग़ैर-क़ानूनी मौतों, बल प्रयोग, प्रताड़ना, के लिए दंड मुक्ति और फ़लस्तीनी सुरक्षा बलों द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के मामले भी दिखाए गए हैं. इसी तरह की दंड मुक्ति ग़ाज़ा में सत्तारूढ़ चरमपंथी दल हमास की तरफ़ से भी देखी गई है.

रिपोर्ट में सामूहिक दंड दिए जाने के मामले भी हैं जोकि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में निषिद्ध हैं. साथ ही फ़लस्तीनियों के बन्दीकरण और फ़लस्तीनी क्षेत्रों में इसराइली बस्तियों के विस्तार के मामले भी दिखाए गए हैं.

इसराइली क़ब्ज़े का प्रभाव

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा, “आधी सदी से भी ज़्यादा समय के क़ब्ज़े ने, व्यापक बेदख़ली, गहराते नुक़सान और फ़लस्तीनी लोगों के मानवाधिकारों के बारम्बर व गम्भीर उल्लंघन के हालात बना दिए हैं, इनमें जीवन का अधिकार भी शामिल है.”

“इस तरह के हालात में जीवन यापन करने की इच्छा किसी की भी नहीं होगी, या फिर ये कल्पना भी नहीं की जा सकती कि लोगों को इस तरह के अभाव और हताशा में धकेल देने से, किसी टिकाऊ समाधान का रास्ता निकल सकेगा.”

फ़लस्तीनी लोग ज़ैतून की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं, अक्सर उन इलाक़ों में अब इसराइल बस्तियों का विस्तार हो रहा है.
UNRWA Archives/Alaa Ghosheh

उन्होंने कहा कि इस तरह के हालात से इसराइल के लोगों को भी तकलीफ़ पहुँच रही है. “उन्हें भी अपने देश में, शान्ति में जीवन जीने का आधिकार है, जैसे कि फ़लस्तीनी लोगों को भी अधिकार है, एक ऐसे देश में रहने का, जो अन्ततः मान्यता प्राप्त हो और टिकाऊ हो.”

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि इसराइली क़ब्ज़ा “दोनों समाजों के स्वास्थ्य को निगल रहा”, हर स्तर पर, बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक, और जीवन के हर क्षेत्र में.

निकास मार्ग की तलाश

मानवाधिकार प्रणाली से जो सिफ़ारिशें पेश की गई है, जिनसे तत्काल असर पड़ेगा, उनमें हिंसा के मामलों से समान रूप से निपटना, ग़ाज़ा की नाकेबन्दी समाप्त करना, और प्रतिबन्धों में ढिलाई देना शामिल हैं.

इनके अतिरिक्त, सभी पक्षों को, 26 फ़रवरी 2023 को अक़ाबा सम्मेलन में हुए समझौते का पूर्ण पालना करना होगा, और इस बढ़त से लाभ उठाते हुए, मुद्दों को क्षेत्रीय समाधानों के लिए खोलना होगा, और अन्य मुद्दों को भविष्य में हल करने ध्यान देना होगा.

वोल्कर टर्क ने कहा कि इस तरह के क़दमों से लोगों की ज़िन्दगियाँ बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, उन्हें साँस लेने का मौक़ा मिलेगा और युवजन के साथ-साथ दरअसल हर उम्र व राजनैतिक मत के लोगों को, हिंसा व अतिवाद व इस भ्रम से दूर हटाने में मदद मिलेगी कि अतिवाद किसी समाधान का प्रतिनिधित्व करता है.

उन्होंने कहा कि इस बीच सदस्य देशों को यह निकास मार्ग तलाश करने में मदद के लिए, अपनी भूमिका निभानी चाहिए.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि यथासम्भव निकट भविष्य में दो राष्ट्रों का समाधान तलाश करना होगा, जिसमें फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइली क़ब्ज़े का अन्त हो, और तमाम इसराइलियों व फ़लस्तीनियों के वैध अधिकारों की परस्पर पहचान पुष्ट हो, जिनमें गरिमा, शान्ति और सुरक्षा के साथ जीने के अधिकार शामिल हैं.