पहली बार, विश्व की सभी संसदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

अन्तर-संसदीय संघ (Inter-parliamentary Union) ने शुक्रवार को बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है कि विश्व के सभी देशों में, महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व हो गया है, और एक भी संसद ऐसी नहीं है जहाँ केवल पुरुष सांसद हैं.
अन्तर-संसदीय संघ (आईपीयू) एक वैश्विक संस्था है, जोकि संसदीय कूटनीति और संवाद के ज़रिए शान्ति को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है.
आईपीयू ने अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि संसदों में महिलाओं की भागेदारी जितनी विविधतापूर्ण है, उतना पहले कभी नहीं रही.
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रिपोर्ट के निष्कर्ष उन 47 देशों से प्राप्त जानकारी पर आधारित हैं, जहाँ पिछले वर्ष चुनाव कराए गए थे.
इन चुनावों में, औसतन, महिलाओं को कुल उपलब्ध सीटों में 25.8 फ़ीसदी प्राप्त हुईं, जोकि पिछली बार के चुनावों की तुलना में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती हैं.
आईपीयू ने इस सकारात्मक प्रगति के बावजूद स्वीकार किया कि पिछले छह वर्षों में संसदों में महिलाओं की भागेदारी के विषय में यह सबसे छोटी वृद्धि है.
साल-दर-साल 0.4 प्रतिशत वृद्धि का अर्थ है कि नए साल में वैश्विक स्तर पर संसदीय कार्यालयों में महिलाओं का हिस्सा, अब 26.5 प्रतिशत हो गया है.
आईपीयूए के महासचिव मार्टिन चुनगाँग ने कहा कि दूसरी बुरी ख़बर ये है कि प्रगति की इस रफ़्तार के साथ, संसदों में लैंगिक समता हासिल करने में 80 वर्ष लगेंगे.
“फ़िलहाल, सबसे बड़ी चुनौतियों में यौनवाद, उत्पीड़न, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का माहौल है, जिसे हम दुनिया भर में देख रहे हैं.”
“यह एक ऐसा रुझान है जोकि विश्व भर में व्याप्त है, और किसी एक विशेष क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है.”
“और हम अनुमान लगा सकते हैं कि राजनैतिक जीवन में महिलाओं की भागेदारी पर इसका बोझ है.”
आईपीयूए प्रमुख ने न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न और स्कॉटलैंड की प्रथम मंत्री निकोला स्टर्जन का उल्लेख किया.
उन्होंने कहा कि व्यापक तौर पर ऐसा माना गया कि इन नेताओं को उत्पीड़न का सामना करने के बाद, अपने पद से हटना पड़ा है.
मार्टिन चुनगाँग ने आईपीयू आँकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि उत्पीड़न, यौनवाद, हिंसा के बढ़ते रुझानों की वजह से महिलाओं को अपने देशों में राजनैतिक प्रक्रियाओं में भागेदारी से पीछे हटना पड़ता है.
अन्तर-संसदीय संघ में महिला सांसदों के ब्यूरो की प्रमुख लेसिया वैसिलेंको का मानना है कि हर निर्वाचित महिलाएँ, संसदों को अधिक समावेशी व प्रतिनिधिक होने की दिशा में ले जाती हैं, और इसलिए अधिक विविधता देखना शानदार है.
मगर, “प्रगति बहुत धीमी है, और विश्व की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व अब भी कम है. इसे बदले जाने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि हर जगह लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान की जा सके.”
कुछ उत्साहजनक संकेत प्रगति की ओर इशारा करते हैं. ब्राज़ील में काले समुदाय से अपनी पहचान बताने वालीं, रिकॉर्ड चार हज़ार 829 महिलाएँ चुनाव लड़ रही हैं, जबकि कुल उम्मीदवारों का संख्या 27 हज़ार है.
अमेरिका में श्वेत से इतर अन्य रंग की महिलाओं ने संसद के मध्यावधि चुनावों में हिस्सा लिया. वहीं कोलम्बिया में, एलजीबीटीक्यूआई+ का प्रतिनिधित्व, संसद में तीन गुना हो गया है और अब वहाँ छह सदस्य हैं.
फ़्रांस में, अल्पसंख्यक पृष्ठभूमि के 32 उम्मीदवार नई राष्ट्रीय ऐसेम्बली में निर्वाचित हुए हैं और यह अब कुल सांसदों का 5.8 प्रतिशत है, जोकि अभी तक का रिकॉर्ड है.
छह देशों ने लैंगिक समता हासिल करने में सफलता दर्ज की है, जिनमें न्यूज़ीलैंड, क्यूबा, मैक्सिको, निकारागुआ, रवांडा और संयुक्त राष्ट्र अमीरात हैं.
आईपीयूए की सूची में महिला सदस्यों के विषय में ये देश सबसे आगे हैं. रवांडा ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया है, जहाँ निचले सदन में 60 प्रतिशत संसदीय सीटें महिलाओं के पास है.
मगर, ऊपरी सदन में केवल 34.6 प्रतिशत सीटें ही महिलाओं के पास हैं.