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निकारागुआ में 'मानवता के विरुद्ध अपराध' होने की आशंका

निकारागुआ में अप्रैल 2022 के बाद से, हज़ारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं. सरकारी एजेंसियों के साथ झड़पों में, 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.
Álvaro Navarro/Artículo 66
निकारागुआ में अप्रैल 2022 के बाद से, हज़ारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं. सरकारी एजेंसियों के साथ झड़पों में, 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.

निकारागुआ में 'मानवता के विरुद्ध अपराध' होने की आशंका

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गुरूवार को कहा है कि निकारागुआ में, सरकार समर्थक गुटों ने वर्ष 2018 के बाद से ऐसे अपराधों को अंजाम दिया है जिन्हें मानवता के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है. देश में 2018 के बाद से व्यापक पैमाने पर पाबन्दियाँ लगी हुई हैं जिनसे देश की आबादी बन्धक जैसी हो गई है.

निकारागुआ पर मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने शुक्रवार को, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद में, अपनी प्रथम रिपोर्ट पेश करते हुए, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, देश में इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार लोगों के विरुद्ध प्रतिबन्ध लगाने का आग्रह किया.

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विशेषज्ञों ने निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि राष्ट्रपति डेनियल ओर्टेगा और उप राष्ट्रपति रोसारियो मुरीलो ने “इन अपराधों को अंजाम देना शुरू किया”, जो आज भी जारी हैं.

व्यापक और व्यवस्थागत

निकारागुआ पर मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह के अध्यक्ष जैन साइमन ने कहा, “इस जाँच के आधार पर, हम ये निष्कर्ष पेश कर सकते हैं कि देश की सरकार ने वर्ष 2018 से, नागरिकों के ख़िलाफ़ व्यापक पैमाने पर और व्यवस्थागत तरीक़े से, मानवाधिकारों के उल्लंघन किए हैं जिन्हें मानवता के विरुद्ध अपराध कहा जा सकता है – और ये राजनैतिक कारणों से प्रेरित हैं.”

उन्होंने पत्रकारों से कहा: “वो न्याय प्रणाली को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, विधाई कार्यों को हथियार के तौर पर प्रयोग कर रहे हैं, देश की कार्यकारी शक्तियों को, आबादी के विरुद्ध एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.”

मृत्यु दंड का चलन

मानवाधिकार विशेषज्ञों की रिपोर्ट में सबूतों और बयानों के आधार पर एक चलन की पहचान की गई है जिसमें राष्ट्रीय पुलिस और सरकार समर्थक सशस्त्र गुटों के एजेंटों ने, न्यायेतर मृत्यु दंड को अंजाम दिया है.

रिपोर्ट में विश्वास व्यक्त किया गया है कि उन एजेंटों ने अप्रैल से लेकर सितम्बर 2018 के बीच हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान, “संयुक्त और समन्वित तरीक़े” से काम किया.

अध्यक्ष जैन साइमन ने कहा, “ये मानवाधिकार उल्लंघन आज भी जारी हैं”, जिसका परिणाम ये हुआ है कि निकारागुआ के लोग सरकार के भय में जी रहे हैं.

डर-धमकी, उत्पीड़न

रिपोर्ट की एक सह लेखिका एंजेला मारिया बुइतरैगो ने जाँच के दायरे के बारे में बताया कि न्यायेतर मृत्यु दंड, उत्पीड़न और निरोधक बन्दीकरण के बारे में, जानकारी की विभिन्न स्रोतों से पुष्टि की गई है.

उन्होंने कहा, “ऐसे असीम तत्व हैं जिनके आधार पर हमने ये रिपोर्ट तैयार की है...”

रिपोर्ट में ये भी संकेत दिया गया है कि राष्ट्रीय पुलिस और राष्ट्रीय जेल व सुधार प्रणाली के एजेंटों और सरकार समर्थक सशस्त्र समूहों के सदस्यों ने, विरोधियों की गिरफ़्तारियों, पूछताछ और उनके बन्दीकरण के दौरान, “शारीरिक और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न के कृत्यों को अंजाम दिया, जिनमें यौन और लिंग आधारित हिंसा भी शामिल है.”

लोकतंत्र पर हमला

अध्यक्ष जैन साइमन ने रेखांकित करते हुए बताया कि निकारागुआ सरकार के अधिकारियों ने किस तरह, मानवाधिकार हनन का भयानक अभियान चलाया है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ये कोई छुटपुट घटनाएँ या मामले नहीं हैं, बल्कि जानबूझकर लोकतांत्रिक संस्थानों को ध्वस्त करने और नागरिक व लोकतांत्रिक स्थान के विनाश के कृत्यों का नतीजा हैं.

उन्होंने कहा, “ये मानवाधिकार हनन राजनैतिक कारणों से, व्यापक और व्यवस्थागत तरीक़े से अंजाम दिए जा रहे हैं, जो मानवता के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में आते हैं. इनमें हत्या, कारावास, उत्पीड़न, यौन हिंसा, जबरन देश निकाला और राजनैतिक आधार पर प्रताड़ना जैसे अपराध शामिल हैं.”