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रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए रसद में कटौती, ‘जीवन-मरण’ का प्रश्न

बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में, रोहिंज्या शरणार्थियों के लिये, टेकनॉफ़ में बनाया गया एक उप शिविर.
UN in Bangladesh / Shabbir Rahman
बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में, रोहिंज्या शरणार्थियों के लिये, टेकनॉफ़ में बनाया गया एक उप शिविर.

रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए रसद में कटौती, ‘जीवन-मरण’ का प्रश्न

मानवाधिकार

बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों को मुहैया कराए जाने वाली खाद्य सामग्री में, सहायता धनराशि के अभाव में एक मार्च से, कटौती शुरू हो गई है. इसके मद्देनज़र, संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, ‘जीवन-मरण’ के इस विषय में तत्काल राहत उपाय करने का आग्रह किया है.

इससे पहले, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए बनाए गए विशाल शिविरों में, एक मार्च से खाद्य सहायता में कटौती की घोषणा की थी.

यूएन एजेंसी ने इसकी वजह सहायता धनराशि का अभाव बताया है.

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म्याँमार पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ ने क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि रसद में ये कटौतियाँ, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की अन्तरात्मा पर एक धब्बा है.

“मैंने शिविर में हताश परिवारों से बातचीत की है, जो क़ीमतों में उछाल आने की वजह से पहले ही अति-आवश्यक खाद्य वस्तुओं में कटौती लाने के लिए मजबूर हो गए थे.”

“खाद्य सामग्री में इन कटौतियों को वापिस लेना, रोहिंज्या परिवारों के लिए वस्तुत: एक जीवन-मरण का विषय है.”

10 लाख प्रभावित

विशेष रैपोर्टेयर ने बताया कि राशन में कटौतियों की वजह से लगभग 10 लाख रोहिंज्या शरणार्थियों पर असर होने की आशंका है.

रोहिंज्या समुदाय के लोगों ने वर्ष 2017 में म्याँमार सैन्य बलों की कार्रवाई के दौरान हमलों और कथित उत्पीड़न से बचने के लिए बांग्लादेश में शरण ली थी.

यूएन मानवीय राहतकर्मियों ने चेतावनी जारी की है कि बांग्लादेश में शरण लेने वाले, हर 10 में से चार रोहिंज्या बच्चे अब नाटेपन का शिकार है और उनके शारीरिक विकास की गति धीमी है.

कॉक्सेस बाज़ार के शिविरों में रह रहे समस्त युवाओं में से, हर 10 में से चार रोहिंज्या महिलाएँ रक्त की कमी से पीड़ित हैं. इनमें 50 फ़ीसदी से अधिक गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाएँ हैं.

विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार रोहिंज्या शरणार्थी तक जीवनरक्षक सहायता पहुँचाने के लिए साढ़े 12 करोड़ डॉलर धनराशि की कमी है, और उनका मासिक राशन 12 डॉलर से घटाकर 10 डॉलर किया गया है.

बताया गया है कि परिवार, इस धनराशि का उपयोग शिविर में स्थापित किए गए केन्द्रों में, 40 से अधिक सूखी और ताज़ी खाद्य वस्तुएँ ख़रीदने में कर सकते हैं

यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि इन कटौतियों के चिन्ताजनक नतीजे होने की आशंका है, अन्य अहम सेवाओं पर भी जोखिम मंडरा रहा है.

'खोखले शब्द'

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने यूएन सदस्य देशों से तत्काल समर्थन की पुकार लगाई है, जिन्होंने, उनके अनुसार अभी तक रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए केवल शब्दों में ही समर्थन दिया है.

“रोहिंज्या परिवार राजनैतिक बयानबाज़ी से अपना पेट नहीं भर सकते हैं.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह समय, यूएन सदस्य देशों द्वारा समर्थन की खोखली घोषणाओं के बजाय, जीवनरक्षक कार्रवाई सुनिश्चित करने का है.

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि यदि सहायता धनराशि का प्रबन्ध नहीं हो पाया, तो अगले दो महीनों के भीतर और अधिक कटौतियाँ की जाएंगी, और राशन में एक-तिहाई की कमी हो सकती है.

उन्होंने क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि इसका अर्थ होगा कि बांग्लादेश के शिविरों में रोहिंज्या शरणार्थी को हर दिन 0.27 डॉलर पर गुज़र बसर करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिए करती है.

ये पद मानद होते हैं और ये विशेषज्ञ यूएन कर्मचारी नहीं होते हैं. मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.