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सभी देशों से, मृत्यु दंड ख़त्म किए जाने की पुकार

संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन (डीसी) में, सुप्रीम कोर्ट के बाहर, मृृत्यु दंड के विरोध में एक प्रदर्शन
Unsplash/Maria Oswalt
संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन (डीसी) में, सुप्रीम कोर्ट के बाहर, मृृत्यु दंड के विरोध में एक प्रदर्शन

सभी देशों से, मृत्यु दंड ख़त्म किए जाने की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR) ने सभी देशों से मृत्यु दंड के प्रावधान को ख़त्म करने की दिशा में और ज़्यादा काम करने के लिए कहा है. मृत्यु दंड की प्रथा अब भी 79 देशों में प्रचलित है.

द्विवार्षिक पैनल की थीम है – मृत्यु दंड के प्रयोग के सम्बन्ध में मानवाधिकारों का उल्लंघन, विशेष रूप से, मृत्यु दंड को, केवल सर्वाधिक गम्भीर अपराधों तक ही सीमित रखना.

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चार्टर की प्रतिज्ञा

यूएन मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने कहा कि यह मुद्दा, अन्ततः यूएन चार्टर में वर्णित, सभी इनसानों के संरक्षण के उच्चतम मानकों के वादे के बारे में है, जोकि मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र की भावना के अनुरूप है. वर्ष 2023 में इस घोषणा-पत्र की 75वीं वर्षगाँठ है.

उन्होंने कहा, “मृत्यु दंड पर स्वैच्छिक रोक लगाए जाने के विरोधियों का कहना है कि पीड़ितों के अधिकारों की अनदेखी हो रही है; उनकी दलील है कि बदला लेना ही, सबसे अच्छा जवाब है.”

वोल्कर टर्क ने इस सन्दर्भ में आश्चर्य व्यक्त किया कि बदले की कार्रवाई में, इनसानियत कहाँ ठहरती है. “क्या हम किन्हीं अन्य इनसानों को उनकी ज़िन्दगियों से वंचित करके, अपने समाजों का पतन नहीं कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय क्षेत्र के विशेषज्ञों ने, दुनिया भर से प्राप्त अनुभव के आधार पर कहा है कि असल जवाब तो, अपराधों को नियंत्रित करने और उनकी रोकथाम में है.

इन विशेषज्ञों ने ऐसी सुचारू, मानवाधिकारों पर आधारित, आपराधिक न्याय प्रणालियाँ बनाए जाने की सिफ़ारिश की है जिनमें, अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए, और पीड़ितों व भुक्तभोगियों को न्याय, क्षतिपूर्ति और गरिमा तक पहुँच हो.

चुनौतियाँ व उपलब्धियाँ

यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा है कि मृत्यु दंड को ख़त्म करने के लक्ष्य की तरफ़ उपलब्धियाँ, दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में देखी जा सकती है.

मृत्यु दंड की समाप्ति के मुद्दे पर काम करने वाले मानवाधिकारों व जन अधिकारों के लिए अफ़्रीकी आयोग के अध्यक्ष इदरीसा साउ का कहना है कि अफ़्रीकी संघ, मृत्यु दंड की समाप्ति पर चार्टर के लिए एक प्रोटोकॉल के मसौदे पर विचार कर रहा है.

26 देशों ने मृत्यु दंड की प्रथा को ख़त्म कर दिया है और 14 अन्य देशों ने, अपने यहाँ मृत्यु दंड पर स्वैच्छिक रोक लगाई हुई है.

वोल्कर टर्क ने कहा, “तमाम प्रयास किए जाने के बावजूद, अफ़्रीकी महाद्वीप में अब भी मृत्यु दंड की घोषणा जारी है, जिसमें न्यायिक त्रुटि होने के स्पष्ट जोखिम हैं.”

उन्होंने साथ ही ध्यान दिलाते हुए कहा कि आधे से ज़्यादा अफ़्रीकी देशों में अब भी मृत्यु दंड पर अमल किया जाता है.

उन्होंने इस चुनौती का सामना करने के लिए, और मृत्यु दंड को वैश्विक स्तर पर ख़त्म करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, अन्य देशों व अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया.

मलेशिया के विधि और संस्थागत सुधारों के लिए मंत्री अज़ालीना ओथमान का कहना है कि उनका देश, अपने यहाँ अनिवार्य मृत्यु दंड को ख़त्म करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा, “मृत्यु दंड को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य तो हासिल नहीं किया गया है, मगर अनिवार्य मृत्यु दंड की समाप्ति भी, सही और ग़लत के बीच एक सन्तुलन है.”

77 देश हैं अभी पीछे

अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में, केवल अपवाद वाली परिस्थितियों और इरादतन हत्या किए जाने के मामले में बहुत ही स्पष्ट, ठोस व अकाट्य सबूतों के आधार पर ही मृत्यु दंड का प्रावधान है.
© UNICEF/Josh Estey

ऑस्ट्रेलिया में मोनाश विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफ़ेसर माई साटो कहती हैं कि मृत्यु दंड देने में अन्तरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने वाले कुल 79 में से केवल दो देशों ने, इस प्रथा को सर्वाधिक गम्भीर अपराधों तक सीमित किया है.

उन्होंने कहा कि शेष 77 देश, सर्वाधिक गम्भीर अपराध के मानकों का पालन करने में नाकाम रहे हैं. 11 देशों में, ऐसे अपराधों के लिए मृत्यु दंड दिया जाता है जिन्हें अपराध ही नहीं समझा जाना चाहिए, जैसेकि परस्त्रीगमन (व्याभिचार), “तथाकथित धार्मिक अपराध”, और समलैंगिक यौन गतिविधियाँ.

सन्तुलन की आवश्यकता

‘न्याय परियोजना पाकिस्तान’ नामक एक ग़ैर-सरकारी संगठन चलाने वाली सारा बिलाल ने ध्यान दिलाया है कि पाकिस्तान में लगभग चार हज़ार लोग मृत्यु दंड का इन्तज़ार कर रहे हैं. ये मामले मौजूदा कैपिटल अपराधों से सम्बन्धित हैं.

उनका कहना है कि मृत्यु दंड की समाप्ति या अन्तरराष्ट्रीय मानकों के पालन की दिशा में, हर देश की यात्रा, उनके अपने सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ में जकड़ी हुई है.

सारा बिलाल ने बताया कि पाकिस्तान ने, मृत्यु दंड पर लगी स्वैच्छिक रोक को, जब एक आतंकवादी हमले के बाद, वर्ष 2014 में सात वर्षों के लिए हटाया था, तो वर्ष 2015 में मृत्यु दंड की प्रतीक्षा कर रहे 325 लोगों को फाँसी दी गई थी.

अलबत्ता वर्षों तक रणनैतिक पैरोकारी करने और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के साथ सम्पर्क बढ़ोत्तरी की बदौलत, फाँसी दिए जाने की राजनैतिक क़ीमत बढ़ गई, जिसके मद्देनज़र, 2019 के बाद से, मृत्यु दंड दिए जाने की कोई घटना नहीं हुई है.

यूएन मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने दोहराते हुए कहा कि जब तक हर देश, मृत्यु दंड को समाप्त नहीं कर देता, तब तक मानव गरिमा के संरक्षण के रास्ते पर मंज़िल हासिल नहीं की जा सकती.

यूएन महासभा ने मृत्यु दंड के प्रयोग पर विश्व व्यापी स्वैच्छिक रोक लगाने की वैश्विक पुकार लगाने वाला एक प्रस्ताव, दिसम्बर 2022 में पारित किया था, जिसके समर्थन में 125 देशों ने मतदान किया था. इस प्रस्ताव में मृत्यु दंड की पूर्ण समाप्ति का उद्देश्य भी रखा गया है.

वोल्कर टर्क ने कहा, “यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, और वास्तविक बढ़त का संकेत भी. अगर हम इस अमानवीय दंड को सदैव के लिए ख़त्म करने के उद्देश्य से, ये स्वैच्छिक रोक बरक़रार रखें, तो हम मानव गरिमा का धागा, हमारे समाजों के ताने-बाने में फिर से पिरो सकते हैं.”