आज की दुनिया में, महात्मा गांधी के न्यासिता सिद्धान्त की प्रासंगिकता

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गुरूवार को, महात्मा गांधी के न्यासिता सिद्धान्त (Trusteeship) और आज की दुनिया में इसकी प्रासंगिकता पर केन्द्रित एक विचार गोष्ठि का आयोजन किया गया, जिसकी वीडियो कवरेज यहाँ देखी जा सकती है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई मिशन और शान्ति विश्वविद्यालय (University for Peace) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस संगोष्ठि में, टिकाऊ जीवन शैलियाँ और सतत शान्ति को प्रोत्साहन देने के लिए मानव उत्कर्ष विषय पर भी ख़ास ज़ोर रहा.
#IndiaAtUN
Some glimpses of the insightful high-level panel discussion on Gandhian Trusteeship: #MissionLiFE & Human Flourishing hosted by the Permanent Mission of India & University for Peace at UNHQ yesterday.
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IndiaUNNewYork
इस संगोष्ठि में विविध पृष्ठभूमि वाले उच्च-स्तरीय वक्ताओं ने अपने विचार रखे कि टिकाऊ जीवन शैली को बढ़ावा देने से, जलवायु व पर्यावरणीय संकट के प्रभावों से किस तरह निपटा जा सकता है.
शान्तिपूर्ण और समावेशी समाज बनाने के लिए, लोकतंत्र और क़ानून के शासन के मूल मूल्यों को मज़बूत करना भी चर्चा का प्रमुख विषय रहा.
भारतीय मिशन द्वारा जारी एक अवधारणा-पत्र में कहा गया है कि आज विश्व लगातार बढ़ते लड़ाई-झगड़ों और युद्धों और जलवायु संकटों का सामना कर रहा है.
संगोष्ठि में इस विषय पर ख़ास ध्यान दिया गया कि निर्धनता, भुखमरी और गहराती विषमताएँ, पूर्वाग्रह, नस्लभेद व बढ़ती ‘हेट स्पीच’ जैसी चुनौतियों को, किस तरह गांधी जी के मूल्य अपनाकर हराया जा सकता है.
भारतीय मिशन के अनुसार, जलवायु व पर्यावरणीय संकटों में गम्भीर वृद्धि जारी है जोकि मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण, सूखा, बाढ़, के रूप में विश्व स्तर पर प्रकट हो रहे हैं.
इन संकटों के प्रभाव ने निर्धनता को समाप्त करने के प्रयासों को बेहद कठिन बना दिया है.
“आधुनिक भारत का सपना देखने वाले महात्मा गांधी ने दुनिया को, न्यासिता (Trusteeship) के सिद्धान्तों से रूबरू कराया था और उनका मानना था कि विश्व के पास सर्वजन की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं, लेकिन उनके लालच की पूर्ति करने के लिए नहीं काफ़ी नहीं हैं.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि, राजदूत रुचिरा काम्बोज ने इस संगोष्ठि में कहा, “मुझे नहीं लगता कि ऐसे भी कोई होंगे जिन्होंने आधुनिक भारत के पिता महात्मा गाँधी के बारे में नहीं सुना हो. वो सत्याग्रह नामक एक शक्तिशाली हथियार के आविष्कारक हैं - एक ऐसी विचारधारा जो सिर्फ़ अहिंसा और शान्ति के बारे में नहीं है, बल्कि ये ऐसी दृड़ता के बारे में है जो कभी किसी ने नहीं देखी."
"मैं व्यक्तिगत रूप से, उन्हें हिंसा के बिना शक्ति, क्रूरता के बिना निडरता और रक्तपात के बिना बहादुरी का प्रतीक मानती हूँ."
उन्होंने अपनी समापन टिप्पणी में कहा, "मुझे गांधी जी की कहावतों में ये भी बहुत पसन्द कि - हमें पृथ्वी, हवा, भूमि और पानी हमारे पूर्वजों से विरासत में नहीं मिले हैं, बल्कि हमारे बच्चों से हमें ऋण पर मिले हैं, इसलिए हमें, इन संसाधनों को अगली पीढ़ियों को कम से कम उसी अवस्था में सौंपना होगा, जैसा हमने अपने पूर्वजों से पाया है.”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव की नवीनतम रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि अगर हम पूर्ण और उत्पादक रोज़गार सृजित करें और 2030 एजेंडा के टिकाऊ विकास लक्ष्यों का पूर्ण कार्यान्वयन करें, तो असमानताओं पर क़ाबू पाया जा सकता है और कोविड-19 के प्रभावों से उबरा जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र के शीर्षतम अधिकारी ने ध्यान दिलाया था कि “गांधी उन व्यक्तियों में थे जिन्होंने हमारे पर्यावरण की लूटपाट और विध्वंस के ख़तरों को आरम्भ में ही पहचान लिया था.”
उनके विचार में महात्मा गांधी के अनेक विचारों में टिकाऊ विकास की अवधारणा की झलक मिलती है और सर्वजन के लिये एक बेहतर व ज़्यादा शान्तिपूर्ण भविष्य का निर्माण किया जा सकता है, यदि हम इन महत्वपूर्ण मुल्यों को साथ लेकर चलें.
भारत इस वर्ष, गांधीवादी ट्रस्टीशिप के विचार को जारी रखते हुए, G20 की अध्यक्षता कर रहा है. इस अध्यक्षता का आदर्श वाक्य है "एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य", भारत के प्राचीन सांस्कृतिक लोकाचार "वसुधैव कुटुम्बकम" से प्रेरित है.