'इसराइल के नए क़ानूनी प्रस्तावों से गम्भीर जोखिम', यूएन मानवाधिकार प्रमुख की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने बुधवार को कहा है कि इसराइल सरकार इस समय जो कुछ नए क़ानून बनाने पर विचार कर रही है, उसमें एक सन्तुलित रुख़ अपनाया जाना होगा.
वोल्कर टर्क ने बुधवार को चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रस्तावित अनेक विधाई परिवर्तन जो संसद के विचाराधीन हैं, उनसे न्यायपालिका के लिए, विधि के शासन, मानवाधिकारों, और न्यायिक स्वतंत्रता की हिफ़ाज़त करने की प्रभावशीलता पर गम्भीर जोखिम उत्पन्न होंगे.
#Israel: UN Human Rights Chief @volker_turk concerned by fundamental legislative changes being considered in Parliament, posing serious risks to effective human rights protection & judicial independence in future. Urges pause for wider debate: https://t.co/DKnxPzrOzF https://t.co/F4DjFWFURM
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मानवाधिकार उच्यायुक्त ने कहा कि अगर ये विधाई प्रस्ताव पारित होकर क़ानून बन जाते हैं तो सभी के मानवाधिकारों पर कमज़ोर पड़ जाने का जोखिम होगा, मगर निर्बल परिस्थितियों वाले ऐसे समुदायों और समूहों पर ज़्यादा असर होगा जो सरकार और विधाई शाखाओं में अपने प्रतिनिधित्व के माध्यम से, अपने अधिकारों को पुख़्ता करने की स्थिति में नहीं हैं.
उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि इन विधाई प्रस्तावों के मौजूदा रूप से, किसी भी क़ानून की न्यायिक समीक्षा करने की, सुप्रीम कोर्ट की क्षमता सीमित होगी और अगर किसी विधेयक को अस्वीकृत करना हो तो उसके लिए, सुप्रीम कोर्ट को, न्यायाधीशों की बहुसंख्या की ज़रूरत होगी या फिर पूर्ण एकमत की दरकार होगी.
ताज़ा ख़बरों में कहा गया है कि प्रस्तावित विधाई बदलावों के विरोध में, हाल के सप्ताहों के दौरान, हज़ारों लोगों ने प्रदर्शनों में शिरकत की है, जिनमें तेलअवीव और येरूशेलम में हुए विरोध प्रदर्शन भी शामिल हैं.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा, “सार्वजनिक और राजनैतिक चिन्ता के व्यापक दायरे को देखते हुए, मैं इसराइल सरकार से प्रस्तावित विधाई बदलावों को फ़िलहाल रोक देने और उन्हें वृहद चर्चा व अत्ममन्थन के लिए खोले दिए जाने का आग्रह करता हूँ.”
“विधि के शासन के लिए अति महत्वपूर्ण ऐसे मुद्दों पर व्यापक और वृहद विचार होना चाहिए, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तरह के बदलाव, इसराइल के तमाम लोगों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने की, न्यायपालिका व सरकार की अन्य शाखाओं की योग्यता को बढ़ावा दें, नाकि उसे कमज़ोर करें.”
उन्होंने कहा कि ये क़ानूनी परिवर्तन, देश के संवैधानिक ढाँचे का दीर्घकालीन हिस्सा बन जाएंगे, और सुसंस्थापित ढाँचागत सुरक्षा मानकों को प्रभावित करने वाले कोई भी बदलाव, केवल सघन और व्यापक विचार-विमर्श के बाद, और वृहद राजनैतिक व लोक सहमति के साथ ही किए जाने चाहिए.