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सामाजिक न्याय दिवस: आर्थिक प्रगति के लिए न्यायसंगत नीतियों की दरकार

विश्व के अनेक हिस्सों में निर्धनता व विषमता बढ़ रही है.
© UNICEF/Claudio Versiani
विश्व के अनेक हिस्सों में निर्धनता व विषमता बढ़ रही है.

सामाजिक न्याय दिवस: आर्थिक प्रगति के लिए न्यायसंगत नीतियों की दरकार

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव आमिना मोहम्मद ने सोमवार 20 फ़रवरी, को ‘विश्व सामाजिक न्याय के विश्व दिवस’ के अवसर पर अपने सन्देश में ऐसी न्यायोचित, अधिक सन्तुलित नीतियाँ विकसित किए जाने की पुकार लगाई है, जिनसे बदलाव के लिए राजनैतिक समर्थन जुटा पाना सम्भव हो.

यूएन उपप्रमुख ने कहा कि सामाजिक प्रगति की अहमियत को समझते हुए ऐसी नीतियाँ तैयार करनी होंगी, जिनसे कठिन हालात में गुज़र-बसर कर रहे लाखों लोगों के लिए अर्थपूर्ण बदलाव लाया जा सके.

“इसके साथ ही, पूरी वास्तविक अर्थव्यवस्था के विभिन्न पक्षों के साथ एक गहरे सामाजिक संवाद की भी आवश्यकता है.”

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यह विश्व दिवस, वैश्विक एकजुटता को मज़बूती देने, अवरोधों को दूर हटाकर सरकार में भरोसा बहाल करने और सामाजिक न्याय के लिए अवसरों को प्रोत्साहन देने का है.

‘हमारा साझा एजेंडा’ में इसी दिशा में अनुशंसाओं का उल्लेख किया गया है, जोकि 2030 एजेंडा के तहत 17 टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने का ब्लूप्रिंट है.

उन्होंने कहा कि इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती हैं: एक दूसरे को हवा देने वाले संकटों का विषैला सम्मिश्रण, जिनसे निर्धनता, असमानता और भेदभाव बढ़ने का जोखिम है.

गम्भीर चुनौतियाँ

उदाहरणस्वरूप, मुद्रास्फीति, क़र्ज़, भोजन, ईंधन क़ीमतों में उछाल, भूराजनैतिक तनाव व हिंसक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन.

“दुनिया भर में लोग कोविड-19 महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिससे ज़िन्दगियाँ तहस-नहस हो गई हैं और विषमताएँ गहरी हुई हैं.

कोरोनावायरस संकट के कारण वैश्विक विषमताएँ गहरी हुई हैं और पिछले दो दशकों में हुई प्रगति को धक्का पहुँचा है.

कामकाजी आय में महिलाओं का हिस्सा 35 प्रतिशत से भी कम है, जोकि वर्ष 1990 की तुलना में केवल पाँच फ़ीसदी की वृद्धि को दर्शाता है.

21 करोड़ से अधिक कामगार अत्यधिक निर्धनता में रहने के लिए मजबूर हैं, प्रतिदिन 1.90 डॉलर से भी कम अर्जित करते हैं, और विकासशील देशों में कामकाजी निर्धनों की संख्या बढ़ रही है.

उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने ध्यान दिलाया कि वर्ष 2020 में, वैश्विक महामारी से पहले ही, बड़ी संख्या में लोगों को प्रतिदिन दो डॉलर से कम पर गुज़ारा करना पड़ता था. उनके पास ना तो अधिकार और सामाजिक संरक्षा उपाय थे, और ना ही एक बेहतर भविष्य के लिए उम्मीद.

उन्होंने कहा, “जब आर्थिक प्रगति और सामाजिक नीति में असन्तुलन होता है, राजनैतिक अस्थिरता व अशान्ति अक्सर अपना सिर उठाती है.”

बढ़ती विषमताएँ

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया कि विश्व के अनेक हिस्सों में देशों के बीच और देशों के भीतर निर्धनता व विषमताएँ बढ़ रही हैं.

आँकड़े दर्शाते हैं कि विषमताएँ विशाल स्तर पर हैं और निर्धनतम देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 600 डॉलर है, जबकि सबसे धनी देश में यह, एक लाख 15 हज़ार डॉलर के बराबर है.

वैश्विक आबादी के शीर्ष 10 प्रतिशत के पास कुल वैश्विक आय का 52 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि सबसे निर्धन आधी आबादी, इसका केवल साढ़े छह प्रतिशत कमाती है.

एक परिधान फ़ैक्टरी में काम करती एक महिला कामगार
© ILO/Jean‐Pierre Pellissier

विश्व भर में, 29 करोड़ युवजन के पास फ़िलहाल शिक्षा, रोज़गार और प्रशिक्षण के अवसर नहीं हैं, जबकि दो अरब लोग अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत हैं.

हाल के समय में उन्हें अस्थिरता भरे रोज़गारों और आय, अस्वस्थ, असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों और सामाजिक संरक्षा के अभाव की वजह से, उन पर कोविड-19 का विषमतापूर्ण असर हुआ है, और उनकी आय में 2020 में 60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

बेहतर तालमेल की दरकार

इसके मद्देनज़र, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक व मानदंड सम्बन्धी फ़्रेमवर्क और अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की नीतियों में बेहतर तालमेल की अहमियत पर बल दिया है.

यूएन उपप्रमुख ने कहा कि ‘हमारा साझा एजेंडा’ ने 2030 एजेंडा में नई स्फूर्ति भरी है, जोकि टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में फिर से रास्ते पर आने का एक ब्लूप्रिंट है.

उनके अनुसार यह हमेशा ध्यान रखा जाना होगा कि हम इनके नतीजों के लाभ किन लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं – सामाजिक न्याय के केन्द्र में आम लोग हैं, विशेष रूप से महिलाएँ व युवजन.