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भारत: शहरों में सार्वजनिक परिवहन को, महिलाओं के लिए सुरक्षित व सुलभ बनाना

यह सुनिश्चित करने के लिए कि शहरी गतिशीलता प्रणाली और सार्वजनिक स्थान सुरक्षित, समावेशी और लिंग-उत्तरदायी होने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, भारत के शहरों में महिलाओं के अनुकूल सार्वजनिक परिवहन का निर्माण करें.
UNIC India/Rohit Karan
यह सुनिश्चित करने के लिए कि शहरी गतिशीलता प्रणाली और सार्वजनिक स्थान सुरक्षित, समावेशी और लिंग-उत्तरदायी होने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, भारत के शहरों में महिलाओं के अनुकूल सार्वजनिक परिवहन का निर्माण करें.

भारत: शहरों में सार्वजनिक परिवहन को, महिलाओं के लिए सुरक्षित व सुलभ बनाना

महिलाएँ

भारत में शहरों के विकास के साथ-साथ, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक परिवहन सभी के लिए सुरक्षित और सुलभ हो, विशेष रूप से महिलाओं के लिए. ये एक नए, ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनने की दिशा में अहम क़दम है, इसके लिए महिलाओं के विकास से, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की ओर बढ़ना होगा.

भारत के चेन्नई, मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, और अन्य महानगरों में, प्राधिकरण इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, फिर चाहे वह नीति निर्माण के लिए विशेष लिंग प्रयोगशाला स्थापित करना हो, सुरक्षा ऑडिट करना हो, या समर्पित बस सेवाओं में निवेश करना हो.

लैंगिक समानता

लगभग दो दशक पहले, ऑस्ट्रिया के विएना शहर में एक महिला कार्यालय की स्थापना की गई थी. इस कार्यालय की ज़िम्मेदारी, लिंग-उत्तरदाई शहरी नियोजन के क्षेत्र के संचालन को देखने था और यह सुनिश्चित करना था कि वास्तव में विएना के सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिनिधित्व, संसाधन, प्रायोगिकता और अधिकारों का ख़याल रखा जाता हो. और देखते ही देखते महिला कार्यालय, एक मुख्य लैंगिक कार्यालय (Gender mainstreaming office) बन गया.

परिणामस्वरूप, वर्ष 2022 तक, विएना ने लैंगिक विभाग के साथ, 60 से अधिक परियोजनाएँ लागू की हैं. इस परियोजना की सहायता से सड़कों पर बेहतर बिजली व्यवस्था, चौड़े फुटपाथ, पार्कों में केवल महिलाओं के सैर-सपाटे के लिए विशेष समय निर्धारित करना, सार्वजनिक परिवहन, सार्वजनिक स्थानों, आवासीय इमारतों के परिसरों में महिलाओं के लिए अतिरिक्त बैठने की जगहों का आकार महिलाओं ने ही किया जिससे छोटे रास्तों को और अधिक सुरक्षित बनाया जा सके और किसी भी सम्भावित ख़तरे को रोकने की ख़ातिर, गलियों में शीशे भी लगाए गए.

सुरक्षा और समावेश के लिए अहम क़दम

भारत के शहरों में महिलाओं के अनुकूल सार्वजनिक परिवहन
Simone D. McCourtie / World Bank

सड़कों पर बिजली के पक्के इन्तज़ाम

एक अत्यधिक प्रभावी उपाय है बेहतर सड़कों पर बेहतर प्रकाश व्यवस्था यानि स्ट्रीटलाइटिंग सुनिश्चित करना. शहर के प्राधिकरण, शहरी योजना निर्माता, शहरी स्थानीय निकाय, सार्वजनिक परिवहन एजेंसियाँ, और अन्य सेवा प्रदाता, ऐसे स्थानों  का आकलन कर सकते हैं जहाँ कम उजाला हो. सड़कों और बस व मैट्रो स्टेशनों पर पर्याप्त रौशनी का प्रबन्ध करने से, विशेष रूप से सुरक्षा में सुधार लाया जा सकता है.

बेहतर पगडंडियाँ

पैदल चलने के मार्ग और साइकिल ट्रैक में सुधार करने से, विशेष रूप से महिलाओं को लाभ होता है, क्योंकि वे ज़्यादातर ग़ैर-मोटर चालित परिवहन का इस्तेमाल करती हैं.

कम से कम अतिक्रमण के साथ लम्बा, छायादार और एक व्यापक फुटपाथ का निर्माण, समर्पित साइकिल लेन और पार्किंग स्थलों के साथ-साथ महिलाओं को साझा साइकिल सेवाओं का उपयोग करने के लिए बढ़ावा देने से, उनकी सम्भावित मदद हो सकती है.

महिलाओं का नेतृत्व

सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों की योजना और डिज़ाइन में महिलाओं को शामिल करना भी महत्वपूर्ण है. ऐसा करने से, उनकी विशिष्ट ज़रूरतों और चिन्ताओं को ध्यान में रखा जा सकता है.

ऐसी सार्वजनिक परिवहन प्रणालियाँ बनाना जिनसे उपयोगकर्ता आसानी से अपने सफ़र करने के माध्यम को बदल सकें, उदाहरण स्वरूप, बस से मैट्रो या रिक्शा में जा सकें, और इससे महिलाओं को लाभ होता है.

इसके लिए विभिन्न एजेंसियों के बीच संयुक्त सूचना प्रदर्शन, सामान्य किराया कार्ड और एकीकृत कार्यक्रम के बीच समन्वय की आवश्यकता होगी.

वायटिला, कोच्चि में, एक मल्टी-मॉडल मोबिलिटी हब विकसित किया जा रहा है ताकि शहर (सिटी) और शहरों के बीच में (इंटरसिटी) बसें, मैट्रो और नावें, एक ही स्थान पर मिल सकें. ऑटो-रिक्शा और मध्यवर्ती सार्वजनिक परिवहन के लिए वाहन से उतरने का इलाक़ा (ड्रॉप-ऑफ ज़ोन) भी, अन्तिम-मील सम्पर्क बढ़ाने की योजना के तहत बनाए जा रहे हैं.

नई बसों में, सहारे के लिए नए हैंडल थोड़े नीचे लागाए जा सकते हैं, शिशुओं के स्ट्रोलर के लिए प्रयाप्त जगह सुनिश्चित की जाए, बस पर चढ़ने के लिए रैम्प, साथ ही आपातकालीन बटन और यहाँ तक ​​कि क्लोज़-सर्किट टेलीविज़न कैमरे (सीसीटीवी) भी लगे हों.

कुछ सफल उदाहरण

मुम्बई में "लेडीज़ स्पेशल" ट्रेन और जयपुर में "पिंक ऑटो रिक्शा" जैसे सफल कार्यक्रमों ने पहले ही सार्वजनिक परिवहन को महिलाओं के अनुकूल बनाने के लाभ उजागर किए हैं. इन योजनाओं ने महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन की पहुँच और सुरक्षा में वृद्धि की है, और यह भारत और विश्व भर के अन्य शहरों के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है.

महिलाओं को निर्धारित बस स्टॉप के अलावा किसी अन्य स्थान पर बसों से उतरने की अनुमति देना शुरू किया जा सकता है. तेलंगाना राज्य परिवहन निगम नें हाल ही में बस चालकों और परिचालकों को ग्रेटर हैदराबाद ज़ोन के भीतर, शाम 7:30 बजे के बाद महिलाओं को बस स्टॉप के अतिरिक्त कहीं भी उतरने की अनुमति देने का निर्देश जारी किया है, ताकि बस स्टॉप और उनके घरों के बीच की पैदल दूरी को कम किया जा सके.

लिंग समावेशी चैकलिस्ट

स्टेशनों, टर्मिनलों, डिपो और विश्राम स्थलों में पर्याप्त रौशनी और पर्याप्त आश्रय प्रदान करने के अलावा, महिलाओं के लिए अलग शौचालय, शिशुओं को स्तनपान कराने के लिए विशिष्ट कमरे और महिलाओं के बैठने के लिए ख़ास सीटें भी शामिल होनी चाहिए.

अधिक सुरक्षा महसूस करने के लिए विभन्न टर्मिनल और डिपो के भीतर की दुकानों का आबंटन, प्राथमिकता के आधार पर महिलाओं और अल्पसंख्यक लिंगों के व्यक्तियों को दिया जा सकता है, या कोटा लागू किया जा सकता है.

लिंग-समावेशी संकेत बोर्ड का उपयोग करना, समावेश की भावना को बढ़ावा देने का एक और नवीन तरीक़ा है, जैसेकि पैदल चलने वालों के लिए, चमकते हरे और लाल सिगनल से एक महिला को दर्शाना.

मुम्बई, मेलबॉर्न और जिनीवा सहित विश्व भर के शहरों ने ट्रैफ़िक लाइट पर, लिंग-समावेशी संकेतों का उपयोग करके एक प्रयोग भी किया है.

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