त्वचा चमकाने वाले उत्पादों में पारे के इस्तेमाल को बन्द करने के लिए पहल

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार गेबॉन, जमैका और श्रीलंका की सरकारों ने त्वचा चमकाने वाले उत्पादों में पारे (mercury) के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए, एक करोड़ 40 लाख डॉलर की लागत वाली एक परियोजना शुरू की है.
यूएन विशेषज्ञों ने त्वचा चमकाने वाले उत्पादों में पारे (mercury) के प्रयोग को, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गम्भीर समस्या बताया है.
मंगलवार को पेश की गई इस पहल के ज़रिए, समग्र उपायों को समर्थन प्रदान किया जाएगा, ताकि हानिकारक रसायनों के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से बन्द किया जा सके, और सभी प्रकार की त्वचा की सुन्दरता को बढ़ावा दिया जाए.
👏 Gabon, Jamaica & Sri Lanka are joining forces to launch a $14-million project to eliminate #mercury use in skin lightening products, which pose serious risks to human health & environment.
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त्वचा चमकाने वाले उत्पादों से शरीर में मेलेनिन का उत्पादन रुकता है, जोकि एक रंजक (pigment) है और त्वचा, बालों और आँखों के रंग को निर्धारित करता है.
विश्व में ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल लम्बे समय से महिलाएँ व पुरुष करते रहे हैं, ना केवल रंगरूप को चमकाने के लिए लिए, बल्कि झुर्रियों, धब्बों और उम्र के चिन्ह छिपाने के लिए.
मगर, बड़ी संख्या में लोगों को यह जानकारी नहीं है कि इन प्रसाधनों में पारे का प्रयोग भी किया जा सकता है, जोकि मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए एक ख़तरा है.
इससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में त्वचा पर होने वाले चकत्ते, निशान पड़ने, रंग बिगड़ने के अलावा, स्नायु तंत्र, पाचन तंत्र व प्रतिरोधक प्रणाली को क्षति पहुँच सकती है और यह बेचैनी व मानसिक अवसाद का कारण भी बन सकती है.
मिनामाता सन्धि नामक एक अन्तरराष्ट्रीय सन्धि में त्वचा चमकाने वाले उत्पादों में पारे के इस्तेमाल की सीमा निर्धारित की गई है, जोकि प्रति किलो एक मिलिग्राम है.
यूएन पर्यावरण एजेंसी ने वर्ष 2018 में 22 देशों से 300 उत्पादों का परीक्षण किया, जिसमें लगभग इस सीमा के 10 गुना इस्तेमाल की बात सामने आई. कुछ मामलों में तो यह 100 गुना अधिक थी.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम इस तीन-वर्षीय परियोजना की अगुवाई कर रहा है, जिसे वैश्विक पर्यावरण केन्द्र से वित्तीय सहायता प्राप्त है.
इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और जैवविविधता शोध संंस्थान लागू करेंगे.
एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2026 तक इन उत्पादों की मांग बढ़कर 11 अरब 80 करोड़ डॉलर तक पहुँच जाने की सम्भावना है, जिसकी वजह एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में बढ़ता मध्य वर्ग और अफ़्रीका व कैरीबियाई क्षेत्र में जनसांख्यिकी में हो रहा बदलाव है.
इसके मद्देनज़र, त्वचा चमकाने वाले उत्पादों में हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल एक वैश्विक मुद्दा बन गया है.
त्वचा चमकाने वाले उत्पाद केवल उन्हें इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए ही ख़तरा नहीं हैं, स्तनपान के ज़रिए बच्चे भी उनकी चपेट में आ सकते हैं, और प्रसाधनों को धो दिए जाने के बाद उनके जल में प्रवाहित होने से खाद्य श्रृंखलाओं के दूषित होने का जोखिम बढ़ जाता है.
इसके अलावा, इसके अवशेष लम्बी दूरी तय कर सकते हैं और बिना नष्ट हुए भूमि व जल में जमा हो सकते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पारे (mercury) को सार्वजनिक स्वास्थ्य के नज़रिए से एक चिन्ताजनक रसायन बताया है और उसके प्रभावों से बचाव के लिए तत्काल कार्रवाई की पुकार लगाई है.
यूएन विशेषज्ञों का कहना है कि पारे से स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में सदियों से जानकारी है लेकिन अब और अधिक संख्या में जागरूकता फैल रही है.
इस परियोजना के ज़रिए, तीनों देशस प्रसाधन क्षेत्र में अपनी नीतियों में सर्वोत्तम उपाय अपनाकर, एकरूपता लाने का प्रयास करेंगे, जिसके ज़रिये पारे के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से बन्द करने के लिए माहौल तैयार किया जाएगा.
त्वचा के रंग-रूप से जुड़े सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव लाने का प्रयास भी एक अहम लक्ष्य है, जिसे प्रासंगिक संगठनों, स्वास्थ्यकर्मियों और बड़ी हस्तियों की मदद से आगे बढ़ाया जाएगा.