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फ़लस्तीनी घरों का ध्वस्तीकरण और जबरन बेदख़ली, इसराइल की जवाबदेही तय किए जाने की मांग

इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े - पश्चिमी तट के एक ध्वस्त गाँव में खेलते कुछ बच्चे.
© UNOCHA
इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े - पश्चिमी तट के एक ध्वस्त गाँव में खेलते कुछ बच्चे.

फ़लस्तीनी घरों का ध्वस्तीकरण और जबरन बेदख़ली, इसराइल की जवाबदेही तय किए जाने की मांग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को, इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े, - पश्चिमी तट में जानबूझकर, व्यवस्थागत ढंग से घर ढहाए जाने, उन्हें सील किए जाने, लोगों को जबरन बेदख़ल करके उन्हें मनमाने ढंग से विस्थापन के लिए मजबूर किए जाने पर रोक लगाने के लिए क़दम उठाने होंगे.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बताया कि जनवरी 2023 में, इसराइल सरकार ने क़ाबिज़ पश्चिमी तट में बसे 38 समुदायों में, 132 फ़लस्तीनी ढाँचे ध्वस्त किए है. इनमें 34 रिहायशी और 15 दानदाताओं की सहायता प्राप्त ढाँचे थे.

यह संख्या वर्ष 2022 में इसी अवधि की तुलना में 135 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है.

यूएन विशेषज्ञों ने फ़लस्तीनियों के घरों को व्यवस्थागत ढंग से ध्वस्त किए जाने, अवैध इसराइली बस्तियाँ बसाने और फ़लस्तीनियों के लिए निर्माण परमिट को नकारे जाने पर गहरा क्षोभ प्रकट किया है. 

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विशेषज्ञों ने मसाफ़ेर यात्ता में हालात पर अपनी चिन्ता दोहराई है जहाँ एक हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी निवासियों पर जबरन बेदख़ल कर दिए जाने, मनमाने तरीक़े से विस्थापित किए जाने और उनके घरों, आजीविका, जल व साफ़-सफ़ाई व्यवस्था को ध्वस्त कर दिए जाने के जोखिम मंडरा रहा है.

नवम्बर 2022 में, इसराइली प्रशासन ने दानदाताओं द्वारा वित्त पोषित इसफ़े अल फॉक़ा नामक स्कूल को तोड़ दिया था, और इस इलाक़े में स्थित चार अन्य स्कूलों के लिए भी ऐसे आदेश हैं.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि फ़लस्तीनियों के घरों, स्कूलों, आजीविकाओं व जल स्रोतों पर हमले, इसराइल द्वारा फ़लस्तीनियों के स्व-निर्धारण के अधिकार को दबाने की कोशिश हैं, जिससे उनके अस्तित्व के लिए ख़तरा पैदा होता है.

उन्होंने बताया कि फ़लस्तीनी आबादी को जबरन विस्थापित व बेदख़ल करने के इसराइली तौर-तरीक़ों की कोई सीमा नहीं है.

“क़ाबिज़ पूर्वी येरूशेलम में, अनेक फ़लस्तीनी परिवारों पर जबरन बेदख़ली व विस्थापन का जोखिम है, जोकि भेदभावपूर्ण ढंग से इलाक़ों के निर्धारण है और नियोजन व्यवस्थाओं की वजह से है, जोकि इसराइली बस्तियों के विस्तार के पक्ष में है.”

विशेष रैपोर्टेयर ने सचेत किया कि यह अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत ग़ैरक़ानूनी है और युद्धापराध के समान है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इसराइली सरकार के उन तौर-तरीक़ों पर भी चिन्ता व्यक्त की है, जिनमें दंड के तौर पर लोगों को बेदख़ल व उनके घरों को ध्वस्त किया गया है.

संदिग्धों के परिजनों पर कार्रवाई

बताया गया है कि इसके तहत तथाकथित रूप से आतंकी हमलों के ‘सन्दिग्धों’ और उनके परिजनों को निशाना बनाया गया है. इस क्रम में, उनके पहचान दस्तावेज़ों, नागरिकता, निवास अधिकार और सामाजिक संरक्षा लाभ वापिस लिए गए हैं.

29 जनवरी को इसराइली सरकार ने उन संदिग्ध व्यक्तियों के परिवारों के घर तत्काल सील किए जाने की घोषणा की थी, जिन पर क़ाबिज़ पूर्वी येरूशेलम में, 27 और 28 जनवरी को हमलों में शामिल होने का सन्देह है.

इनमें नेवे याक़ूब बस्ती पर 27 जनवरी को किया गया हमला भी है, जिनमें कम से कम सात इसराइली नागरिकों की मौत हुई थी.  

दो संदिग्ध हमलावरों के परिवारों को जबरन उनके घरों से निकाला गया है, और हमलों के सिलसिले में 40 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें से कई परिजन भी हैं.

यूएन विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि किसी भी राज्य सत्ता द्वारा, हिंसक कृत्यों के जवाब में, क़ानून का राज स्थापित किया जाना होगा.

“संदिग्ध हमलावरों के परिवारजनों के घर सील किया जाना और उनके घरों को ढहाया जाना, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों और क़ानून के राज का बुनियादी तौर पर अपमान है.  

उन्होंने कहा कि ये कृत्य सामूहिक रूप से दंड दिए जाने के समान है, जिस पर अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत पाबन्दी है.  

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

इस वक्तव्य पर दस्तख़त करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम यहाँ देखे जा सकते हैं.