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विश्व रेडियो दिवस: शान्ति के एक ‘अदभुत उपकरण’ का जश्न

दक्षिण सूडान में रेडियो मिराया से कार्यक्रम प्रसारित करते हुए एक रेडियो पत्रकार.
UNMISS/Isaac Billy
दक्षिण सूडान में रेडियो मिराया से कार्यक्रम प्रसारित करते हुए एक रेडियो पत्रकार.

विश्व रेडियो दिवस: शान्ति के एक ‘अदभुत उपकरण’ का जश्न

संस्कृति और शिक्षा

दक्षिण सूडान में आगामी चुनाव आयोजन को समर्थन देने से लेकर, युद्ध से थक चुके लोगों को शान्ति प्रक्रियाओं में शामिल करने तक; और ये सुनिश्चित करने तक कि अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों को स्कूली कक्षाओं से प्रतिबन्धित करने के माहौल में उनकी हाई स्कूल शिक्षा जा रह सके, इस डिजिटल दौर में भी, रेडियो प्रासंगिक बना हुआ है.

विश्व रेडियो दिवस हर वर्ष 13 फ़रवरी को मनाया जाता है, जिसके ज़रिए सूचना व प्रसार के इस माध्यम की शक्ति का जश्न मनाया जाता है. इस वर्ष इस दिवस की थीम है – ‘रेडियो और शान्ति’ जिसमें संघर्ष की रोकथाम व शान्ति निर्माण में रेडियो की भूमिका को रेखांकित किया गया है.

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संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – UNESCO की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने इस अवसर पर कहा है, “रेडियो लगभग एक शताब्दी पूर्व ईजाद होने के बाद से संचार, वाद-विवाद और विचारों के आदान-प्रदान का एक असाधारण साधन साबित हुआ है – रेडियो दरअसल, मीडिया का एक सर्वसुलभ और सर्वव्यापक साधन है.”

ऑड्री अज़ूले ने इस दिवस पर दिए अपने सन्देश में, सर्वजन से आग्रह किया है कि वो ना केवल रेडियो की सम्भावनाओं का जश्न मनाएँ, बल्कि शान्ति के एक अदभुत उपकरण के रूप में रेडियो का और ज़्यादा प्रयोग करें.

रेडियो और यूएन शान्तिरक्षा

संयुक्त राष्ट्र के शान्ति अभियान विभाग (DPO) में रणनैतिक संचार की प्रमुख फ्रांसेस्का मोल्ड की नज़र में, इस वर्ष विश्व रेडियो दिवस की थीम, बहुत प्रासंगिक है.

डीपीओ ने यूएन शान्तिरक्षा की 75वीं वर्षगाँठ पूरे होने के मौक़े पर, वर्ष भर चलने वाला अभियान हाल ही में शुरू किया है.

फ्रांसेस्का मोल्ड का कहना है, “यूएन शान्तिरक्षा मिशनों के एक हिस्से के रूप में, हम रेडियो नैटवर्क संचालित करते हैं जो बड़े पैमाने पर और विविध समुदायों तक पहुँच बनाने में बहुत अहम हैं, विशेष रूप में ऐसे स्थानों पर जहाँ इंटरनैट की उपलब्धता कम है और संघर्षों व विस्थापन के कारण, आबादियों को स्थान बदलते रहने पड़ते हैं.”

यूएन शान्तिरक्षा की स्थापना 1948 में हुई थी और तब से, दुनिया भर में अनेक देशों में संघर्ष समाप्त होने के बाद की परिस्थितियों में, 71 मिशन तैनात किए जा चुके हैं. चूँकि इन शान्ति अभियानों को, अपना शासनादेश के बारे  सटीक जानकारी स्थानीय आबादियों को बतानी होती है, इसलिए संचार बहुत अहम है.

संचार का सर्वश्रेष्ठ उपकरण

रेडियो, वर्ष 1989 में, नामीबिया में यूएन स्थिरता सहायता समूह (UNTAG) के तहत, आधिकारिक रूप से यूएन शान्तिरक्षा का हिस्सा बना. ये एक राजनैतिक मिशन था, जो नामीबिया में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया था.

UNTAG ने मतदाता पंजीकरण जैसे मुद्दों पर सामग्री तैयार की, जिसे स्थानीय रेडियो प्रसारकों को, प्रसार के लिए सौंपा गया. पहला शान्तिरक्षा रेडियो स्टेशन, कुछ वर्ष बाद वजूद में आया - कम्बोडिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन के दौरान.

संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग (DGC) में शान्ति व सुरक्षा सैक्शन के एक पदाधिकारी डगलस कॉफ़मैन ने यूएन न्यूज़ से कहा, “हमारे उपकरण बक्से में सर्वश्रेष्ठ औज़ार, शायद, यूएन शान्तिरक्षा रेडियो स्टेशन रहे हैं.”

लोगों से सीदे मुख़ातिब

डगलस कॉफ़मैन ने 1990 के दौर में बाल्कन देशों में सेवा की है, जब यूगोस्लाविया का विघटन होने के बाद, अनेक युद्ध भड़क उठे थे.

डगलस कॉफ़मैन कहते हैं, “रेडियो महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से संयुक्त राष्ट्र, स्थानीय आबादी के साथ, पक्षपाती मीडिया को दरकिनार करते हुए सीधे मुख़ातिब हो सकता है.”

“पक्षपाती मीडिया, दरअसल संघर्ष में ख़ुद ही समस्या का एक हिस्सा रहा है. इस तरह के मीडिया साधन, दरअसल हमारे सन्देश को नहीं फैलाना चाहते. इसलिए जिन समुदायों के लिए हम काम कर रहे हैं, उनके साथ सीधे मुख़ातिब होने की सुविधा, बहुत अहम है.”

रेडियो ने दुनिया के नवीनतम देश दक्षिण सूडान में भी, बहुत अहम भूमिका निभाई है, जहाँ वर्ष 2011 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही, क्रूर लड़ाई और विस्थापन के तकलीफ़देह दौर देखने को मिले हैं.

भारत में एक सामुदायिक रेडियोकर्मी, यूनेस्को समर्थित प्रशिक्षण सत्र में भाग लेते हुए. रेडियो डिजिटल दौर में भी प्रासंगिक साबित हुआ है.
UNESCO New Delhi/Gurgaon Ki Awaaz

एक शान्ति साझीदार

दक्षिण सूडान में यूएन मिशन (UNMISS) का रेडियो मिराया स्टेशन, शान्ति स्थापना और शान्ति मज़बूत करने, दोनों ही मामलों के लिए एक मंच उपलब्ध कराता है.

UNMISS के संचार व सार्वजनिक सूचना प्रमुख बैन मेलर के अनुसार, ये दरअसल दक्षिण सूडान की सरकार और वहाँ के लोगों के लिए, शान्ति का एक साझीदार है.

बैन मेलर का कहना है, “रेडियो चाहे किसी भी तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत करे, हमारा उद्देश्य, तमाम राजनैतिक पक्षों, धार्मिक रेखाओं से परे, नस्लीय दायरों से परे, लैंगिक विभाजनों से परे, आयु के बन्धनों से परे, लोगों की एकजुटता मज़बूत करना है... ”

दक्षिण सूडान की लगभग एक करोड़ 10 लाख आबादी तक सूचना पहुँचाने के लिए, रेडियो अब भी एक प्राथमिक माध्यम है. और रेडियो मिराया, UNMISS को इसका शासनादेश पूरा करने में बेहतर मदद के लिए, लगातार अपने कार्यक्रमों और नीतियों में बदलाव व स्व-मूल्यांकन करता रहता है.

अनुकूलन व पहुँच

रेडियो की सर्वसुलभता और व्यापक पहुँच ने इसे, यूनेस्को का एक महत्वपूर्ण औज़ार बना दिया है, विशेष रूप में कोविड-19 महामारी के दौरान, जब स्कूलों से बाहर रहने वाले छात्रों तक पहुँच बनाना बहुत ज़रूरी था.

यूएन सांस्कृतिक एजेंसी ने रेडियो के ज़रिए बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने की एक प्रणाली स्थापित की, जिससे अनेक देशों में बहुत से शिक्षार्थियों को लाभ पहुँचा. इनमें सब-सहारा अफ़्रीका क्षेत्र भी एक था जहाँ 25 प्रतिशत से भी कम आबादी को इंटरनैट की सुविधा उपलब्ध है.

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले का कहना है, “रेडियो अक्सर अन्तिम विकल्प के रूप में एक माध्यम साबित होता है. हम ऐसा, एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान में देख रहे हैं, जहाँ लड़कियों व महिलाओं को, शिक्षा प्राप्ति और शिक्षा प्रसार से, अचानक और पक्षपाती रूप में रोक दिया गया है.”

यूनेस्को ने इस पाबन्दी की तीखी निन्दा की है और योरोपीय संघ के साथ मिलकर, अफ़ग़ानिस्तान में मीडिया संगठनों को समर्थन देने का एक कार्यक्रम शुरू किया है. इसका उद्देश्य शैक्षणिक सामग्री का प्रसार, और स्वास्थ्य व सुरक्षा पर जानकारी प्रसारित करना है. इसके ज़रिए लगभग 60 लाख लोगों तक सीधे पहुँच बनाने की लक्ष्य है.