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भोजन बर्बादी को रोकने की मुहिम

दुनिया भर में अक्सर लोग अपनी आदतों या समाज के चलन के दबाव में, बहुत सारा भोजन बर्बाद करते हैं.
UNICEF/Giacomo Pirozzi
दुनिया भर में अक्सर लोग अपनी आदतों या समाज के चलन के दबाव में, बहुत सारा भोजन बर्बाद करते हैं.

भोजन बर्बादी को रोकने की मुहिम

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम एशिया में अनुमानतः 34 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है. बर्बाद हुआ यह भोजन, खाद्य अपशिष्ट के रूप में छोटे कूड़ेदानों से विशाल कूड़ाघरों यानि लैंडफ़िल में पहुँचकर, हानिकारक मीथेन गैस उत्पन्न करता है, जिसका जलवायु परिवर्तन ख़ासा बड़ा हिस्सा है. ऐसे में पश्चिम एशिया के अनेक प्रसिद्ध रसोइए, भोजन की बर्बादी रोकने के लिए नए तरीक़े अपना रहे हैं.

दुबई स्थित रसोइया और टेलीविजन प्रस्तोता, लेयला फ़तहअल्लाह की नज़र, हाल ही में एक कटोरे में रखे अंगूरों पर पड़ी, जिनका रंग बदलने लगा था. लेकिन लेयला ने उन अंगूरों को फेंकने के बजाय, एक रोटी के आटे में मिलाया लिया और इसकी तस्वीर इंस्टाग्राम पर पोस्ट की, जहाँ उनके 13 लाख फॉलोअर्स हैं.

लेयला फ़तहअल्लाह ने कहा, "मुझे लोगों की बहुत सारी टिप्पणियाँ मिलीं, “कृपया, हमें बचे हुए भोजन के उपयोग के तरीक़े सुझाते रहें."

लेयला फ़तहअल्लाह ने तैयार भोजन उपलब्ध करवाने के लिए, हाल ही में Fitkult नामक सेवा शुरू की है. इसकी संस्थापक के रूप में, लेयला फ़तहअल्लाह के लिए भोजन की बर्बादी रोज़मर्रा की समस्या है. उनकी कम्पनी, ग्राहकों की बढ़ती सूची के लिए एक दिन में तीन व्यंजन तैयार करती है. ऐसे में उन्होंने प्रत्येक भोजन के ऑर्डर के लिए ज़रूरी सामग्री की सटीक मात्रा का अनुमान लगाना सीख लिया है, ताकि उनके रसोइये आवश्यकता से अधिक भोजन न पकाएँ.

लेयला फ़तहअल्लाह उन रसोइयों मे से एक हैं, जो पश्चिम एशिया में भोजन की बर्बादी की महामारी का मुक़ाबला करने की कोशिश कर रहे हैं, जहाँ भोजन का लगभग एक-तिहाई भाग बर्बाद हो जाता है. उद्योग जगत के लोगों का कहना है कि इस बर्बादी के परिणामस्वरूप, पहले से ही ग़रीबी और जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे क्षेत्र पर, एक अनावश्यक आर्थिक व पर्यावरणीय बोझ पड़ रहा है.

भोजन, उत्पादन क्षेत्र से लेकर खाने की थाली तक पहुँचने में, बहुत से संसाधन लगते हैं.
© Roberto Villanueva

समस्या विशाल है

लेकिन भोजन की बर्बादी की समस्या केवल पश्चिम एशिया की ही समस्या नहीं है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) के 2021 खाद्य अपशिष्ट सूचकांक के अनुसार, केवल वर्ष 2019 में लगभग एक अरब टन खाद्य अपशिष्ट वजूद में आया था. इसमें से 60 प्रतिशत से अधिक अपशिष्ट घरों से, 26 प्रतिशत खाद्य क्षेत्र से और 13 प्रतिशत अपशिष्ट खुदरा क्षेत्र से आया. रिपोर्ट में पाया गया कि कुल मिलाकर, खेत से थाली भोजन पहुँचने में, 17 फ़ीसदी भोजन बर्बाद होता है.

ये आँकड़े वाक़ई चौंकाने वाले हैं क्योंकि दुनिया भर में अनुमानतः 3 अरब 10 करोड़ लोगों को स्वस्थ आहार उपलब्ध नहीं है; और लगभग 82 करोड़ 80 लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं. खाद्य अपशिष्ट सूचकांक के मुताबिक़, इससे ग़रीबी, भुखमरी, असमानता व संयुक्त राष्ट्र के ‘ज़िम्मेदार खपत व उत्पादन’ से सम्बन्धित सतत विकास लक्ष्यों पर प्रगति कमज़ोर होती है.

भोजन की बर्बादी होती है, तो इसके उत्पादन में लगने वाले पानी, परिवहन के लिए ऊर्जा और भूमि जैसे सभी संसाधनों का भी नुक़सान होता है. इसके अतिरिक्त, अधिकांश बर्बाद भोजन, विशाल कूड़ेदानों में फेंक दिया जाता है, जहाँ वो सड़कर मीथेन गैस बनाता है. मीथेन गैस, एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसका जलवायु संकट में भी बड़ा हिस्सा है.

क्षेत्र में भोजन की बर्बादी पर यूनेप की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम एशिया में अनुमानतः 34 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है. यूनेप के पश्चिम एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, सामी डिमासी का कहना कि यह दुनिया के ऐसे हिस्से में हो रहा है, जिसके लिए यह बर्बादी वहन करना कठिन है.

सामी डिमासी कहते हैं, "यह क्षेत्र, खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर है और पानी जैसे दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों और सीमित अनुकूलन क्षमता के कारण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील है."

विश्व स्तर पर भोजन की बर्बादी के लिए अनेक कारण ज़िम्मेदार हैं. इनमें भोजन की ज़रूरत से ज़्यादा ख़रीद, अनुचित भंडारण और जमाख़ोरी या बहुत अधिक भोजन पकाने अथवा परोसने की आदतें शामिल हैं.

यूगांडा में भोजन की बर्बादी का एक दृश्य. दुनिया भर में हर साल इतना भोजन बर्बाद होता है जिससे करोड़ों लोगों को भेरपेट भोजन मिल सकता है.
© FAO/Sumy Sadurni

आदतें व संस्कृति हैं ज़िम्मेदार

खाद्य उद्योग से जुड़े के लोगों का कहना है कि बहुत बार, पश्चिम एशिया की संस्कृति भी भोजन की बर्बादी पर प्रभाव डालती हैं. इसा अलबालुशी, मस्कत के अल मौज गोल्फ़ रेस्तराँ में शेफ़ यानि रसोइए हैं, और ओमान शेफ़्स गिल्ड के अध्यक्ष हैं. वह अक्सर शादियों जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में भोजन बर्बाद होते देखते हैं.

औसतन प्रतिदिन 200 लोगों एवं विशेष आयोजनों के दौरान लगभग एक हज़ार लोगों तक के लिये भोजन बनाने वाले रेस्तराँ से जुड़े इसा अलबालुशी ने बताया कि उनके रेस्तराँ में भोजन की बर्बादी आम बात थी.

फिर उन्होंने हाल ही में प्रत्येक व्यंजन के लिए सटीक मात्रा में सामग्री तोलने के लिए एक नई प्रणाली स्थापित की. इसके अलावा उनके कर्मचारी बचे हुए भोजन को भी दो श्रेणियों में विभाजित करते हैं: ऐसा भोजन जो ग्राहकों को नहीं परोसा गया है, वो वंचित समुदायों को दान कर दिया जाता है, और जो भोजन परोसा जा चुका है, उसमें माँस व सब्ज़ियों को अलग-अलग रखकर, पशुओं एवं पालतू जानवरों को खिलाया जाता है. इससे, विशाल कूड़ेदानों में फेंके जाने के बाद, शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्पादन करने वाले भोजन-अपशिष्ट की मात्रा में कमी लाई जा रही है.

जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने के लिए, भोजन की बर्बादी को कम करना बेहद महत्वपूर्ण है. वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8 से10 प्रतिशत हिस्सा, अपशिष्ट भोजन से आता है, जिससे अस्थिर जलवायु व सूखा एवं बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं में योगदान होता है.

यूनेप और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने, खाद्य अपशिष्ट के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, 2019 में खाद्य हानि व अपशिष्ट के बारे में जागरूकता का अन्तरराष्ट्रीय दिवस शुरू किया.

UNEP ने ‘रैसिपी ऑफ़ चेंज’ अभियान भी शुरू किया, जो पश्चिम एशिया में उपभोक्ताओं को, भोजन की बर्बादी के प्रति जागरूक होने के लिए प्रेरित करता है. यह पहल टिकाऊ विकास लक्ष्य-12 प्राप्त करने की दिशा में प्रगति में तेज़ी लाने के लिए तैयार की गई है, जिसमें टिकाऊ खपत एवं उत्पादन शामिल हैं.

साथ ही, यूनेप की पहल, टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए वैश्विक अवसर के तहत, एशिया प्रशान्त, पश्चिम एशिया, अफ़्रीका और लातिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र में, 25 देशों को भोजन की हानि तथा बर्बादी कम करने के लिए, राष्ट्रीय रणनीति विकसित करने में मदद की.

बहुत से लोगों को, भोजन की बर्बादी का मुक़ाबला करना एक भारी बोझ लग सकता है, जिसे वो सरकारों व संस्थानों पर छोड़कर ही ख़ुश हैं. हालाँकि, लेयला फ़तहअल्लाह के लिए, यह प्रक्रिया रसोई से शुरू होती है, "इसमें केवल थोड़ा अतिरिक्त कार्य, रचनात्मकता और प्रयोग लगते हैं. अपने बच्चों को ये कौशल सिखाएँ, ताकि उनमें भोजन बर्बाद न करने की आदत पड़ सके.”

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.