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विज्ञान में अधिक संख्या में महिलाएँ व लड़कियाँ, बेहतर विज्ञान के समान, यूएन प्रमुख

अमेरिकी की मिज़ूरी युनिवर्सिटी में छात्राएँ अपने बनाए हुए रोबोट का परीक्षण कर रही हैं.
© Missouri S&T/Michael Pierce
अमेरिकी की मिज़ूरी युनिवर्सिटी में छात्राएँ अपने बनाए हुए रोबोट का परीक्षण कर रही हैं.

विज्ञान में अधिक संख्या में महिलाएँ व लड़कियाँ, बेहतर विज्ञान के समान, यूएन प्रमुख

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ‘विज्ञान में महिलाओं व लड़कियों के अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ पर, इस क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की संख्या बढ़ाने और लड़कियों को हरसम्भव समर्थन देने की पुकार लगाई है ताकि वे भी भविष्य में विज्ञान जगत में अपनी ज़्यादा उपस्थिति दर्ज करा सकें.

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यूएन प्रमुख ने अपने सन्देश में कहा कि इस अवसर पर हमें केवल एक सरल समीकरण को रेखांकित करना है: विज्ञान में ज़्यादा संख्या में लड़कियाँ व महिलाएँ, बेहतर विज्ञान के समान हैं.

“महिलाएँ व लड़कियाँ, शोध में विविधता साथ लेकर आती हैं, विज्ञान पेशेवरों के समुदाय का विस्तार करती हैं, और विज्ञान व टैक्नॉलॉजी में हर किसी के लिए नवीनतम परिप्रेक्ष्य प्रदान करती हैं, जिससे हर किसी को लाभ होता है.”

उन्होंने कहा कि विज्ञान का क्षेत्र हर किसी के लिए खुला होना चाहिए, इसके बावजूद यहाँ अब भी पुरुषों का ही दबदबा है.

लैंगिक विषमता व पूर्वाग्रह

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के अनुसार, स्कूलों में लड़कियोँ की संख्या पहले की तुलना में कहीं अधिक है, लेकिन विज्ञान, टैक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग, और गणित (STEM) विषयों में उनका प्रतिनिधित्व अब भी कम है.  

हर तीन में से केवल एक शोधकर्ता महिला है, और STEM-सम्बन्धी विषयों में महिला स्नातक केवल 35 प्रतिशत हैं.

कृत्रिम बुद्धिमता जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में इनकी संख्या और भी कम है, जहाँ हर पाँच में से केवल एक महिला ही कार्यरत है.

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने कहा कि यदि ये लैंगिक विषमताएँ इतनी व्यापक हैं, तो इसकी वजह यह है कि ये हमारे समाजों में गहराई तक समाई हैं.

शुरुआत से ही भेदभाव

महिला सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत यूएन संस्था (UN Women) की प्रमुख सीमा बहाउस ने कहा कि विज्ञान में कार्यरत महिलाओं या फिर इस क्षेत्र में प्रवेश की तैयारी कर रही महिलाओं की कम संख्या, सीधे तौर पर उनके साथ होने वाले भेदभाव को दर्शाती है.

उन्होंने कहा कि हाशिए पर रह रही महिलाओं व लड़कियों, आदिवासी व अफ़्रीकी मूल की महिलाओं, विकलांग महिलाओं, ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और एलजीबीटीआईक्यू+ समुदायों पर यह बात विशेष रूप से लागू होती है.

कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने कहा कि यह भेदभाव आरम्भिक वर्षों में ही शुरू हो जाता है और लैंगिक रूढ़िबद्ध धारणाओं और मानदंडों से यह पुष्ट होता है.

बड़े बदलावों की दरकार

यूएन वीमैन की प्रमुख ने कहा कि मौजूदा हालात को बदलने के लिए कायापलट कर देने वाले बदलावों की आवश्यकता है और इन ढाँचागत अवरोधों को पहचानने और अन्तत: उन्हें हटाने की आवश्यकता है.

उनका मानना है कि इससे शैक्षिक सुधारों की दिशा में बढ़ना होगा, एक ऐसे पाठ्यक्रम के साथ जिसमें वैज्ञानिक खोजों में लड़कियों की जिज्ञासाओं को शुरुआत से ही प्रोत्साहन दिया जाए. जैसेकि प्राथमिक स्कूलों के ज़रिये विज्ञान व टैक्नॉलॉजी के विषयों में.

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि हमें महिला वैज्ञानिकों को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे और हम यह कर सकते हैं.

बैक्टीरिया टॉक्सिन के एक नमूने की जाँच करते हुए, एक वैज्ञानिक
CDC

सम्भावनाओं को साकार करना

यूएन प्रमुख ने नई स्कॉलरशिप, इंटर्नशिप, प्रशिक्षण योजनाएँ शुरू किए जाने का आग्रह किया, और उसके समानान्तर, कोटा, प्रोत्साहन व परामर्श जैसे कार्यक्रमों की भी पैरवी की, ताकि महिलाएँ गहराई तक व्याप्त रुकावटों को पार करके, अपने करियर निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करें.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि लड़कियों के अधिकार पुष्ट किए जाने होंगे और रुढ़िबद्ध धारणाओं, पूर्वाग्रहों और ढाँचागत अवरोधों को तोड़ना होगा.

इस क्रम में, यूनेस्को महिलाओं व लड़कियों को विज्ञान शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करने में जुटा है, और पूर्वी अफ़्रीका में एक समर्थन कार्यक्रम के ज़रिये एक करोड़ से अधिक छात्रों, विशेष रूप से लड़कियों तक पहुँचा गया है.

वर्ष 1998 के बाद से अब तक, यूनेस्को और लो रियाल फ़ाउंडेशन ने पुरस्कार समारोह भी आयोजित किया है, जिसमें विश्व भर से असाधारण प्रतिभा की धनी महिला वैज्ञानिकों को सम्मानित किया जाता है.

अब तक, 120 विजेताओं को सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें पाँच ने नोबेल पुरस्कार भी हासिल किया है.  

न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय में अनेक युवा वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जोकि स्वच्छ जल व साफ़-सफ़ाई, नवीकरणीय ऊर्जा, और समुदायों में टिकाऊ औद्योगिकीकरण पर केन्द्रित था.

भविष्य के नवप्रवर्तक

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के लिए अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने इन युवा वैज्ञानिकों को भविष्य के नोबेल पुरस्कार विजेता व नवप्रवर्तक क़रार दिया, जोकि ऐसे समाधानों की खोज कर रहे होंगे, जिनसे पृथ्वी को बचाया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि “आप इस बात का जीता-जागता सबूत हैं कि अधिक संख्या में लड़कियों व महिलाओं के लिए शिक्षा की समान सुलभता का अधिकार क्यों महत्वपूर्ण है.”

यूएन महासभा प्रमुख के अनुसार, STEM विषयों में महिलाओं के अल्प प्रतिनिधित्व की वजह से टिकाऊ विकास लक्ष्य प्राप्ति के वैश्विक प्रयासों को झटका लगा है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन से लेकर खाद्य असुरक्षा, बीमारियों के प्रकोप से लेकर जल क़िल्लत तक, इतनी विशाल चुनौतियों का हल तलाश करने के लिए हमें महिला वैज्ञानिकों की आवश्यकता है.