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चीन: तिब्बती बच्चों को हान संस्कृति में जबरन आत्मसात किए जाने की कोशिशों पर चिन्ता

तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के बरखोर में बच्चे को लिए हुए एक महिला.
© UNICEF/Palani Mohan
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के बरखोर में बच्चे को लिए हुए एक महिला.

चीन: तिब्बती बच्चों को हान संस्कृति में जबरन आत्मसात किए जाने की कोशिशों पर चिन्ता

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार को चेतावनी जारी की है कि चीन में अल्पसंख्यक तिब्बती समुदाय के क़रीब 10 लाख बच्चों को उनके परिवारों से अलग करके सरकार द्वारा संचालित आवासीय स्कूलों में रखा गया है. यूएन विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि चीन सरकार की इस नीति की मंशा तिब्बत के लोगों को सांस्कृतिक, धार्मिक व भाषाई तौर पर जबरन हान संस्कृति में आत्मसात करना है.

विशेषज्ञों ने सोमवार को जारी अपने वक्तव्य में कहा कि, “हम बेहद परेशान हैं कि बीते कुछ वर्षों से तिब्बती बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय प्रणाली एक बड़े स्तर पर अनिवार्य कार्यक्रम के रूप में उभरी है.”

“इसकी मंशा तिब्बतियों को बहुसंख्यक हान संस्कृति में पूरी तरह से मिला लेना है जोकि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों के विरुद्ध है.”  

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इन आवासीय विद्यालयों में शैक्षिक सामग्री व माहौल बहुसंख्यक हान संस्कृति के इर्द-गिर्द बुना गया है, और पाठ्य पुस्तकों में लगभग पूरी तरह से हान छात्रों के अनुभव ही परिलक्षित होते हैं.

तिब्बती अल्पसंख्यक बच्चों को पारम्परिक या सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक शिक्षा से दूर हटकर केवल मैंडेरिन चीनी भाषा में एक 'अनिवार्य शिक्षा' पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए मजबूर किया जाता है.

ना ही, इन बच्चों को तिब्बत की भाषा, संस्कृति और उसके इतिहास के बारे में ठोस पढ़ाई कराई जाती है.

संस्कृति पर संकट

विशेषज्ञों के अनुसार, इस वजह से तिब्बती बच्चे अपनी मूल भाषा बोलने के कौशल को भूलते जा रहे हैं और अपने माता-पिता समेत परिवार के सदस्यों से तिब्बती भाषा में बातचीत करने की क्षमता भी खो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी स्वयं की पहचान ख़त्म होती जा रही है.

उन्होंने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और उसके आसपास संचालित आवासीय विद्यालयों की संख्या में हुई बढ़ोतरी और उनमें रहने वाले तिब्बती बच्चों की संख्या में वृद्धि को चिन्ताजनक बताया है.

ऐसे आवासीय विद्यालय चीन के अन्य हिस्सों में भी मौजूद हैं, मगर तिब्बती अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों में उनका अनुपात बहुत अधिक है, और पिछले कुछ समय में इन स्कूलों की संख्या बढ़ी है.

चीन में राष्ट्रीय स्तर पर आवासीय स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र क़रीब 20 प्रतिशत से अधिक है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, तिब्बती बच्चों की एक बड़ी आबादी, क़रीब 10 लाख बच्चे, आवासीय स्कूलों में रहती है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि आवासीय स्कूलों में तिब्बतियों की संख्या बढ़ने का एक कारण ग्रामीण इलाक़ों के स्कूलों को बन्द किया जाना है जहाँ मोटे तौर पर तिब्बती ही छात्र पढ़ते थे.

इनकी जगह अब चीनी मैंडेरिन भाषा में पढ़ाई कराने वाले स्कूलों ने ले ली है, जहाँ पर बच्चों को रहना आवश्यक होता है.

विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार इनमें से अनेक आवासीय स्कूल, बच्चों के घरों, उनके परिवारों से दूर स्थित हैं.

जबरन आत्मसात किए जाने की कोशिश

विशेषज्ञों ने कहा कि तिब्बित के शैक्षिक, धार्मिक व भाषाई संस्थाओं के विरुद्ध दमनकारी, सिलसिलेवार क़दमों से उन्हें प्रभुत्व वाली हान चीनी बहुसंख्यक संस्कृति में जबरन आत्मसात किए जाने की यह नीति चिन्ताजनक है.

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि ये नीतियाँ मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं, और भेदभाव पर पाबन्दी, शिक्षा के अधिकार, भाषाई व सांस्कृतिक अधिकारों, धर्म या आस्था की स्वतंत्रता और तिब्बती लोगों के अन्य अल्पसंख्यक अधिकारों के विरुद्ध हैं.

“यह उन नीतियों के विपरीत हैं जो कुछ मायनों में अधिक समावेशी या समझौतापरक थीं.”

अगस्त 2021 में, जातीय मामलों पर केन्द्रीय सम्मेलन ने सभी जातीय समूहों का चीनी राष्ट्र के हितों को सदैव सर्वोच्च स्थान पर रखने का आहवान किया था.

विशेषज्ञों के मुताबिक़, “इस आग्रह ने चीन की एकल राष्ट्रीय पहचान पर आधारित एक आधुनिक और मज़बूत समाजवादी देश के निर्माण के विचार को फिर से पुष्ट किया.”

उन्होंने सचेत किया कि इस सन्दर्भ में, तिब्बती भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की पहल को कथित तौर पर दबाया जा रहा है और तिब्बती भाषा और शिक्षा की वकालत करने वाले लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है.

बताया गया है कि स्वतंत्र विशेषज्ञों ने इस विषय में 11 नवम्बर 2022 को चीन सरकार पत्र भेजा था, और स्थानीय प्रशासन के साथ सम्पर्क बना हुआ हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों के नाम यहाँ देखे जा सकते हैं. 

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.