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संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित एक बस यूक्रेनी शरणार्थियों को, मोल्दोवा से रोमानिया ले जा रही है.

मोल्दोवा: सुरक्षा की लम्बी व घुमावदार राह

Victor Lacken/Lensman.eu
संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित एक बस यूक्रेनी शरणार्थियों को, मोल्दोवा से रोमानिया ले जा रही है.

मोल्दोवा: सुरक्षा की लम्बी व घुमावदार राह

प्रवासी और शरणार्थी

रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद भागने के लिये मजबूर हुए लगभग 7 लाख लोग, पड़ोसी देश मोल्दोवा से होकर गुज़रे हैं, जिससे देश के संसाधनों पर भारी दबाव पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र की प्रवासन एजेंसी (IOM) इस अभूतपूर्व स्थिति से निपटने के लिये, सबसे सम्वेदनशील वर्ग व अधिकारियों की मदद कर रही है.

योरोप के दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थित, मोल्दोवा की सर्दियाँ नीरस और कठिन भले ही हों, लेकिन नंगी, भूरी पहाड़ियों के बीच, यूक्रेन की सीमा से निकलती सड़क, उम्मीद जगाती दिखती है.

यूक्रेन के दोनेत्स्क क्षेत्र से भागकर आईं लारयिसा के लिये, इस सुनसान भूमि का मतलब है, सुरक्षा. इसका अर्थ है, गोलीबारी के निरन्तर शोर, सायरन और ड्रोन की आवाज़, बंकर पहुँचने की अफ़रा-तफ़री, अंधेरा, ठण्ड, गंध व युद्ध की गम्भीरता से निजात. मायने यह कि आतंक से दूर, यहाँ दोबारा जीवन की शुरुआत की जा सकती है.

जब लारयिसा, पलंका के छोटे से शहर के बाहर स्थित इण्टरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) स्टेशन की सीमा पर एक बस से उतरीं, तो अपनी बीमार बेटी के साथ 2,000 किलोमीटर की यात्रा करके, दोनेत्स्क क्षेत्र को बहुत पीछे छोड़ आईं थीं.

दोनेत्स्क की लारयिसा किरिलेंको और उनकी बेटी, बुकारेस्ट के रास्ते में नाश्ता करते हुए.
Victor Lacken/Lensman.eu

'माँ, क्या हम कल सुबह उठेंगे?'

उन सभी की तरह, जो अभी-अभी युद्ध के नर्क से बचकर आए हैं, उनसे बातचीत के दौरान कई भावनात्मक उतार-चढ़ाव आते हैं. कई बार मौन के बाद, छलछलाते आँसू या फिर अविरल बहती आँसुओं की धारा के बीच वो ताज़ा दर्दनाक यादों का ज़िक्र करती हैं. पहले अविश्वास, फिर राहत जैसे भाव उनके चेहरे पर आते-जाते दिखते हैं. लेकिन, साथ ही साथ, वो रोमानिया जाने के अपने अगले क़दम की योजना भी बनाती जा रही हैं.

वो कहती हैं,"बुकारेस्ट पहुँचकर मैं रोज़गार के लिये आवेदन करना चाहती हूँ, कामकाज, आवास ढूँढना चाहती हूँ.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वहाँ कोई गोलीबारी नहीं होती, वो स्थान शान्तिपूर्ण है और आपका बच्चा 'माँ, क्या हम कल सुबह उठेंगे' के ख़ौफ़ के बिना ही सो सकता है?"

लारयिसा और उनकी बेटी, लगभग दर्जन लोगों के साथ, आईओएम व अन्य एजेंसियों द्वारा स्थापित तम्बू के आसपास बैठे हैं. रोमानिया की राजधानी के 10 घण्टे लम्बे रास्ते के लिये बस से निकलने से पहले, गर्म भोजन, स्वास्थ्य जाँच, आने वाले दिनों व हफ़्तों के लिये आवश्यक जानकारी प्राप्त करने और यहाँ तक ​​कि स्नान करने की भी व्यवस्था है.

मोल्दोवा में आईओएम के मिशन प्रमुख, लार्स जोहान लोनबैक याद करते हैं, "रूसी आक्रमण के तुरंत बाद, जब पहली बार फरवरी के अन्त में हम यहाँ आए थे, तो सीमा पर पूरी तरह अफ़रा-तफ़री मची थी. हमे तभी स्पष्ट हो गया था कि भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल और परामर्श के साथ-साथ, परिवहन भी एक बड़ी आवश्यकता थी. उन परिवारों को पुर्तगाल, नॉर्वे, इटली ले जाने के लिये नेकनीयत स्वयंसेवक आगे आ रहे थे, जिन्हें, अपने परिवार के पुरुषों को लड़ने के लिये पीछे छोड़ना पड़ा था. सब कुछ पूर्णत: असंगठित था और मानव तस्करों के लिये एक आसान परिदृश्य, जो ऐसे हालात में सबसे कमज़ोर वर्ग के लोगों का शोषण करते हैं.”

आईओएम, यूक्रेन से विस्थापित लोगों को जानकारी के साथ-साथ, भोजन व कम्बल दे रहा है.
Victor Lacken/Lensman.eu

बुकारेस्ट के लिये बस

लार्स जोहान लोनबैक को यह भी स्पष्ट था कि सीमा पार से आने वाले हज़ारों लोग, मोल्दोवा के दुर्लभ संसाधनों पर भारी दबाव डालेंगे, जिससे सामाजिक संकट पैदा हो सकता है. मोल्दोवा के अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) के साथ भागीदारी में, आईओएम ने ज़रूरतों का आकलन किया और समाधान खोजने की कोशिश की. भागीदारों ने मिलकर तुरन्त एक समर्पित बस सेवा की स्थापना की गई, जिसने सीमा क्षेत्र को भीड़भाड़ से मुक्त किया, कमज़ोर लोगों की रक्षा की, और बड़े पैमाने पर राहत प्रयासों में साथ दिया.

इसी प्रकार, आईओएम, हवाई जहाज़ से यूरोपीय संघ के देशों में जाने में लोगों की मदद कर रहा है, विशेष रूप से सर्वाधिक ज़रूरतमन्दों की - जिनमें विकलांग, बुज़ुर्ग और बिस्तर पर पड़े लोग शामिल हैं. – आज तक, 15 हज़ार से अधिक लोग, आईओएम की मदद से, बस और विमान के ज़रिये, यूरोपीय संघ में प्रवेश कर चुके हैं. आईओएम के मिशन प्रमुख का मानना ​​​​है कि इससे पहले ही ग़रीबी व सामाजिक तनाव से पीड़ित मोल्दोवा में, कठिन परस्थिति से निपटने में मदद मिली है.

उन्होंने बताया, "महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय मोल्दोवा की हर प्रकार से मदद करना जारी रखे हुए है. हमने देखा है कि यूक्रेन के लोग गर्व व सहनसक्षमता से परिपूर्ण हैं, और वे वास्तव में अपना घर नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन, जैसे-जैसे बुनियादी ढाँचे पर हमले बढ़े, और बर्फ़ की परतें बढ़ने  लगीं, वैसे-वैसे जीना मुश्किल हो गया. हमने एक ऐसी प्रणाली स्थापित की है जो सहनसक्षम एवं उत्तरदायी है, और हम एक बार फिर यूक्रेन से बड़ी संख्या में लोगों के भागकर आने की स्थिति में इसका विस्तार कर सकते हैं.”

मोल्दोवा के रास्ते यूक्रेन से भागे लोगों में से लगभग 10 प्रतिशत ने देश में रहने का फ़ैसला किया है. जो लोग रुके हैं, उनमें से कई सीमा के अपेक्षाकृत निकटवर्ती शहरों से हैं;  या तो मोल्दोवा में उनके परिवार और दोस्त हैं; या, फिर वे अपनी मातृभूमि के क़रीब रहना चाहते हैं.

स्वितलाना निकितिना (बाँए से दूसरी), युद्ध के आरम्भ में अपने परिवार के साथ ओडेसा छोड़कर भीग आईं थीं.
Victor Lacken/Lensman.eu

चार पीढि़याँ विस्थापित

मोल्दोवा से 40 किलोमीटर दूर स्थित, ओडेसा की 60 वर्षीय रियल एस्टेट एजेंट, स्वितलाना अब चिसीनाउ के बाहर एक छोटे से घर में रहने वाली महिलाओं की चार पीढ़ियों के जीवन का आधार हैं. जो भयावहता उन्होंने देखी और सुनी, उसका वो धीरे-धीरे वर्णन करती चली जाती है. साथ में बैठीं, उनकी माँ चुपचाप पढ़ रही हैं और उनकी बेटी सूप बना रही है व पोती चित्रकारी में मग्न है.

लेकिन, वह रोती नहीं हैं. स्वितलाना यह आभास देती है कि दुःख एक ऐसी चीज़ है जिसके लिये उनके पास न तो समय है, न ही वो उसके लिये समय देना चाहती हैं. उनके पति और दामाद लड़ाई के मैदान में हैं, और उनका काम अब अकेले परिवार को सम्भालना है.

वह कहती हैं, मोल्दोवा ने मानवीय सहायता और करूणा सहित, उनका गर्मजोशी से स्वागत किया है. वह और उनकी बेटी रोमानिया की भाषा सीख रही हैं ताकि वे स्थानीय रोज़गार हासिल कर सकें और अपने मेज़बान देश व स्वयं के लाभ के लिये अपने कौशल का उपयोग कर सकें. हालाँकि वो प्राप्त राहत सहायता के लिये कृतज्ञ हैं, लेकिन उस पर जीवन नहीं गुज़ारना चाहतीं.

संगठन के दृष्टिकोण का वर्णन करते हुए मोल्दोवा में आईओएम के आपातकालीन समन्वयक, मार्गो बार्स कहते हैं, "यह एकजुटता ज़रिये स्थिरता का उदाहरण है.हम आजीविका के लिये सहायता, छोटे व्यवसायों के लिये अनुदान, प्रशिक्षण और बदलाव के दौरान शरण प्रदान करते हैं, विशेष रूप से इस कठिन सर्दी से लोगों को निकालने के लिये. मुख्यत: हम मनोवैज्ञानिक सहायता पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, क्योंकि इतना कुछ सहने के बाद लोगों को भौतिक सहायता के अलावा भी कुछ और की भी आवश्यकता होती है."

माताओं, छोटे बच्चों और दादी-नानी के साथ यूक्रेन छोड़कर आए लोगों में बुज़ुर्ग भी हैं. 73 वर्षीय यूरी, द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में अपने माता-पिता से सुने किस्से याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने नहीं सोचा था कि वो कभी अपनी मातृभूमि में मृत्यु और विनाश का ऐसा मंज़र देखेंगे. वो कहते हैं, "यह भयावह है. हर दिन यहाँ पीड़ितों को लाया जा रहा है. हर एक दिन. इतने सारे पीड़ित हैं, इतनी पीड़ा, इतना दुख है.”

शान्ति के दौरान कोख में आया और यूक्रेन युद्ध के बीच पैदा हुआ, पाँच महीने का इवान,  अब मोल्दोवा में अपनी माँ केन्सिया के साथ सुरक्षित है. गर्भावस्था के आख़िरी दिनों में, केन्सिया को बारूदी-सुरंगों से बचते हुए, क्लस्टर बमों की वर्षा के बीच भागना पड़ा था. भागते हुए वो गिर गईं थीं, लेकिन उससे इवान बच तो गया, लेकिन उस दिन की याद के तौर पर इवान के एक जन्म चिन्ह रह गया – वो दिन, जब दोनों मौत को धोखा देने में क़ामयाब रहे थे.

केन्सिया कहती हैं, "मैं चाहती हूँ कि यह युद्ध ख़त्म हो ताकि मैं मातृत्व का पूरा आनंद उठा सकूँ. मुझे लगता है कि मैं इवान न होता तो इस युद्ध ने मुझे पागल बना दिया होता. एक वही है जो इस आतंक के बीच रोशनी बनकर आया है.

इस ठण्डे, वीरान क्षेत्र में, उसकी मुस्कान धूप की किरण के समान है.