अफ़ग़ानिस्तान: सहायता अभियानों में महिलाओं की भूमिका पर दिशा-निर्देशों का इन्तज़ार

संयुक्त राष्ट्र के चार शीर्ष मानवीय सहायता पदाधिकारियों ने सोमवार को न्यूयॉर्क में कहा है कि यूएन के नेतृत्व में, मानवतावादियों ने उम्मीद जताई है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान प्रशासन, देश की महिलाओं को, फिर से ग़ैर-सरकारी संगठनों में कामकाज करने की इजाज़त देगा. दिसम्बर 2022 में ये पाबन्दी लगाई गई थी.
उन्होंने अन्तर-एजेंसी स्थाई समिति (IASC) का प्रतिनिधित्व करते हुए ज़ोर दिया है कि अफ़ग़ानिस्तान में, दो करोड़ 80 लाख लोगों की मदद करने वाला, विश्व का सबसे बड़ा मानवीय सहायता अभियान, महिलाओं के बिना, बिल्कुल भी आगे नहीं बढ़ सकता.
#Afghanistan PRESS BRIEFING
Today, @UNReliefChief Martin Griffiths & IASC Principals @SaveCEO_US, @SofiaSprechmann & Omar Abdi will speak to the press at 11.00EST (20.30 Kabul local) following their recent mission.
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इन पदाधिकारियों ने गत सप्ताह, अफ़ग़ानिस्तान की अपनी यात्रा के बारे में ताज़ा जानकारी देते हुए बताया कि ये यात्रा 24 दिसम्बर को, स्थानीय और अन्तरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के सहायता अभियानों में अफ़ग़ान महिलाओं के कामकाज करने पर लगाई गई पाबन्दी के बाद के हालात का जायज़ा लेने के लिए की गई थी.
कुछ दिन बाद, तालेबान प्रशासन ने, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में, महिलाओं को काम करना जारी रखने की अनुमति दी थी.
इसी तरह की रियायत शिक्षा क्षेत्र में भी दी गई, अलबत्ता ये प्राइमरी शिक्षा स्तर पर ही रही, क्योंकि अफ़ग़ान लड़कियों और महिलाओं पर, हाई स्कूल और यूनिवर्सिटी स्तर की शिक्षा हासिल करने पर रोक लगाई हुई है.
IASC टीम ने, तालेबान के साथ अपनी बैठकों में, इस प्रतिबन्ध का विरोध दर्ज कराया, उन्हें इस प्रतिबन्ध के हट जाने की उम्मीद है. टीम ने मानवीय सहायता कार्रवाई के सभी क्षेत्रों में भी ये प्रतिबन्ध हटाने की हिमायत की.
यूएन राहत मामलों के प्रमुख और IASC के अध्यक्ष मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने सोमवार को यूएन मुख्यालय में एक प्रैस वार्ता में कहा कि टीम के सदस्यों को बताया गया कि इस बारे में कुछ दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं, इस बारे में कुछ संयम बरतने को कहा गया है.
अफ़ग़ानिस्तान में वर्ष 2023 के दौरान, मानवीय सहायता अभियान चलाने के लिए, 4 अरब 60 करोड़ डॉलर की रक़म की आवश्यकता होगी.
अफ़ग़ानिस्तान में तीन वर्ष के सूखा हालात, आर्थिक पतन और चार दशकों के संघर्ष के भीषण प्रभावों के कारण, लगभग दो-तिहाई आबादी यानि क़रीब दो करोड़ 80 लाख लोगों, को सहायता पर निर्भर कर दिया है. इनमें से 60 लाख लोग भुखमरी के कगार पर हैं.
सेव द चिल्ड्रन नामक ग़ैर-सरकारी संगठन की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैन्ती सोएरीप्टो के अनुसार, देश में ग़ैर-सरकारी संगठनों के लिए काम करने वाले, लगभग 55 हज़ार देशवासियों में, क़रीब 30 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है.
उन्होंने कहा, “हमारी टीमों में महिलाओं की मौजूदगी के बिना, हम लाखों बच्चों व महिलाओं तक, मानवीय सहायता सेवाएँ नहीं पहुँचा सकते हैं.”
एक अन्य ग़ैर-सरकारी संगठन CARE International की महासचिव सोफ़िया स्प्रैशमन्न सिनीरो ने कहा कि देश में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और पोषण सेवाएँ, फिर से सुचारू हो गई हैं और महिलाएँ फिर से अपने काम पर लौट आई हैं.
सोफ़िया ने इस प्रैस वार्ता में काबुल से शिरकत करते हुए कहा, “इसमें क़तई भी अस्पष्टता नहीं रहनी चाहिए. महिलाओं को जीवनरक्षक सहायता मुहैया कराने के काम में सक्रिय महिलाओं को हटाकर, ग़ैर-सरकारी संगठनों के हाथ बान्धने से, ज़िन्दगियों का नुक़सान उठाना पड़ेगा.”
लड़क़ियों के लिए सैकंडरी स्कूल की शिक्षा पर पाबन्दी लगाने से, दस लाख से भी ज़्यादा लड़कियों का तालीमी नुक़सान हुआ है. कोविड-19 महामारी के दौरान भी शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में भारी नुक़सान हुआ था.
यूनीसेफ़ के एक उप कार्यकारी निदेशक उमर आब्दी का कहना था कि दिसम्बर 2022 में महिलाओं की यूनिवर्सिटी शिक्षा पर पाबन्दी ने, उनकी उम्मीदों को और भी ज़्यादा रौंद दिया है.
उमर आब्दी ने कहा, “हम लड़कियों और महिलाओं के विकास को लेकर बहुत चिन्तित हैं, विशेष रूप से उनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में.”
“वर्ष 2023 में, अगर सैकंडरी स्कूल बन्द रहे, तो लगभग दो लाख 15 हज़ार, एक बार फिर शिक्षा प्राप्ति के अधिकार से वंचित रह जाएंगी.”