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पोलैंड में यहूदी यातना शिविर, आउशवित्ज़-बर्केनाउ.

घर, अपनेपन का ऐहसास, और हॉलोकॉस्ट

Unsplash/Jean Carlo Emer
पोलैंड में यहूदी यातना शिविर, आउशवित्ज़-बर्केनाउ.

घर, अपनेपन का ऐहसास, और हॉलोकॉस्ट

मानवाधिकार

इस वर्ष, यहूदी जनसंहार (हॉलोकॉस्ट) स्मरण दिवस की थीम है - ‘घर और अपनेपन का ऐहसास’. वर्ष 1933 में नात्सी पार्टी ने जर्मनी पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के बाद, यहूदी नागरिकों से इन्हीं दो भावनाओं को व्यवस्थागत ढंग से छीन लिया गया था.  

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नात्सियों ने 60 लाख से ज़्यादा यहूदियों और अन्य लोगों का जनसंहार किया था - हॉलोकॉस्ट के पीड़ितों की स्मृति में हर वर्ष 27 जनवरी को यह स्मरण दिवस मनाया जाता है. 

1933 में जर्मन शासक हिटलर ने अपनी पार्टी की नस्लवादी और राष्ट्रवादी विचारधारा को लागू करना शुरू किया. इसके साथ ही इस बात की भी पहचान की गई कि कौन लोग, जर्मनी को अपना घर होने का दावा कर सकते हैं, और उनके विचारों में किस का वास्तव में इस देश के साथ रिश्ता है.

यह प्रक्रिया यहूदियों का समाज से बहिष्कार करने के लिए निर्धारित क़ानून लागू करने से भी आगे बढ़ी.

नात्सी पार्टी ने ग़लत जानकारी और नफ़रत भरे सन्देशों की मुहिम चलाई, जिसके ज़रिए यहूदियों का तिरस्कार और उनके अमानवीयकरण की कोशिशें हुईं.  

इसके साथ ही, आतंकी कृत्यों को भी अंजाम देने की अनुमति दी गई, जिनसे पीड़ितों के उपासना स्थल, आजीविका और घर तबाह हो गए.

नात्सी नेतृत्व ने जर्मन-भाषी जनता को एकजुट करने के बहाने, योरोप में बड़े क्षेत्रों को अपने क़ब्ज़े में लेने के बाद, अपने नियंत्रण वाले देशों में भी इसी मक़सद से व्यवस्थागत अभियान चलाए.

Subcarpathian Rus से यहूदी Auschwitz-Birkenau, पोलैंड में एक रैंप पर चयन प्रक्रिया के अधीन हैं
US Holocaust Memorial Museum/Yad Vashem

‘कनफोड़ू चुप्पी’ ने बढ़ाए हौसले

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर अपने सन्देश में कहा कि हॉलोकॉस्ट, हज़ारों सालों से यहूदियों के प्रति नफ़रत की परिणति था, जिसे नात्सियों को रोकने के लिए कुछ भी ना करने का निर्णय लेने वालों से बल मिला.

“यह कनफोड़ू चुप्पी ही थी – घर पर और विदेश, दोनों में – जिससे उनका साहस बढ़ गया.”

महासचिव गुटेरेश के अनुसार नात्सी जर्मनी में नफ़रत भरे सन्देशों व ग़लत जानकारी फैलाने के अभियानों, मानवाधिकारों व क़ानून के राज का मखौल उड़ाए जाने, हिंसा व नस्लीय वर्चस्ववाद की कथाओं का महिमामंडन करने और लोकतंत्र व विविधता का तिरस्कार किए जाने के बावजूद यह चुप्पी बनी रही.

यहूदीवाद विरोध पर आधारित एक बाल पुस्तिका, “Der Giftpilz” (ज़हरीली मशरूम) की एक प्रति, यूएन मुख्यालय में देखी जा सकती है.
UN News/ Conor Lennon
यहूदीवाद विरोध पर आधारित एक बाल पुस्तिका, “Der Giftpilz” (ज़हरीली मशरूम) की एक प्रति, यूएन मुख्यालय में देखी जा सकती है.

“बढ़ते आर्थिक असन्तोष और राजनैतिक अस्थिरता, उग्र होते श्वेत वर्चस्ववादी आतंकवाद, और नफ़रत व धर्मान्धता में उभार को ध्यान में रखते हुए, हमें पहले से कहीं अधिक मुखर होकर बोलना होगा.”

पहुँच व सम्पर्क स्थापित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के आउटरीच विभाग ने न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय में जनवरी और फ़रवरी में सिलसिलेवार कार्यक्रमों का आयोजन किया है, जिसके ज़रिए 'घर व अपनेपन का ऐहसास' थीम पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.

विस्थापितों की व्यथा

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फ़िलहाल एक प्रदर्शनी शुरू हुई है, जोकि 23 फ़रवरी तक जारी रहेगी.

इस प्रदर्शनी के ज़रिए योरोप के विभिन्न हिस्सों में गम्भीर संकट का सामना और मदद की तलाश कर रहे यहूदी शरणार्थियों के अनुभवों को उकेरा गया है.

'After the End of the World: Displaced Persons and Displaced Persons Camps', नामक प्रदर्शनी में विभिन्न दस्तावेज़, तस्वीर प्रस्तुत किए गए हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र अभिलेखागार और यहूदी शोध के यिवो संस्थान से लिया गया है.

इस प्रदर्शनी के ज़रिए, संयुक्त राष्ट्र राहत व पुनर्वास प्रशासन की भूमिका को भी रेखांकित किया गया है, जिसका गठन, युद्ध और हॉलोकॉस्ट के कारण विस्थापित होने वाले परिवारों को फिर से बसाने के लिए किया गया था.

इस प्रदर्शनी में, शरणार्थियों की तस्वीरें, उनके बारे में जानकारी के साथ-साथ अनेक शिल्पकृतियाँ भी हैं, जिनमें राष्ट्रविहीन यहूदी बच्चों द्वारा बनाई गई गुड़ियाएँ भी हैं. ये बच्चे युद्ध के बाद इटली के फ़्लोरेंस में एक विस्थापन शिविर में रह रहे थे.

भ्रामक जानकारी, घिसी-पिटी धारणाएँ, यहूदीवाद-विरोध

टकराव, हिंसा और उत्पीड़न के कारण होने वाले विस्थापन की चुनौती आज भी मौजूद है. भ्रामक जानकारी और नफ़रत भरी बोली व सन्देश, विश्व भर में इंटरनेट की वजह से तेज़ी से फैल जाते हैं और उनसे ज़िन्दगियों के लिए जोखिम पैदा होता है.

विस्थापन पर केन्द्रित प्रदर्शनी के नज़दीक ही एक अन्य में घिसी-पिटी धारणाएँ पेश किए जाने, ग़लत जानकारी फैलाए जाने, और यहूदियों, रोमा, प्रवासियों व अन्य समूहों के तिरस्कार के लिए नात्सियों द्वारा इस्तेमाल की गई साज़िश भरी कहानियाँ प्रदर्शित की गई हैं.

विस्थापितों के लिए बनाए गए शिविरों में रह रहे राष्ट्रविहीन यहूदी बच्चों द्वारा बनाई गई गुड़ियाएँ.
UN News/ Conor Lennon

20 फ़रवरी तक चलने वाली “FakeImages: Unmask the Dangers of Stereotypes” प्रदर्शनी का उद्देश्य, दर्शकों के समक्ष उन झूठों का पर्दाफ़ाश करना है, जो आज भी समुदायों में विभाजन और ध्रुवीकरण की वजह हैं.

दोनों प्रदर्शनियों में आगन्तुकों को उस दौर की, वर्तमान समय के यहूदीवाद-विरोध से तुलना करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है  

नाम पुस्तिका

17 फ़रवरी तक, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आगन्तुक, हॉलोकॉस्ट पीड़ितों के नामों पर आधारित Yad Vashem किताब भी देखी जा सकती है.

इसमें वर्णमाला के क्रम से उन 48 लाख हॉलोकॉस्ट पीड़ितों के नाम संजोए गए हैं, जिनके बारे में अभी तक विश्व हॉलोकॉस्ट स्मरण केन्द्र ने पुष्ट जानकारी जुटाई है.

सम्भव होने पर, किताब में हर पीड़ित की जन्म तिथि, गृहनगर और मृत्यु स्थल को दर्शाया गया है.