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हेट स्पीच पर देशों का पलटवार

यूनेस्को का कहना है कि नफ़रत भरी भाषा और सन्देश, दुनिया भर में फैलाव पर हैं.
Unsplash/Jon Tyson
यूनेस्को का कहना है कि नफ़रत भरी भाषा और सन्देश, दुनिया भर में फैलाव पर हैं.

हेट स्पीच पर देशों का पलटवार

संस्कृति और शिक्षा

ऑनलाइन माध्यमों पर बढ़ती हुई नफ़रत भरी भाषा यानि ‘हेट स्पीच’, घृणा भरी बातें व सन्देश बेहद चिन्ताजनक हैं. ये एक ऐसा चलन है जिसने बहुत से लोगों की ज़िन्दगियाँ ख़तरे में डाल दी हैं. ‘यूनाइटिंग अगेंस्ट हेट’ श्रृंखला की इस दूसरी कड़ी में हम कोस्टा रीका और चैक गणराज्य की उन राष्ट्रीय रणनीतियों पर बात कर रहे हैं, जो उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए लागू की हैं.

कोस्टा रीका अपने सशक्त लोकतंत्र, मानवाधिकार समर्थक नज़रिये और क़ानून के शासन के प्रति सम्मान के लिए जाना जाता है. लेकिन देश में वर्ष 2018 के आम चुनावों में, समाज के एक अभूतपूर्व प्रसार देखा गया जोकि बेहद चौंकाने वाला था.

कोस्टा रीका में संयुक्त राष्ट्र की रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर अलेग्रा बायोची ने समाज के इस बदले हुए रूप और लोकलुभावन व रूढ़िवादी एजेंडे को तेज़ी से बढ़ते देखा. इसके साथ ही नफ़रत फैलाने वाले भाषणों और भेदभाव व कट्टरता में भी वृद्धि देखी गई.

नफ़रत पर चिन्तन

अकोस्टा नगर पालिका में परिदृश्य; कोस्टा रिका जो 2000 साल पहले स्वदेशी समूहों द्वारा और आज कृषि के लिए समर्पित लोगों द्वारा आबाद किया गया था।
UN Costa Rica/Danilo Mora

इस ख़तरनाक प्रचलन को देखते हुए, यूएन की देशीय टीम ने कोस्टा रीका में नफ़रत भरी बोली, सन्देश व सम्बोधन के ख़िलाफ एक कार्रवाई योजना बनाई. वर्ष 2021 में ‘हेट स्पीच’ के मुद्दे पर एक ऐतिहासिक अध्ययन प्रस्तुत किया.

अलेग्रा बायोची के अनुसार, “जब हमने इस विषय पर काम करना शुरू किया तो हमने अभिव्यक्ति की आज़ादी की सुरक्षा, और नफ़रत भरी भाषा व भेदभाव का सामना करने पर काफ़ी चर्चा की.”

“हम जानते हैं कि इस मुहिम में एक बड़ा ख़तरा ये है कि ‘हेट स्पीच’ के ख़िलाफ लड़ाई को, अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता को बाधित करने के रूप में देखा जाता है.”

बायोची और उनकी टीम ने महसूस किया कि बहुत सारी ऑनलाइन सामग्री महिलाओं को निशाना बनाती, विशेष रूप से उन्हें, जो नेतृत्व के पदों पर हों. LGBTQ लोगों के मुद्दे और प्रवासी आबादी भी अक्सर अभद्र भाषा के शिकार होते हैं.

यूएन की रैजिडेंट कोऑर्डिनेटर अलेग्रा बायोची कहती हैं, "जब हमने कुछ महिलाओं और निशाने पर रहे कुछ लोगों से बात करनी शुरू की, तो उन्होंने हमें बताया कि उन्हें अपनी राय व्यक्त करने में डर लगता है."

संयुक्त राष्ट्र की इस वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, एक बड़ी समस्या ये है कि डिजिटल स्थान (ऑनलाइन मंचों) पर की गई टिप्पणी की कोई जवाबदेही नहीं है. शुरुआत में, यूएन टीम ने दायित्व बढ़ाने की कोशिश की, चाहे फिर केवल नफ़रत फैलाने वाली भाषा और इन मंचों पर होने वाले भेदभाव के बारे में सूचना ही देना हो, या विभिन्न देशों में मौजूद क़ानून का उपयोग करना हो.

लेकिन फ़ेसबुक की मालिक कम्पनी - मेटा (Meta) से मुलाक़ात के बाद, टीम को अहसास हुआ कि, भले ही कम्पनी मध्यस्थता और नफ़रत भरी टिप्पणियों को हटाने में संसाधन निवेश कर रही है, फिर भी ये बहुत विशाल कार्य है. मेटा अपने मंच पर प्रकाशित की जाने वाली हर सामग्री को नहीं रोक सकती.

कोस्टा रीका के अध्ययन ने नफ़रत भरी भाषा के मामले में, प्रैस की दोहरी भूमिका का भी आकलन किया.

यूएन अधिकारी बायोची का कहना है, “हमने ऐसे मामले भी देखे हैं जहाँ एक तरफ़ तो मीडिया, मामलों की जाँच करते समय या सरकार की आलोचना करने के लिए अभद्र भाषा का शिकार हुई है, वहीं दूसरी ओर प्रैस ने भी ऐसी ख़बरें प्रकाशित की हैं, जो भेदभाव और नफ़रत भरी भाषा और सन्देशों को और भड़का सकती हैं.

बेहतर सुरक्षा

नफ़रत के ख़िलाफ़ एकजुटता दिखाने के लिये, न्यूयॉर्क के एक यहूदी धर्मस्थल - सिनेगॉग में एक अन्तर धार्मिक सभा का आयोजन. (31 अक्तूबर 2018)
UN Photo/Rick Bajornas

कोस्टा रीका में अध्ययन के अनेक परिणामों में से एक था – वकीलों के संगठन के साथ साझेदारी की शुरुआत.  इस समिति ने विश्व भर में फैल रही ‘हेट स्पीच’ के इर्दगिर्द क़ानूनी और न्यायिक अधिकार क्षेत्र का अध्ययन किया.

इस समूह ने जानने की कोशिश की कि किस देश में सर्वश्रेष्ठ विधि सिद्धान्त सहित न्याय व्यवस्था प्रचलित हैं और ऐसी नियमावली (गाइड) तैयार करने में सहायता की जिससे पीड़ितों की मदद हो सके.

बायोची की नज़र में देश की संसद ने बहुत सहयोग किया है, ख़ासतौर पर राजनीति में महिलाओं की सुरक्षा हेतु क़ानून परित करके.

उन्होंने बताया की इन दिनों कोस्टा रीका में अगर कोई व्यक्ति अभद्र भाषा का शिकार होते हैं, तो इस गाइड का सहारा लेकर ये जाना जा सकता है कि कि कौन सा क़ानून आपकी मदद के लिए मौजूद है.

यूएन अधिकारी का कहना है, "अनेक स्कूल ऐसी चर्चा का आयोजन करते हैं और बहस की जाती है कि भिन्न-भिन्न राय रखते हुए भी, विश्व में किस तरह सह-अस्तित्व में रहा जा सकता है."

"मुझे लगता है कि हेट स्पीच और भेदभाव पर किसी भी अध्ययन या कामकाज के पीछे यही मूल सन्देश है. ये मुद्दा दरअसल, परस्पर सम्मान करने के योग्य बनने और सह-अस्तित्व के बारे में हैं.”

सुनें, पूछें और सीखें

शिक्षा और साक्षरता की नींव से निकला है मीडिया विकास संगठन "Transition".  चैक गणराज्य की राजधानी प्राग में स्थित है.

संगठन में समाचार साक्षरता और तथ्य-पड़ताल परियोजना के प्रबन्धक जारोस्लाव वैलुच बताते हैं कि Tranistion संगठन, गुणवत्ता वाली पत्रकारिता का समर्थन करता है. ये संगठन, संघर्ष की रोकथाम के लिए उपेक्षित समूहों के साथ मीडिया साक्षरता पर काम करता है, और झूठी ख़बरों व अभद्र भाषा के ख़िलाफ लोगों की सहनक्षमता को मज़बूत करता है.

जारोस्लाव वैलुच कहते हैं, “अगर हम आम लोगों को, ग़लत जानकारी के ख़िलाफ़ और ज़्यादा सहनसक्षम बना सकें तो हम शायद हिंसक अतिवाद का मुक़ाबला कर सकें या इसकी रोकथाम कर सकें. स्कूलों और शिक्षा प्रणाली के साथ समस्या ये है कि इनमें पाठ्यक्रम और व्यवस्था को बदलने में काफ़ी लम्बा समय लगता है. हमें कुछ ऐसे कार्यक्रमों व योजनाओं की आवश्यकता थी जिन्हें तत्काल लागू किया जा सके.”

‘Tranistion’ ने समाज में झूठी सूचनाओं से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले जिस वर्ग की पहचान की है, वो समाज की मुख्यत: बुज़ुर्ग आबादी है. वैलूच के अनुसार, ऐसा इसलिए है क्योंकि वो ख़ुद को समाज से अलग-थलग महसूस करते हैं और वो पहले से चली आ रही ईमेल श्रृंखलाओं व निजी सन्देशों के ज़रिए, झूठी जानकारी फैला रहे होते हैं.

वैलूच का कहना है, “ये बुज़ुर्क आबादी स्वंय को कमतर समझते हैं. उन्हें लगता है कि जो विषय उनके लिए महत्वपूर्ण हैं वे मुख्य धारा की मीडिया की सामग्री में शामिल नहीं हैं. और ये सभी बहुत ही जायज़ और प्रासंगिक चिन्ताएँ हैं. वो इस जानकारी व हेट स्पीट को, व्यवस्था या फिर सरकार को सबक़ सिखाने के लिए एक छड़ी के तौर पर प्रयोग करते हैं, ताकि उनकी चिन्ताओं पर ध्यान दिया जा सके.”

ट्रांज़िशन संगठन इस समस्या से निपटने के लिए, सार्वजनिक पुस्तकालयों में कार्यशालाएँ आयोजित करता है. इन कार्यक्रमों में ज़्यादातर वरिष्ठ नागरिक ही हिस्सा लेते हैं. इन सत्रों में, प्रतिभागी बुनियादी जाँच विधियों की जानकारी हासिल करते हैं, प्राप्त जानकारी के स्रोत पर अधिक बारीकी से आकलन करना सीखते हैं.

परियोजना प्रबन्धक जारोस्लाव वैलूच बताते हैं कि, “अन्तिम उद्देश्य इन वरिष्ठ नागरिकों को ग़लत ख़बरें व जानकारी फैलाने से रोकना नहीं है, बल्कि उन्हें समझाना है कि आइए, कुछ समय एक साथ बिताएँ और, इस तरह हम उन्हें दुष्प्रचार व ग़लत जानकारी के प्रति अधिक मज़बूत बना सकें.”

ये कार्यक्रम अब इतना सफल हो गया है कि यह पूरे चैक गणराज्य में काम करने के साथ-साथ, पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी जैसे पड़ोसी देशों में भी अच्छे परिणाम दिखा रहा है.