मॉण्ट्रियाल प्रोटोकॉल की बड़ी सफलता: ओज़ोन परत में सुधार जारी

संयुक्त राष्ट्र समर्थित विशेषज्ञों के एक पैनल ने बताया है कि पृथ्वी की ओज़ोन परत में सुधार जारी है, और चार दशकों के भीतर उसकी पूर्ण बहाली सम्भव है.
लेकिन समूह ने ओज़ोन परत पर, जियो इंजीनियरिंग जैसी नई तकनीकों के अनपेक्षित प्रभावों की भी चेतावनी दी.
मॉण्ट्रियाल प्रोटोकॉल की प्रगति पर हर चार साल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में, पैनल ने लगभग 99 प्रतिशत प्रतिबन्धित ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म होने की पुष्टि की.
सितम्बर 1987 में, मॉण्ट्रियाल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे, जोकि लगभग 100 मानव निर्मित रसायनों, या 'ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों' (ODS) की खपत और उत्पादन को नियंत्रित करने हेतु, एक ऐतिहासिक बहुपक्षीय पर्यावरण समझौता है.
इस समग्र फ़ेज़-डाउन से, ऊपरी Stratosphere यानि समताप मंडल की सुरक्षात्मक ओज़ोन परत में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (UV) किरणों की मानवों तक सीधी पहुँच घटी है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) में, ओज़ोन सचिवालय के कार्यकारी सचिव, मेग सेकी ने कहा, "जलवायु परिवर्तन शमन पर मांट्रियाल प्रोटोकॉल का जो प्रभाव हुआ है, उसका इससे बड़ा व्याख्यान नहीं दिया जा सकता."
"पिछले 35 वर्षों में, यह प्रोटोकॉल, पर्यावरण का एक सच्चा चैम्पियन बन गया है. वैज्ञानिक मूल्यांकन पैनल द्वारा किए गए आकलन और समीक्षा, प्रोटोकॉल के काम का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, जो नीति और निर्णय लेने वालों को सूचित करने में मदद देता है."
Good news from #AMS2023: The ozone layer is on track to recover within four decades.
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WMO
मई 1985 में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के तीन वैज्ञानिकों ने पहली बार ओज़ोन परत में छेद होने की खोज की घोषणा की थी.
पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वर्तमान नीतियाँ जारी रहती हैं, तो 2040 तक इस परत के, 1980 के मानकों तक पहुँचने की उम्मीद है.
अंटार्कटिक के ऊपर, यह पुनर्बहाली लगभग 2066 तक, और आर्कटिक के ऊपर 2045 तक होने की उम्मीद है.
अंटार्कटिक ओज़ोन छेद के आकार में बदलाव, विशेष रूप से 2019 और 2021 के बीच, बड़े पैमाने पर मौसम सम्बन्धी स्थितियों से प्रेरित था.
फिर भी, वर्ष 2000 के बाद से, अंटार्कटिक ओज़ोन छेद और उसकी गहराई में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है.
मॉण्ट्रियाल प्रोटोकॉल से जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों को भी लाभ मिला है, जिससे अनुमानित 0.5 डिग्री सेल्सियस तक ग्लोबल वार्मिंग से बचाव में मदद मिली है.
यह रिपोर्ट, जलवायु पर सन्धि के सकारात्मक प्रभाव की पुष्टि करती है.
2016 में मॉण्ट्रियाल प्रोटोकॉल के लिये एक अतिरिक्त समझौता जोड़ा गया, जिसे किगाली संशोधन के रूप में जाना जाता है. इसके तहत, कुछ हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन (HFCs) के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध रूप से कम करने का प्रावधान किया गया.
हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन (HFCs) सीधे ओज़ोन को नष्ट नहीं करते हैं, लेकिन यह वो शक्तिशाली गैसें हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि और त्वरित जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं.
पैनल ने बताया कि यह अनुमान लगाया गया है कि 2100 तक, इस संशोधन से, 0.3 – 0.5 डिग्री सेल्सियस तापमान कम करने में मदद मिलेगी.
डब्ल्यूएमओ के महासचिव, पेटरी तालस ने कहा, "ओज़ोन कार्रवाई, जलवायु कार्रवाई के लिये एक मिसाल क़ायम करती है. ओज़ोन-नष्ट करने वाले रसायनों को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करने में मिली सफलता दर्शाती है कि जीवाश्म ईंधन में बदलाव, ग्रीनहाउस गैसों में कमी व तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिये, क्या-कुछ किया जा सकता है; और अत्यावश्यक रूप से किया जाना चाहिये."
पैनल ने सूर्य के प्रकाश का प्रतिबिम्ब बढ़ाकर जलवायु तापमान वृद्धि को कम करने के लिये एक सम्भावित विधि के उपयोग के प्रति आगाह किया.
पहली बार, उन्होंने Stratosphere में, जानबूझकर छोड़े जाने वाले ऐरोसोल की ओज़ोन परत पर सम्भावित प्रभावों की जाँच की, जिसे स्ट्रैटोस्फ़ेरिक एरोसोल इंजेक्शन (SAI) के रूप में जाना जाता है.
लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि SAI का एक "अनपेक्षित परिणाम" यह था कि इससे "समतापमंडलीय तापमान, संचलन और ओज़ोन उत्पादन एवं विनाश दर तथा परिवहन पर भी असर पड़ सकता है."