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भारत: बेर चुनकर पहाड़ों की रक्षा की अनोखी मुहिम

सी-बकथॉर्न के पौधे पर लगे बेर फल.
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सी-बकथॉर्न के पौधे पर लगे बेर फल.

भारत: बेर चुनकर पहाड़ों की रक्षा की अनोखी मुहिम

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने भारत में सरकार और वैश्विक पर्यावरण सुविधा के साथ साझेदारी में, ‘SECURE Himalaya’ नामक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके तहत, सी-बकथॉर्न-आधारित उत्पादों पर एक व्यापार मॉडल विकसित करके, स्थानीय समुदायों को वैकल्पिक आजीविका व रोज़गार के नए अवसर मिल रहे हैं.

 

हिमाचल प्रदेश में सावधानी से झाड़ी से बेर फल तोड़ रही, मियार की सुदूर घाटी की निवासी 50 वर्षीय रिगज़िन कहती हैं, "इस पौधे का असीम औषधीय महत्व है. पारम्परिक वैद्य, सदियों से मधुमेह और रक्तचाप जैसी बीमारियों के इलाज के लिये इसका उपयोग करते रहे हैं.” यह झाड़ी है, सी-बकथॉर्न (Hippophae rhamnoides) पौधे की है, जो हिमालय क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक उच्च प्रजाति है.

स्थानीय स्तर पर 'चर्मा' के रूप में जाना जाने वाला सी-बकथॉर्न, जंगल में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और उच्च पोषण मूल्य वाला औषधीय पौधा है. इसकी झाड़ियाँ, ठंड का सामना करने में सक्षम हैं और इसकी व्यापक जड़ें मिट्टी की पकड़ मज़बूत करके, मिट्टी के कटाव की रोकथाम में मददगार साबित होती हैं.

वो मिट्टी में नाइट्रोजन बहाल करने में भी सक्षम हैं, जिससे गुणवत्ता खो चुकी मिट्टी वाले क्षेत्रों के लिये यह बेहद उत्कृष्ट संरक्षण प्रणाली बन सकती है, और अन्य वनस्पतियों के विकास में मदद करने के लिये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है.

सी-बकथॉर्न एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ भी है. इसके फल का उपयोग, जैम, जूस और अचार बनाने के लिये किया जाता है. साथ ही, पौधे की सूखी पत्तियों को चाय बनाने के लिये पीसकर इस्तेमाल किया जा सकता है.

ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों में, खेती और पशुपालन आजीविका का मुख्य स्रोत हैं. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण, दोनों में गिरावट आ रही है, जिससे वैकल्पिक आजीविका विकसित करना आवश्यक हो गया है. सी-बकथॉर्न आधारित खाद्य प्रसंस्करण, आय का एक स्थाई स्रोत प्रदान करने के साथ-साथ, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली में भी योगदान देता है.

रिगज़िन, मियार घाटी के तिंग्रेट गाँव से हैं, और ग्रामीण उन्हें प्यार से 'चार्मा आंटी' कहते हैं. वह कई दशकों से, समुदाय की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर, पारम्परिक तरीक़े से सी-बकथॉर्न के फल एकत्र करके, उन्हें प्रसंस्कृत करती रही हैं.

अपने सहकर्मियों और कुछ सी-बकथॉर्न उत्पादों के साथ रिगज़िन (बीच में).
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अपने सहकर्मियों और कुछ सी-बकथॉर्न उत्पादों के साथ रिगज़िन (बीच में).

व्यवसायिक मॉडल

वे कुछ समय पहले तक इसे छोटे पैमाने पर केवल घरेलू उपभोग के लिये एकत्र करती थीं. 2019 में, भारत सरकार और वैश्विक पर्यावरण सुविधा के साथ साझेदारी में यूएनडीपी ने, ‘SECURE Himalaya’ पहल के तहत, सीबकथॉर्न-आधारित उत्पादों पर एक व्यापार मॉडल विकसित करने हेतु, रिगज़िन और समुदाय के सदस्यों से सम्पर्क किया.

इस पहल के तहत, ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों में, स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी के ज़रिये, समृद्ध जैव विविधता का संरक्षण किया जा रहा है. इस पहल के एक पायलट कार्यक्रम में, क्षेत्र की 15 महिलाओं को लेकर 'खंडोमा' नामक स्वयं सहायता समूह बनाया गया.

उन्हें कच्चे माल के प्रसंस्करण व टिकाऊ कटाई तकनीकों, प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण, पैकेजिंग एवं बाज़ार सम्पर्क में प्रशिक्षण के लिये तकनीकी सहायता प्रदान की गई.

रिगज़िन, फलों को सोलर ड्रायर में डालते हुए बताती हैं, “फल तोड़ने के बाद उसे प्रसंस्कृत करना एक बहुत ही थकाने वाली प्रक्रिया है. लेकिन, इस नए उपकरण के साथ अब हम बेहतर उत्पाद बनाने में सक्षम हैं जो हमें अधिक मुनाफ़ा दिलाते हैं."

जलवायु कार्रवाई में मददगार

यह गतिविधि जलवायु कार्रवाई में भी योगदान देती है. सी-बकथॉर्न पर राष्ट्रीय पहल, ग्रीन इंडिया मिशन (जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना का एक हिस्सा) के तहत, भारतीय हिमालय क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य और ग़रीबी उन्मूलन सुनिश्चित करने के साथ-साथ, ख़राब भूमि के वनीकरण के लिये प्राथमिकता वाली प्रजातियों के रूप में, सी-बकथॉर्न को बढ़ावा देने की योजना है.

सरकारी लाइन विभागों, स्थानीय समुदायों और अकादमिक एवं शोध संस्थानों के सहयोग से, मियार घाटी के नाज़ुक और ख़राब क्षेत्रों को बहाल करने के लिये, सी-बकथॉर्न नर्सरी विकसित की जा रही हैं.

सी-बकथॉर्न मूल्य श्रृंखला विकसित करने हेतु समुदाय के साथ नज़दीकी से काम कर रहे, ‘SECURE Himalaya’ परियोजना के सलाहकार, अभिषेक कुमार कहते हैं, “बहुत सारे हितधारक अकेले ही, अलग-अलग काम कर रहे हैं. इस कार्यक्रम से, हमने सीएसके कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर जैसे तकनीकी संस्थानों को उन महिलाओं के साथ जोड़ा है, जो परम्परागत रूप से सी-बकथॉर्न प्रसंस्करण में लगी हुई थीं. खंडोमा स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) को, इस कार्यक्रम के ज़रिये, फलों की कटाई के उपकरण एवं उत्पाद विकास की तकनीकी सहायता प्रदान की गई है."

इन मशीनों से सी-बकथॉर्न के प्रसंस्करण में कम मेहनत लगती है.
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इन मशीनों से सी-बकथॉर्न के प्रसंस्करण में कम मेहनत लगती है.

प्रभावी साझेदारी

खंडोमा एसएचजी ने ‘Kang La Basket’ नामक एक ब्रैंड बनाकर, बाज़ार में उतारा है, जिसके तहत जैम, चाय, जूस और पल्प कन्संट्रेट जैसे विभिन्न उत्पादों को पैक करके बेचा जाता है.

सरकार और समुदाय के बीच एक प्रभावी साझेदारी दर्शाते हुए, ‘Kang La Basket’ पहल को ज़िला प्रशासन ने, ‘एक ज़िला, एक उत्पाद’ लोक प्रशासन में उत्कृष्टता श्रेणी में, प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिये मनोनीत किया है.

फिलहाल, खंडोमा एसएचजी की महिलाएँ, Kang La Basket के तहत उत्पादों की श्रृंखला के विस्तार में लगी हैं.

यूएनडीपी, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से, एसएचजी के लिये ‘रिवॉल्विंग फंड’ और ‘क्रेडिट लिंकेज’ बनाने हेतु क्षमता निर्माण के लिये, सरकारी भागीदारों के साथ मिलकर काम कर रहा है.

'कांग ला' ('ला' मतलब पास) साढ़े पाँच हज़ार मीटर ऊँचा पहाड़ी दर्रा है, जो हिमाचल प्रदेश में मियार घाटी को लद्दाख की जंस्कार घाटी से जोड़ता है. रिगज़िन अपने सामने फैले हरे घास के मैदानों को निहारते हुए कहती हैं, "हम जीवन के स्रोत के रूप में दर्रे की पूजा करते हैं क्योंकि यह हमें पानी और भोजन देता है. यह सिर्फ़ एक और उदाहरण है - पहाड़ों द्वारा हमें आशीर्वाद दिए जाने का."

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ था.