
2022 पर एक नज़र: वैश्विक उथलपुथल के बीच, जलवायु समझौतों के लिये यूएन के अनवरत प्रयास
विनाशकारी चरम मौसम घटनाओं के लिये मानव गतिविधियों के ज़िम्मेदार होने के ठोस साक्ष्यों के बावजूद, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में वृद्धि इस वर्ष भी जारी रही. संयुक्त राष्ट्र ने गहराते जलवायु संकट के मद्देनज़र, पर्यावरण संरक्षण को अन्तरराष्ट्रीय एजेंडा में ऊपर रखा, और महत्वपूर्ण सम्मेलनों के दौरान, वित्त पोषण, जैवविविधता व महासागरों की रक्षा के लिये प्रयासों को मज़बूती देने पर सहमति बनी.
वर्ष 2021 में, स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में यूएन जलवायु सम्मेलन (कॉप26) के समापन के बाद, वहाँ उपस्थित प्रतिनिधियों को ज़रा भी अनुमान नहीं रहा होगा कि किस तरह यूक्रेन में युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथलपुथल मच जाएगी.
इस युद्ध की पृष्ठभूमि में अनेक देशों को निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की अपनी योजनाओं को स्थगित करना पड़ा, चूँकि उन्हें रूस से प्राप्त होने वाले तेल व गैस निर्यात पर निर्भरता कम करने के लिये त्वरित प्रयास करने पड़े. इस क्रम में, उन्हें अन्य देशों से जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति का प्रबन्ध करना पड़ा.
इसी दौरान, अनेक अध्ययनों के निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता रहा कि पृथ्वी पर तापमान लगातार बढ़ रहा है और कार्बन उत्सर्जनों में कटौती के प्रयासों में मानव समुदाय विफल हो रहा है.
इसके मद्देनज़र, जलवायु आपात स्थिति, मानवता के अस्तित्व के लिये एक ख़तरा बनती जा रही है.
इसके बावजूद, संयुक्त राष्ट्र ने धीमी रफ़्तार के साथ, अन्तरराष्ट्रीय जलवायु समझौतों पर सहमति बनाने के प्रयासों की अगुवाई करना जारी रखा.
साथ ही, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी लाने के लिये और अधिक प्रयास करने का दबाव डाला गया, जबकि विकासशील देशों के लिये समर्थन सुनिश्चित किया गया, जिनके नागरिकों को चरम मौसम घटनाओं का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है.

ताप लहर, सूखा, बाढ़
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने इस साल सिलसिलेवार रिपोर्टों के ज़रिये हालात की गम्भीरता के प्रति आगाह किया.
जनवरी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2021 अब तक रिकॉर्ड पर सात सर्वाधिक गर्म सालों की सूची में शामिल हो गया.
गर्मियों के दौरान, अनेक योरोपीय देशों में रिकॉर्ड स्तर पर ताप लहरों का अनुभव किया गया, जिनकी गहनता और आवृत्ति आने वाले वर्षों में और बढ़ने की आशंका है.
वहीं, अफ़्रीका में खाद्य सुरक्षा संकट के हालात बद से बदतर हो सकते हैं, जिससे हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित है.
जलवायु व्यवधानों के कारण लाखों लोगों को विस्थापन के लिये मजबूर होना पड़ा है और वर्ष 2030 तक, अफ्रीकी महाद्वीप पर हर पाँच में से चार देशों में जल संसाधनों के सतत प्रबन्धन की सम्भावना क्षीण है.
वहीं, पाकिस्तान इस वर्ष अगस्त महीने में मूसलाधार बारिश और भीषण बाढ़ की चपेट में आया, जिससे करोड़ों लोग प्रभावित हुए और एक समय देश का एक-तिहाई हिस्सा जलमग्न था.
चाड में अभूतपूर्व बाढ़ के कारण अगस्त महीने में तीन लाख 40 हज़ार लोगों का जीवन अस्तव्यवस्त हो गया.
अक्टूबर में यूएन शरणार्थी एजेंसी ने बताया कि पश्चिमी और मध्य अफ़्रीका में लाखों लोगों को एक दशक में सबसे गम्भीर बाढ़ से जूझना पड़ रहा है, जिसके मद्देनज़र 34 लाख लोगों को सहायता की आवश्यकता है.

'जीवाश्म ईंधन की लत'
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी ने अक्टूबर में जारी अपने एक बुलेटिन में, वातावरण में तीन मुख्य गैसों – कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन के रिकॉर्ड स्तर को दर्शाया.
साल-दर-साल इनकी सघनता में होने वाली वृद्धि पिछले 40 वर्षों में सबसे अधिक है, जिसकी एक बड़ी वजह मानव गतिविधियाँ बताई गई हैं.
निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता रेखांकित किये जाने के बावजूद, विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने यूक्रेन युद्ध से उपजे ऊर्जा संकट के बाद, अपने पुराने बिजली संयंत्रों को फिर से शुरू किया.
इसके अलावा, तेल और गैस के लिये नए आपूर्तिकर्ताओं की तलाश भी शुरू की गई.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी एंतोनियो गुटेरेश ने इन प्रतिक्रियात्मक क़दमों की आलोचना करते हुए, उन्हें भ्रमपूर्ण क़रार दिया.
महासचिव ने जुलाई में ऑस्ट्रिया में जलवायु बैठक के दौरान ध्यान दिलाया कि यदि अतीत में नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश किया गया होता, तो जीवाश्म ईंधन के बाज़ारों में मची अफ़रातफ़री से बचा जा सकता था.
उन्होंने जुलाई में वॉशिंगटन में आयोजिक एक बैठक को सम्बोधित करते हुए जीवाश्म ईंधन उद्योग और 20वीं सदी की बड़ी तम्बाकू कम्पनियों की गतिविधियों के व्यवहार की तुलना की.
यूएन प्रमुख ने कहा कि तम्बाकू हितों की ही तरह, जीवाश्म ईंधन कम्पनियों और उनके साझेदारों के हित अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं.

स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण, एक सार्वभौमिक मानवाधिकार
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जुलाई में एक स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकारों को सार्वभौमिक मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी, जिसे एक अहम पड़ाव माना गया.
इससे पहले, 2021 में मानवाधिकार परिषद ने इसी तरह के एक मसौदे को पारित किया था.
यूएन महासचिव ने भरोसा जताया कि इस असाधारण प्रगति से पर्यावरणीय अन्यायों में कमी लाने, संरक्षण खाइयों को पाटने, और लोगों के सशक्तिकरण में मदद मिलेगी.
जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में मानवाधिकारो के संरक्षण पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर इयान फ़्राई ने अक्टूबर में इस क़दम की अहमियत को रेखांकित किया.
उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव का असर दिखाई देने लगा है और योरोपीय संघ में अब इसे राष्ट्रीय क़ानूनों व संविधानों में शामिल करने के लिये चर्चा हो रही है.
यूएन जलवायु सम्मेलन में महत्वपूर्ण समझौते
इस वर्ष, जलवायु-सम्बन्धी मुद्दों पर तीन अहम बैठकों का आयोजन किया गया – जून में महासागर सम्मेलन, नवम्बर में कॉप27 सम्मेलन, और दिसम्बर में कॉप15 जैवविविधता सम्मेलन.
हर सम्मेलन के दौरान, पर्यावरण की रक्षा, और मानव गतिविधियों के कारण प्रकृति को पहुँच रही चोट में कमी लाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय संकल्पों को मज़बूती प्रदान करने के रास्तों पर विचार-विमर्श किया गया.

महासागर सम्मेलन के दौरान, विश्व नेताओं ने महासागरों के समक्ष मौजूद वैश्विक आपात स्थिति पर चिन्ता जताई, और तत्काल कार्रवाई के लिये अपने संकल्प को नए सिरे से मज़बूती प्रदान करने का वादा किया.
छह हज़ार से अधिक प्रतिनिधियों, और नागरिक समाज के दो हज़ार प्रतिनिधियों के अलावा, 24 राष्ट्राध्यक्ष और सरकार प्रमुख इस सम्मेलन में एकत्रित हुए, जिन्होंने महासागर संकट पर पार पाने के लिये तत्काल ठोस, विज्ञान-आधारित नवाचारी समाधानों की पुकार लगाई.
हानि व क्षति कोष पर सहमति
मिस्र के शर्म अल-शेख़ में यूएन जलवायु सम्मेलन (कॉप27) के दौरान, वार्ता की समयसीमा समाप्त होने के बाद भी बातचीत लम्बी खिंचती रही.
एक क्षण ऐसा लगा मानो बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्त होगी, मगर फिर वार्ताकार ना केवल निष्कर्ष दस्तावेज़ पर सहमत हुए, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था पर भी समझौता हुआ, जिसके ज़रिये, निर्बल देशों को जलवायु-जनित आपदाओं से होने वाली क्षति व हानि के लिये मुआवज़ा दिया जाएगा.

इनमें से अनेक ज़रूरतमन्द देशों ने इस प्रावधान के लिये एक लम्बी लड़ाई लड़ी है, इसलिये इस व्यवस्था पर सहमति को एक बड़ी सफलता माना गया, जिस पर और जानकारी आने वाले महीनों में उपलब्ध होगी.
मगर, अन्य अहम मुद्दों, जैसेकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल का अन्त करना, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने समेत अन्य विषयों पर अधिक प्रगति दर्ज नहीं की गई.
माँट्रियाल सम्मेलन में जैवविविधता संरक्षण का वादा
कोविड-19 महामारी के कारण दो वर्षों की देरी के बाद, जैवविविधता पर यूएन सम्मेलन, कॉप15, अन्तत: इस वर्ष दिसम्बर महीने में माँट्रियाल में आयोजित किया गया.
इस सम्मेलन के समापन पर एक महत्वपूर्ण समझौते पर सहमति बनी, जोकि इस दशक के अन्त तक विश्व में 30 प्रतिशत भूमि, तटीय इलाक़ों और अन्तर्देशीय जलक्षेत्र के संरक्षण पर लक्षित है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इन्गेर ऐंडर्सन ने समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह फ़्रेमवर्क, और उसके साथ प्रस्तुत लक्ष्यों, उद्देश्यों और वित्त पोषण का पैकेज, प्राकृतिक जगत के साथ हमारे सम्बन्ध को फिर से स्थापित करने की दिशा में पहला क़दम है.

वैश्विक जैवविविधता फ़िलहाल एक बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़र रही है, और दस लाख से अधिक प्रजातियों पर लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है.
यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में यह संकट और गहराएगा, जिसके मानवता के लिये विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं. इसकी रोकथाम के लिये यह ज़रूरी है कि प्रकृति संरक्षण के साथ, संसाधनों के सतत उपयोग पर बल दिया जाए.
कुनमिन्ग-माँट्रियाल वैश्विक जैवविविधता फ़्रेमवर्क में भूमि, तटीय इलाक़ों और अन्तर्देशीय जलक्षेत्र के संरक्षण के साथ-साथ, खाद्य बर्बादी में 50 फ़ीसदी की कमी लाने का भी लक्ष्य रखा गया है.
इन सभी संकल्पों को अब कार्रवाई में तब्दील करने के लिये एक प्लैटफ़ॉर्म भी पेश किया गया है, जिससे देशों को इनके क्रियान्वयन में मदद मिलेगी.